आखिरकार रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु ने एक प्लेटफॉर्म तैयार कर दिया है: भारतीय रेल, आधुनिकीकरण के लिए धन की व्यवस्था करने हेतु नए जरियों को इस्तेमाल करते हुए सही पथ पर अग्रसर है
वैश्विक वृद्धि दर मंद हो रही है। अब उदीयमान बाजार वैश्विक आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए बजाय घिसट रहे हैं। हालांकि भारत के नजदीकी मियादी सकल घरेलू उत्पाद पूर्वानुमानों में मामूली कमी की गई है, फिर भी इस देश को प्रशंसात्मक ढंग से देखा जा रहा है। निवेशक अब उदीयमान बाजारों को एक जैसी परिसंपत्ति श्रेणी के रूप में नहीं देखते हैं और अब अधिक विचारशील हैं।
सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत को सही रोशनी में पेश किया जाए, कड़ी मेहनत कर रही है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के बुनियादी ढांचे और विकास कार्यसूची के लिए धन का इंतजाम करने के वास्ते विदेशी पूँजी को आकर्षित करने हेतु विभिन्न मंत्रालयों के साथ मिलकर संघटित प्रयास कर रहे हैं। मेक इन इंडिया, स्मार्ट सिटी मिशन और डिजिटल इंडिया जैसी पहलकदमियों ने अत्यधिक वैश्चिक ध्यान आकर्षित किया है।
भारतीय रेल किसी भी चकाचौंध से वंचित है लेकिन पर्दे के पीछे चुपचाप काम कर रही है। यह सच है कि इतने विशालकाय, अचल संगठन में तुरंत किसी बदलाव का दिखाई देना मुश्किल हो सकता है। यह कई दशकों से अत्यधिक कम पूँजीनिवेश, बार-बार दुर्घटनाओं और आधुनिकीकरण की समस्याओं से ग्रसित है। फिर भी, आम आदमी के लिए देश में कोई भी बुनियादी ढांचा उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितनी कि रेलवे, जहां 230 लाख लोग इसे रोजाना इस्तेमाल करते हैं।
आम आदमी बेहतर सेवाओं, अधिक क्षमताओं और यात्रा करने के लिए अधिक मानवोचित तरीके के लिए तरस रहा है। लंबी दूरी की यात्रा के लिए सबसे किफायती परिवहन साधन के रूप में, इस जनोपयोगी सेवा में किसी भी निवेश का अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक प्रभाव पड़ेगा।
वर्षों के दौरान, अनगिनत विशेषज्ञ समितियों ने भारतीय रेल की कार्यप्रणाली में सुधार लाने की सिफारिशें की हैं, हालांकि, ज्यादातर रिपोर्टें धूल चाट रही हैं। अब दो पहलू बदल गए हैं जिनसे आशा की किरण जगी है – पहला पहलू भारतीय रेल में सुधार लाने की राजनैतिक इच्छा है और दूसरा पहलू पूँजीगत व्यय के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए धन का इंतजाम करने की निरंतर पाइपलाइन है। रेलवे के अपग्रेडेशन और विस्तार के लिए दोनों अनिवार्य है।
सरकार ने बुलेट ट्रेन, बड़े महानगरों को जोड़ने वाले उच्च गति रेल नेटवर्क के हीरक चतुर्भुज, और समर्पित माल गलियारों को विकसित करने का अपना विज़न स्पष्ट कर दिया है। हालांकि ये दीर्घकालिक परियोजनाएं हैं, फिर भी जापान, चीन, कोरिया, जर्मनी, फ्रांस और स्पैन से निवेश में काफी अधिक रुचि दिखाई जा रही है।
इसके अलावा, निजी भागीदारी के माध्यम से 400 रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास भारतीय रियल एस्टेट सैक्टर के लिए कायाकल्प करने वाला साबित हो सकता है। विकास मॉडल की संकल्पना ‘जैसा है जहां है’ के आधार पर की गई है।
इसका अर्थ है कि भारतीय रेल वर्टिकल विस्तार के जरिये स्टेशनों के आसपास और चारों ओर अपनी प्राइम रियल एस्टेट का लाभ उठाएगी लेकिन जमीन का स्वामित्व इसके पास ही रहेगा। इसके परिणामस्वरूप, उपभोक्ताओं को उन्नत सुविधाओं का लाभ मिलेगा और उसी दौरान भारतीय रेल अपने संसाधनों की बचत कर पाएगी। प्राइवेट पार्टियां स्टेशन के पुनर्विकास के लिए न केवल धन का इंतजाम करेंगी, बल्कि व्यावसायिक कार्यों के लिए रियल एस्टेट का लाभ उठाकर लाभान्वित भी होंगी।
स्टेशन पुनर्विकास हेतु दिशानिर्देश और बोली पद्धतियों को स्थापित किया जा चुका है। अगर इन्हें संकल्पना के अनुसार क्रियान्वित किया गया तो ये अत्यधिक आवश्यक पारदर्शिता लाएंगी। फिर भी, यहां निर्माण, प्रचालन और अनुरक्षण के साथ वाणिज्यिक और तकनीकी जोखिम जुड़े हुए हैं, इसलिए आवेदक की शुद्ध संपत्ति के लिए 50 करोड़ की निर्धारित सीमा रेखा को इससे काफी अधिक रखना बुद्धिमत्ता हो सकती थी। बुनियादी ढांचा क्षेत्र जिस अत्यधिक दबाव के दौर से गुजर रहा है, वह बुनियादी तौर पर प्रमोटर्स के पास पर्याप्त इक्विटी न होने के कारण है। उम्मीद है कि पदाधिकारी इसे संज्ञान में लेंगे।
नवंबर 2014 में सुरेश प्रभु को रेल मंत्री बनाया गया था। एक साल से कम समय में, इस लो प्रोफाइल मंत्री ने पहली बार 8.56 लाख करोड़ रुपये की पंचवर्षीय पूँजी निवेश योजना निर्धारित की है। बुनियादी ढांचे को धन के दीर्घकालिक इंतजाम की जरूरत होती है। एल.आई.सी. ने भारतीय रेल को 1.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया है, जो पांच वर्ष की अवधि के दौरान जुटाया जाएगा। इससे अनेक परियेाजनाओं का तेजी से क्रियान्वयन होगा। एल.आई.सी का यह कर्ज रियायती दर पर है, जिसके लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने विशेष अनुमति प्रदान की है।
निवेशों का पाइपलाइन सुनिश्चित करना ही वह इकलौता तरीका है जिसके जरिये भारतीय रेल नई क्षमताओं का निर्माण कर सकती है और आवश्यक अपग्रेडेशन ला सकती है। इस स्थिति में, यह मंत्रालय उचित रूप से हरसंभव कोशिश कर रहा है और पूरी ताकत के साथ काम कर रहा है। अधिक धन का इंतजाम विभिन्न स्रोतों से होगा – अधिक बजट आबंटन, आंतरिक सृजन, रेलवे के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के तुलन-पत्रों का लाभ उठाना, बहुपक्षीय वित्त-व्यवस्था और राज्य सरकारों के साथ संयुक्त उद्यम स्थापित करना।
इसके अलावा, भारतीय रेल वित्त निगम को जल्दी ही विदेश में भारतीय रुपये में आंके गए मूल्य में बंधपत्रों का दोहन करने में समर्थ होना चाहिए, जहां वित्तीय हानि से बचाव का दायित्व निवेशक का है, न कि निर्गमकर्ता का।
यहां ऐसे अनेक उपाय हैं जो हाल ही में भारतीय रेल ने किए हैं, जैसे कि कुछ रेल डिब्बों के इंटीरियर में सुधार लाना, आधुनिक चल स्टॉक के जरिये माल ढुलाई क्षमता को बढ़ाना, रेल मोबाइल टिकट एप्प जारी करना, और डीज़ल एवं बिजली रेलइंजनों का निर्माण करने की दो परियोजनाओं के लिए बोली लगाने को सफलतापूर्वक पूरा करना। डेडीकेटिड फ्रेट कॉरीडोर कारर्पोरेशन ने एक साल से कम समय में 17,500 करोड़ के ठेकों को अंतिम रूप दिया है।
प्रभु का मंत्रालय भ्रष्टाचार का जड़ से उखाड़ फेंकने और निहित स्वार्थों को समाप्त करने का दृढ़निश्चय भी दिखा रहा है। इसके परिणामस्वरूप असंतुष्टि की कुलबुलाहट सुनाई दे रही है लेकिन मौजूदा हालातों में सख्त उपायों की जरूरत है।
निसंदेह, अनगिनत चुनौतियां हैं। भारतीय रेल के शिखर पर मौजूद रहने के लिए, राजनैतिक निपुणता के साथ-साथ एक कारपोरेट सी.ई.ओ. के व्यावहारिक ज्ञान की जरूरत है। प्रभु ने दोनों गुणों को प्रदर्शित किया है। लोगों को उनका सर्वश्रेष्ठ कार्यप्रदर्शन देने के लिए प्रेरित करने के वास्ते उनके अच्छे कार्य की छोटी सी आभार-पूर्ति से बढ़कर कुछ नहीं है। हाल ही में, प्रधान मंत्री ने ट्वीट किया था, “सुरेश प्रभु जी ने रेल मंत्रालय में अद्भुत काम किया है।” लेकिन प्रभु के पीछे 14 लाख लोग चुपचाप काम कर रहे हैं, “राष्ट्र की जीवनरेखा” को चालू रखे हुए हैं। वे तारीफ के हकदार हैं।
(लेखक हाउसिंग डेवलपमेंट फायनेन्स कॉर्पोरेशन लि. के अध्यक्ष हैं, उनका ये लेख टाईम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुआ है)
अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद श्री धर्मेंद्र कुमार द्वारा