Thursday, May 2, 2024
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मणिपुर का दर्द

पिछले दिनों एक वीडियो वायरल हुआ जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। यह वीडियो मणिपुर का है जिसमें वहां की कुकी जनजाति की दो महिलाओं के साथ कुछ पुरुषों द्वारा दरिंदगी, यौन उत्पीड़न और अन्य तरह की हैवानियत का मंज़र दीखता है।26 सेकंड की इस क्लिप में महिलाओं को निर्वस्त्र कर उन्हें एक खाली मैदान की ओर ले जाते हुए दिखाया गया है। शर्मसार करने वाली यह वीडियो-क्लिप निश्चित ही हमारे देश की अस्मिता और प्रतिष्ठा को धूमिल ही नहीं करती अपितु यह सोचने पर मजबूर करती है कि ऐसी वीभत्स घटनाएँ,चाहे वे मणिपुर में हुयी हों या फिर मालदा,बिहार या देश के अन्य किसी हिस्से से जुडी हों,आखिर होती क्यों हैं?अभी फिलहाल मणिपुर की बात करते हैं।

मणिपुर में हाल ही में घटित उक्त बहुचर्चित घटना के पीछे कई कारण ज़िम्मेदार हैं,जिन्हें हमें समझना होगा। प्रमुख कारणों में से एक मणिपुर के मैतेई समुदाय द्वारा उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग से जुड़ा है। मणिपुर का कुकी समुदाय मैतेई समुदाय को यह दर्जा देने के पक्ष में नहीं है ।कुकी लोग मैतेई समुदाय के लोगों को एसटी का दर्जा देने का कड़ा विरोध कर रहे हैं, उनका तर्क है कि इस से उनकी नौकरियों तथा अन्य सुविधाओं पर असर पड़ेगा।वे यह भी तर्क देते हैं कि मैतेई आरक्षण के विशेषाधिकार के पात्र नहीं हैं।दरअसल, मणिपुर में हालिया हिंसा मणिपुर हाई-कोर्ट के उस आदेश के बाद खास तौर पर फैली, जिसमें उसने मैतेई समुदाय को भी अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखने को लेकर जरूरी सिफारिश केंद्र सरकार को भेजने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिया और इस तरह से कोर्ट का आदेश पहले से सुलग रही आग को भड़काने का मुख्य बहाना बना।

दूसरा कारण है कुछ क्षेत्रों से ‘सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम’ (एएफएसपीए) का हटाया जाना। इससे सुरक्षा-बल कानूनी सुरक्षा से वंचित हो गए और चाहते हुए भी उपद्रवियों के विरुद्ध कोई सख्त कदम उठाने से हिचकते रहे। तीसरा कारण है बाहरी ताकतों का हस्तक्षेप। प्राप्त जानकारी के अनुसार चीन और म्यांमार मणिपुर के अलगाववादी गुटों को उकसता है, उन्हें हथियारों की आपूर्ति करता है और इस तरह से वहां की स्थिति को खराब कर प्रदेश की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने से नहीं चूकता।

इस के अलावा अफीम की खेती और नार्को-आतंकवाद में वृद्धि के साथ-साथ म्यांमार से अवैध घुसपैठ ने मणिपुर की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है। खबर है कि पहाड़ियों पर बसा कुकी समुदाय अफीम की खेती करता है। चूंकि प्रदेश में और ख़ास तौर पर पहाड़ी इलाकों में बेरोजगारी बहुत है, ऐसे में वहां के बेरोजगार युवकों को अफीम की खेती रास आ रही है। इस के अलावा म्यांमार से लगातार घुसपैठ भी बढ़ी है। म्यांमार से आने वाले लोगों के लिए पहाड़ी इलाकों में आसानी से छिपना और स्थानीय समुदाय के लोगों में लसना-बसना सुगम है। इन लोगों को भी रोज़गार का सबसे आसान तरीका अफीम की खेती लगता है।मैतेई समुदाय का आरोप है कि कुकी अवैध आप्रवासियों की सहायता कर रहे हैं, जिससे भूमि और संसाधनों पर संघर्ष हो रहा है।

मणिपुर में 2017 में सरकार बनाने के बाद से ही भाजपा की कोशिश राज्य में अफीम की खेती और घुसपैठ रोकने की रही है। इसके लिए राज्य सरकार ने पहले ड्रोन के जरिये अफीम की खेती की जानकारी हासिल की। फिर उन्हें नष्ट करने की कोशिश शुरू हुई। कुकी समुदाय को लगा कि इससे उसके रोजगार का साधन छिन जाएगा। इसके बाद से ही कुकी समुदाय नाराज था। रही-सही कसर पूरी कर दी बाहरी फंडिंग से पोषित यहां के सक्रिय उग्रवादी समूहों ने।माना जाता है कि मणिपुर में करीब 26 उग्रवादी समूह सक्रिय हैं। उनमें से एक ऐसा भी है जिसकी कोशिश बांग्लादेश, दक्षिणी म्यांमार और मणिपुर के हिस्सों को मिलाकर अलग देश बनाने की है।

गौरतलब है कि कुछ समय पूर्व मणिपुर में हिंसा के दौरान कुकी-बहुल इलाकों के वन-विभाग के सारे दफ्तर और चौकियां जला दिए गये थे। वन विभाग के दफ्तरों को निशाना इसलिए बनाया गया, क्योंकि अफीम की खेती और मादक पदार्थों की तस्करी की ज्यादातर जानकारी इन्हीं दफ्तरों में रिकार्ड के रूप में रखी गई थी। खबर यह भी है कि मैतेई समुदाय की एक नाबालिग लड़की का कुकी समुदाय के कुछ उग्रवादियों ने आईएसआई की तर्ज़ पर जघन्य हत्या की थी। यह वीडियो नेट पर उपलब्ध है । इसी का बदला लेने के लिए बाद में मैतेई समुदाय के लोग प्रतिहिंसा पर उत्तर आये।

यहाँ पर अस्सी के दशक की एक बात याद आ रही है।केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा आयोजित एक सप्ताह तक चलने वाले किसी आयोजन में भाग लेने के लिए इम्फाल/मणिपुर जाना हुआ। स्वागत-भाषण में स्थानीय आयोजनकर्त्ता ने सभी सहभागियों को समझाया कि कृपया शाम सात बजे के बाद होटल से कहीं बाहर न निकलें।यहाँ माहौल ठीक नहीं है। छिटपुट जातीय उपद्रव कभी भी होते हैं यहाँ। लगभग चालीस साल पहले की यह बात इस बात का प्रमाण है कि मणिपुर भी प्रायः हर-हमेशा कश्मीर की तरह ही अशांत रहा है और हमारी किसी भी सरकार ने वहां की सामजिक-राजनीतिक स्थिति को सुधारने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं किये।

एक बात और. इधर, असामाजिक तत्वों द्वारा सच्चे-झूठे वीडियो और समाचारों को समाज में विषक्त्ता, अशांति और उन्माद फैलाने की गरज़ से वायरल करने की होड़-सी मची हुयी है। क्या सही है और क्या ग़लत, यह निर्णय कर पाना मुश्किल है।सोशल मीडिया पर डाली गयी ऐसी विवादित,भ्रामक और उत्तेजक सामग्री की पड़ताल के लिए आचार-संहिता को और कठोर बनाने की ज़रूरत है।

चंद्रायन द्वारा चाँद तक उड़ान भरने की सुखद कल्पना से भले ही हम रोमांचित हो रहे हों मगर सच यह भी है कि धरती पर घटित हो रही कुत्सित और अमानीय घटनयें हमें उतना ही विक्षुबध और उद्विग्न भी कर रही हैं।मणिपुर इस समय अपने जातीय, धार्मिक और सामाजिक-आर्थिक संकट के कठिनतम दौर से गुजर रहा है, इसलिए वहां पर स्थायी स्थिरता और सद्भाव को बहाल करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।

DR.S.K.RAINA
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
MA(HINDI&ENGLISH)PhD
Former Fellow,IIAS,Rashtrapati Nivas,Shimla
Ex-Member,Hindi Salahkar Samiti,Ministry of Law & Justice
(Govt. of India)
SENIOR FELLOW,MINISTRY OF CULTURE
(GOVT.OF INDIA)
2/537 Aravali Vihar(Alwar)
Rajasthan 301001
Contact Nos; +919414216124, 01442360124 and +918209074186
Email: [email protected],
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http://www.setumag.com/2016/07/author-shiben-krishen-raina.html

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