एक कवि सम्मेलन में एक गीतकार ने दूसरे कवि से अतुल की ओर इंगित कर कहा, ‘हिन्दी में चार कविताएं लिखकर गला फाड़कर तो कोई भी अखिल भारतीय हो सकता है, राजस्थानी में लिखे तो जानें।” इस ताने को अतुल ने चुनौती के रूप में लिया और आज उनके आभारी हैं जिन गीतकार महाशय ने इनके सपनों को नया आकाश दिया। इस ताने की परिणीति से ये हिंदी के साथ – साथ राजस्थानी साहित्य लिखने वाले सिद्धहस्त साहित्यकारों की श्रेणी में स्थापित हो गए हैं।
इनके साहित्य के बारे में चर्चा के दौरान बताते हैं ये जब अंतिम तीर्थंकर उपन्यास लिख रहे थे तब ऐसा हुआ कि अंतस में उपन्यास की रूपरेखा तैयार होने के बावजूद उपन्यास कागज पर नहीं आ पा रहा था। उन्होंने संकल्प लिया कि जब तक उपन्यास पूरा नहीं होगा, अब भोजन नहीं करेंगे। पूरे 550 दिन भोजन का त्याग कर संकल्प का निर्वहन सहज नहीं था लेकिन बुजुर्गों के आशीर्वाद से इन्होंने अपने इस मनोरथ को संपूर्णता प्रदान कर ही दम लिया।
आज अतुल कनक साहित्य के फलक पर चमकते उस सितारे की तरह हैं जो हिंदी और राजस्थानी भाषा में गद्य और पद्य की रचना कर अपनी रोशनी से साहित्य जगत को रोशन कर रहे हैं। अतुल कनक के साहित्यिक जीवन के उक्त प्रसंग स्वयं इनके संकल्प का घनी होने की दास्तां बयां करते हैं। अतुल बताते हैं विख्यात और सामर्थवान कवियित्री माताजी प्रेम लता जैन और जैन समाज के प्रसिद्ध भजन गायक मामाजी नमजी से से कविता इन्हें विरासत में मिली और प्राथमिक शिक्षा के समय से ही तुकबंदी कर अपनी बात कहनी शुरू कर दी थी, जिसे सुनकर परिजन खुश तो होते ही थे साथ ही मेरा उत्साहवर्धन भी करते थे। बाल कवि के जीवन का वह प्रसंग इनके भावी रचनाकार का पथ गामी बन गया जब आठवीं कक्षा उत्तीर्ण कर भारतेंदु समिति के एक कार्यक्रम में पहला गीत पढ़ा और लगभग इसी समय केकड़ी में आयोजित एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में पहली बार काव्यपाठ किया। जीवन के इस मोड़ से ही लिखना जैसे इनके जीने की ज़रूरत हो गया। आज तक निरंतर लिखते हुए और कवि सम्मेलनों में भाग लेते हुए ये साहित्यिक के आकाश पर टिमटिमाते सितारे बन कर छा गए।
प्रमुख रूप से वीर रस के पुरोधा कवि से मेरी पहली मुलाकात अस्सी के दशक के प्रारंभ में उस समय के नामी कवि स्व. प्रेमजी प्रेम ने कराई थी। इसके बाद कई काव्य गोष्ठियों में इनकी रचनाएं सुनी और मुलाकातें भी हुई। एक लंबा अंतराल आ गया मिले हुए। कभी समाचार पत्र में प्रकाशित इनकी रचना और कभी फेसबुक पर जारी रचना के माध्यम से यादें ताजा होती रही। आत्मीय स्नेही अतुल की इन दिनों में कृष्ण और राधा को आधार बना कर फेसबुक पर लिखी जा काव्य रचनाओं से प्रभावित हो इनसे संपर्क साधा। जो कुछ इन्होंने बताया उसका आशय यही था की जब भी सावन आता है इनका अंतस झूम उठता है और पूरे सावन कृष्ण जन्माष्टमी तक भक्ति रस में डूब कर काव्य रचना करते हैं।
भक्ति रस में डूबी एक रचना की बानगी देखिए…………..
निकल पड़ी हूँ कृष्ण तुम्हें तलाशने/ छुप सको तो छुप जाओ कहीं
आकाश से पूछ लूँगी पता तुम्हारा, हवा से तुम्हारी गंध ले लूँगी
चल पड़ूँगी बाँसुरी की आवाज़ की दिशा में कुछ सोचे बिना
लाखों- लाख ठिकाने पता हैं तुम्हारे मुझे मनमोहन
लाखों जन्म मैंने, और किया ही क्या है तुम्हें तलाशने के सिवा/
निकल पड़ी हूँ कृष्ण तुम्हें तलाशने- लेकर होठों पर एक मरुस्थल
तुम घनश्याम हो तो बरसना ही होगा तुम्हें प्यासी मनुहारों पर…
छुपा सको तो , फिर भी छुपा लेना अपने आपको
देखते हैं/ कब तक आत्मा से छुपा रहता है जगत का आलोक
कब तक प्रार्थना से परमानन्द छुपा रहता है…
पिछले कुछ वर्षो से ये निरंतर सावन को ऐसी ही मनभावन भक्ति रस की कविताओं से सरोबार कर देते हैं।
सृजन
कविताओं के साथ-साथ आपने हिंदी और राजस्थानी भाषा में कई कृतियों का लेखन और प्रकाशन करा कर साहित्य की श्रीवृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान किया है। आपने कविता के साथ–साथ व्यंग्य और गद्य को भी अपने लेखन का मजबूत आधार बनाया। पहली किताब पूर्व्या (हिन्दी नवगीत संग्रह) 1997 में प्रकाशित हुई जिसने आपको प्रसिद्धि दिलवाई और आगे नव लेखन के लिए प्रोत्साहित भी किया। किताब लेखन की यात्रा में आपकी दूसरी किताब आओ, बातां कराँ (राजस्थानी कविता संग्रह) आई। सिलसिला जारी रखते हुए जूण जातरा और छेकड़लो रास नमक दो राजस्थानी उपन्यास, चलो, चूना लगाऐं (हिन्दी व्यंग्य संग्रह), मगनधूळ (प्रतिभा शतपथी के उड़िया कविता संग्रह का राजस्थानी अनुवाद,छेकड़लो रास (राजस्थानी उपन्यास), राजस्थानी भासा को मध्यकाल (आलोचना),हेमांणी (रविन्द्रनाथ टैगोर के उपन्यास चोखेर बाली का राजस्थानी अनुवाद), प्रेम में कभी-कभी (हिंदी कविताऐं) और अंतिम तीर्थंकर (हिन्दी उपन्यास) प्रकाशित हुए। आकाशवाणी केंद्र और दूरदर्शन से लगातार प्रसारित होने का सौभाग्य भी मिला। दूरदर्शन के लिए भी आपने कुछ वृत्त चित्र का लेखन किया है।धारावाहिक ‘अलख आजादी की’ जयपुर दूरदर्शन से प्रसारित हुआ।
पुरस्कार
आपके राजस्थानी उपन्यास जूण जातरा को वर्ष 2011 का प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। आपको मेवाड़ रत्न, सहस्त्राब्दि हिन्दी सेवी सम्मान, सृजन साहित्य पुरस्कार, सारंग साहित्य सम्मान जैसे प्रमुख सम्मान सहित अनेक संस्थाओं द्वारा समय -समय पर सम्मानित किया गया।
परिचय
सहज, सरल , संवेदनशील, सरस्वती पुत्र अतुल कनक का जन्म 16 फरवरी 1967 को रामगंजमंडी में हुआ। आपने हिन्दी, अंग्रेजी, इतिहास विषयों में स्नातकोत्तर डिग्रियां प्राप्त की और एमबीए (वित्त) में अध्ययनरत हैं। परिवार पालने के किए माता – पिता का संघर्ष नज़दीक से देखा और महसूस किया। अपने अधिकारों के लिए लड़ना, जीवन की परेशानियों का धैर्य से सामना करना, सच्चाई पर स्वाभिमान के साथ निडर हो कर चलने के गुण माता-पिता से सीख कर अपने जीवन की राह स्वयं बनाई। पंद्रह सोलह साल की उम्र में नैनवा कवि सम्मेलन में देश के विख्यात कवि बालकवि बैरागी जी का भरपूर आशीर्वाद प्राप्त हुआ। आप वर्ष 2004 से 2007 तक राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर की संचालिका का सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य रहे। देश भर के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में साहित्य, कला, समाज संबंधी 10 हजार से अधिक लेखों का प्रकाशन होना और कई समाचार पत्रों के लिए नियमित स्तंभ लेखन आसान नहीं है। ये वर्द्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय और माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान के राजस्थानी पाठ्यक्रमों में शामिल हैं।
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लेखक एवम् पत्रकार
कोटा ( राजस्थान )
मो 9928076940