तुलसीदास के एक दोहे को लेकर टीवी से लेकर राजनीति में सिर फुटव्वल हो रही है, लेकिन कबीर दास ने जो लिखा है उसे पढ़कर कबीर को पूजने वाले वामी ,कामी और नारीवादी क्या करेंगे… प्रस्तुत है कबीर दास के कुछ दोहे
नारी की झांई पड़त, अंधा होत भुजंग।
कबिरा तिन की कौन गति, जो नित नारी को संग।।
(नारी की छाया पड़ते ही सांप तक अंधा हो जाता है, तो जो हमेशा नारी के साथ रहता है उसकी कितनी दुर्गति होगी)
‘कबीर नारी की प्रीति से, केटे गये गरंत।
केते और जाहिंगे,,नरक हसंत हसंत।।
(नारी से प्रेम के कारण कितने लोग बरबाद होकर नरकगामी हो गए हैं और जाने कितने हंसते हंसते जायेंगे)
‘कलि मंह कनक कामिनि, ये दौ बार फांद। इनते जो ना बंधा बहि, तिनका हूं मैं बंद।
कलयुग में जो धन और नारी के मोह में नहीं फंसता, उसी के दिल में भगवान हैं।
कामिनि काली नागिनि, तीनो लोक मंझार, राम सनेही उबरै, विषयी खाये झार।
औरत काली नागिन है जो तीनों लोकों में व्याप्त है। परंतु राम का प्रेमी व्यक्ति उसके काटने से बच जाता है। वह विषयी-लोभी-कामी लोगों को खोज-खोज कर काटती है!
नारी कहुँ की नाहरी, नख सिख से येह खाये। जाल बुरा तो उबरै, भाग बुरा बहि जाये।।
इन्हें नारी कहा जाय या शेरनी। यह सिर से पूंछ तक खा जाती है।
छोटी मोटी कामिनि, सब ही बिष की बेल।बैरी मारे दाव से, येह मारै हंसि खेल।।
स्त्री छोटी हो या बड़ी सभी जहर की लताएं है। जो मार देती है।
‘नारी की झांई पड़त, अंधा होत भुजंग । कबिरा तिन की कौन गति, जो नित नारी को संग’।।
नारी की छाया पड़ते ही सांप तक अंधा हो जाता है,तो जो हमेशा नारी के साथ रहता है उसकी कितनी दुर्गति होगी
नागिन के तो दोये फन, नारी के फन बीस। जाका डसा ना फिर जीये, मरि है बिसबा बीस।।
सांप के केवल दो फंन होते है पर स्त्री के बीस फंन होते है। स्त्री के डसने पर कोई जीवित नहीं बच सकता है। बीस लोगों को काटने पर बीसों मर जाते हैं।
पास बिनुथा कापड़ा, कादे सुरंग ना पाये कबीर त्यागो ज्ञान करि, कनक कामिनि दोये।
जिस प्रकार गंदे कपास से सुन्दर वस्त्र नहीं बन सकता है-हमें स्वर्ण और स्त्री दोनो का लगाव त्यागना चाहिए।
कबीर नारी की प्रीति से, केटे गये गरंत केटे और जाहिंगे, नरक हसंत हसंत।
नारी से प्रेम के कारण अनेक लोग बरबाद हो गये और अभी बहुत सारे लोग हंसते-हंसते नरक जाएंगे।
कबीर मन मिरतक भया, इंद्री अपने हाथ तो भी कबहु ना किजिये, कनक कामिनि साथ।
अगर तुम्हारी इच्छाएं व मन मर चुका हो और तुम्हारी बिषय भोगों की इन्द्रियाॅ भी तुम्हारे हाथ में नियंत्रित हों तब भी तुम धन और नारी का साथ मत करो।
कलि मंह कनक कामिनि, ये दौ बार फांद, इनते जो ना बंधा बहि, तिनका हूँ मै बंद।
कलियुग में जो धन और स्त्री के मोह मे नहीं फंसा है-भगवान उसके हृदय से बंधे हुए है, क्योंकि ये दोनों माया मोह के बड़े फंदे है।
अब नारी के समर्थन में कबीर ने क्या कहा है इसकी भी बानगी देखिये
नारी निन्दा ना करो, नारी रतन की खान।नारी से नर होत है, ध्रुब प्रहलाद समान।
नारी की निंदा नहीं की जानी चाहिए, नारी से ही रत्न पैदा होते हैं, ध्रुव और प्रह्लाद जैसे नर भी नारी ने ही पैदा किये हैं।
नारी नरक ना जानिये, सब सौतन की खान, जामे हरिजन उपजै, सोयी रतन की खान।
नारी को नरक मत समझो। नारी से ही सभी संत पैदा हुए हैं। भगवत पुरुषों की उत्पत्ति नारी से हुयी है इसलिए वो रत्नो की खान है।
पतिबरता मैली भली, काली कुचिल कुरुप, पतिबरता के रुप पर बारौं कोटि स्वरुप।
ऐसी नारी जो अपने पति के प्रति समर्पित हो, पतिव्रता हो वो भले ही मैली कुचैली हो, कुरूप हो श्रेष्ठ है, ऐसी पतिव्रता नारी को कबीर नमन करते हैं।