मुम्बई में संस्मरण की दो किताबों पर चर्चा शानदार और यादगार रही। रविवार 10 दिसंबर 2023 को चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई की ओर से मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट गोरेगांव में आयोजित इस कार्यक्रम में उद्घोषक ममता सिंह ने कवि आलोचक डॉ विजय कुमार की किताब #शहर_जो_खो_गया से दो संस्मरणों का पाठ किया। एक में हमारी स्मृतियों में दर्ज मरीन ड्राइव का बदलता चेहरा था और दूसरे में उर्दू कथाकार इस्मत चुगताई का बेलौस व्यक्तित्व था।
उद्घोषक यूनुस ख़ान ने कथाकार जितेंद्र भाटिया की किताब #कंक्रीट_के_जंगल_में_गुम_होते_शहर से सिने जगत के उस कालखंड को पेश किया जब मुंबई की श्वेत श्याम फ़िल्मों ने बोलना शुरू किया था। दोनों पुस्तकों से पढ़े गए संस्मरणों के कथ्य, भाषा और अभिव्यक्ति में एक जादुई असर था। श्रोतागण इससे काफी प्रभावित दिखाई पड़े।
अपनी पुस्तक की रचना प्रक्रिया पर बात करते हुए विजय कुमार ने कहा कि मुंबई में दो ही वर्ग हैं। यहां गांव और क़स्बों से उजड़ कर आने वाला एक मेहनतकश वर्ग है जो मनुष्य से एक दर्जा नीचे का जीवन जीता है। दूसरा सुविधा सम्पन्न कारोबारी अमीर वर्ग है। यह शहर बहुत सारे विरोधाभासों को ढोता है। मैंने जो लिखा है वह समुद्र में बूंद के बराबर है।
जितेंद्र भाटिया ने कहा कि हमारे यहां कभी रंगमंच का इतिहास नहीं लिखा गया। रंगमंच का इतिहास कोलकाता से शुरू होता है। 18वीं सदी में कोलकाता के थिएटर में एक टिकट का दाम एक अशर्फी होता था। मैंने इस इतिहास को दर्ज करने की कोशिश की है। उल्लेखनीय है कि जितेंद्र भाटिया ने अपनी किताब में पांच शहरों को शामिल किया है। ये हैं लाहौर, चेन्नई, मुंबई, कोलकाता और जयपुर।
दोनों पुस्तकों पर बड़ी जीवंत चर्चा हुई। दोनों लेखकों से कई सवाल पूछे गए जिनका उन्होंने विस्तार से जवाब दिया। इलाहाबाद से पधारे प्रतिष्ठित लेखक चित्रकार अशोक भौमिक, प्रोफ़ेसर राम बक्ष, अनूप सेठी, रमन मिश्र, अमर त्रिपाठी, गंगा शरण, डॉ उषा मिश्रा, रीता दास राम, मोहनी नेवास, श्रीमती कमल और शशि शर्मा ने अपनी सक्रिय भागीदारी से पुस्तक चर्चा को ख़ूबसूरत अंजाम तक पहुंचाया।
अमेरिका से पधारे प्रतिष्ठित कवि बद्रीनाथ वर्मा ने कार्यक्रम की शुरुआत में काव्य पाठ किया। जीवन और समाज से जुड़ी तथा संवेदना से भरपूर उनकी कविताओं को श्रोताओं ने भरपूर सराहा। यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कॉन्सिन, औशकॉश, यूएसए में गणित के प्रोफेसर रह चुके बद्रीनाथ वर्मा हिंदी के कवि एवं अनुवादक हैं। वे मोहन वर्मा उपनाम से लेखन करते हैं। उनका एक कविता संग्रह प्रकाशित है- ‘बूँद से नदी तक : एक कविता यात्रा’। कन्नड़ साहित्यकार पेरुमाल मुरुगन की कई कृतियों का अनुवाद कर चुके वर्माजी ने “सामाजिक न्याय और चेतना की भारतीय कविताएँ” (एन्थोलॉज़ी) का सम्पादन भी किया है। देवमणि पांडेय ने कार्यक्रम का संचालन किया।