पूर्वोत्तर का असम राज्य आजकल एक सरकारी आदेश (GO)जारी जारी किया है, जिनका विषय है कि निर्धारित आयु पूरी न करने पर शादी पर प्रतिबंध। 14 से 18 वर्ष के नीचे की लड़कियों से विवाह करने पर विवाह रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज होगा। यह उचित अधिनियम है; क्योंकि कम उम्र में लड़कियों की शादी करने से लड़कियां शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर मजबूत नहीं होती हैं ,उनके मां बन जाने का सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। वे जीवन भर शारीरिक कमजोरी ,रक्ताल्पता एवं बीमारियों से घिरी रहती हैं वे स्वस्थ बच्चे को जन्म नहीं दे पाती है, क्योंकि उनके शरीर में ऊर्जा की कमी होता है। इसका नकारात्मक प्रभाव होता है कि उनकी मृत्यु हो जाती है, शिशु और मातृ मृत्यु दर पर नियंत्रण पाना चुनौती का विषय है। असम सरकार का निर्णय स्वागत योग्य है ,इसके तहत व्यक्तियों की गिरफ्तारी अभियान भी जारी है। इस गिरफ़्तारी अभियान में एक सावधानी बरतने की जरूरत है कि जिस परिवार की गिरफ्तारी की जा रही है, उस परिवार के जन्म की अधिभार को समझना आवश्यक है; क्योंकि परिवार का भरण – पोषण का विषय भी गंभीर चिंता का विषय है। इस अधिनियम का कड़ाई से पालन का सकारात्मक परिणाम मिला हैकि इससे जनसंख्या असंतुलन एवं नकारात्मक विचारों से निजात पाया जा सकता है।
देश में साक्षरता दर बढ़ी है ।लड़कियों को पढ़ा लिखा कर सशक्त बनाने पर जोर है। विगत कुछ वर्षों में महिलाओं ने प्रत्येक दिशा में उल्लेखनीय प्रगति किया है, जो अति सराहनीय है। वास्तविक तथ्य है कि समाज का निम्न वर्ग में विवाह की उम्र को लेकर जागरूकता का अभाव है। कई समुदायों में यह दकियानूसी धारणा विकसित है कि कन्या के रजस्वला होते ही उसका हाथ पिला कर देना चाहिए। कई समुदाय में लड़के और लड़कियों को बचपन में ही विवाह कर देना कर देते हैं, जिससे अभिवाहक सुरक्षित एवं संरक्षित महसूस करते हैं। दुर्भाग्य से इस धारणाओं के कारण अल्पायु में ही बहुत सारे लड़कियां गंभीर बीमारी की चपेट में आ जाती हैं ,और उनकी मौत हो जाती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से परिवार, समाज एवं व्यवस्था को जागरूक एवं सकारात्मक मानसिकता से लेना होगा।