सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायमूर्ति की अध्यक्षता वाली पांच न्याय मूर्तियों की संवैधानिक पीट ने सर्वसम्मत से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 की समाप्ति को वैध कर दिया है। अनुच्छेद-370 भारतीय संविधान का एक प्रावधान था। यह जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता था। अनुच्छेद-370 भारत के संविधान की उपादेयता और प्रासंगिकता को सीमित कर रहा था। यह अनुच्छेद-1 की भावना को भी उल्लंघन कर रहा था, जो प्रावधान करता है कि “भारत राज्यों का संघ होगा”, लेकिन अनुच्छेद-370 अपने विशिष्ट और स्वायत्त संवैधानिक महत्ता के कारण इस भावना को अतिक्रमण करता था अर्थात “एक विधान, एक प्रधान और एक निशान” की भावना को अपारसंगिक कर देता था।
अनुच्छेद-370 के तहत भारत के संवैधानिक प्रधान को आवश्यकता पड़ने पर किसी भी बदलाव के साथ संविधान के किसी भी भाग को अनुप्रयोग करने की शक्ति थी लेकिन इसके लिए राज्य के विधान मंडल से सहमति/अनुसमर्थन लेना आवश्यक था। अनुच्छेद-370 के संवैधानिक हैसियत के आधार पर भारत की संसद (सर्वोच्च पंचायत) को विदेश मामले, संचार और रक्षा के संबंध में राज्य में विधि विनियमित करने की शक्तियां थी। जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का गठन 1951 में किया गया था।तत्कालीन समय में संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 75 थी।
इसी संविधान सभा ने जम्मू-कश्मीर का मसौदा तैयार किया था। वर्तमान सरकार की राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अनुच्छेद-370 और 35A को राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत बड़ा रोड़ा मानती थी, जो अपने चुनावी घोषणा पत्र में अनुच्छेद-370 और 35A को हटाने के लिए संकल्पित थी। अनुच्छेद-35A को वर्ष 1954 में भारत के संविधान में शामिल किया गया था। यह प्रावधान जम्मू-कश्मीर के स्थाई निवासियों को सरकारी रोजगार, राज्य में संपत्ति अर्जित करने और राज्य में आवासीय अधिकार को विशेष संरक्षण प्रदान करता था, जो भारत के अन्य नागरिकों से विशिष्ट उपादेयता प्रदान करता था।
5 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति महोदय ने एक संवैधानिक निर्देश जारी किया था, इससे संविधान में संशोधन हुआ था। इसमें कहा गया था कि राज्य की संविधान सभा के संदर्भ का आशय है राज्य की विधानसभा होगी। राज्य की सरकार राज्य के राज्यपाल के समकक्ष होगा। अनुच्छेद-370 का संशोधन पारित हुआ, तत्कालीन समय में राज्य में राज्यपाल शासन (राष्ट्रपति शासन) लागू था। सामान्य परिस्थितियों में संशोधन को कार्यान्वित करने के लिए राज्य विधानमंडल का अनुसमर्थन और अनुमोदन आवश्यक था, लेकिन तत्कालीन समय में राष्ट्रपति शासन के कारण विधानमंडल की सहमति आवश्यक नहीं थी। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने कहा है कि राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की ओर से लिए गए केंद्र के फैसलों को चुनौती नहीं दी जा सकती है।
अनुच्छेद-370 युद्ध जैसी स्थिति में एक अंतिम प्रावधान था। इस प्रकरण को ध्यान से देखें तो यह एक स्थाई प्रावधान था। भारत में विलय के पश्चात जम्मू-कश्मीर के पास आंतरिक संप्रभुता का अधिकार नहीं है। मुख्य न्यायाधीश के अनुसार, राष्ट्रपति को अनुच्छेद-370 हटाने का अधिकार है। उनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं है और भारत के संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर क्रियान्वित हो सकते हैं। अनुच्छेद-370 (3) के तहत राष्ट्रपति को अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावित करने का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद-1 और अनुच्छेद-370 से स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न भाग है। माननीय न्यायालय का आदेश है कि भारत का चुनाव आयोग 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए ठोस एवं प्रभावी कदम उठाए। हम संविधान के अनुच्छेद-370 को हटाने के लिए राष्ट्रपति महोदय की ओर से संवैधानिक आदेश जारी करने की शक्ति को संवैधानिक वैधता प्रदान करते हैं। हम निर्देश देते हैं कि भारत का निर्वाचन आयोग 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए ठोस कदम उठाए।
1. जम्मू-कश्मीर के पास भारत में विलय के पश्चात आंतरिक संप्रभुता का अधिकार नहीं है।
2. राष्ट्रपति शासन (राज्यपाल शासन) की घोषणा को चुनौती देना असंवैधानिक है।
3. अनुच्छेद-370 का अस्थायी एवं संक्रमण कालीन प्रावधान था।
4. संविधान सभा भंग होने के पश्चात हुए राष्ट्रपति के आदेश पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
5. राष्ट्रपति का निर्णय जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को बेहतर भविष्य के लिए था, इसके लिए राज्य से सहमति लेना आवश्यक नहीं था।
6. लद्दाख को अलग केंद्र-शासित बनाना वैध है।
7. जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए त्वरित और शीघ्र कदम सरकार को उठाना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और यह संवैधानिक भावना अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद-370 का मूल भाव है। जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय के दौरान अधि राज्य (डोमिनियन स्टेटस) था, ऐसी स्थिति में भारत के राष्ट्रपति, जो राज्य प्रधान है और संवैधानिक प्रमुख है को अधिसूचना पारित करने का संवैधानिक व अनन्य अधिकार है।राष्ट्रपति संविधान सभा के अनुशंसाओं से सीमित नहीं है। राष्ट्रपति शासन (राज्यपाल शासन) के दौरान संघीय विधायिका का राज्य विधायिका पर नियंत्रण होता है अर्थात राज्य सूची संघ सूची के क्षेत्र में विस्तारित हो जाता है। अनुच्छेद-370 किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं प्रदान करता है। भारत में इसका लागू रहना नागरिकता, भेदभावपूर्ण स्थिति और मूल ढांचे की भावना के विपरीत है। यह संघवाद के भावना के विपरीत है। अनुच्छेद-370 के हटने के पश्चात बंधुता में बढ़ोतरी हुई है, उन्नति और एकता का भाव जागृत हुआ है। इसने राष्ट्रीय एकता के मूल भाव को उन्नयन किया है जो प्रस्तावना के बृहद आयाम को रेखांकित करता है। इसके हटाने से एक सशक्त मजबूत और एकजुट भारत का निर्माण हुआ है। अनुच्छेद-370 के हटाए जाने के पश्चात अलगाववाद के विचारधारा को करारा जवाब मिला है। अनुच्छेद-370 हटाने के पश्चात कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में 97 फीसदी की कमी, सीमा पार से घुसपैट में 90 फीसदी की कमी और आतंकी हमले की घटनाओं में 43 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। गरीबी और बेरोजगारी की प्रतिशत (फीसदी) में काफी गिरावट दर्ज की गई है। वंचित वर्गों को जीवन के अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और पूजा-अर्चना के अधिकार का सुरक्षा मिला है। अनुच्छेद-370 हटाने के पश्चात पोल्ट्री क्षेत्र में स्थिरता और आत्मनिर्भरता प्राप्त हुआ है। जम्मू और कश्मीर कृषि उत्पादन विभाग के अनुसार, घाटी में कृषि और समग्र क्षेत्र में गुणात्मक विकास हुआ है। पर्यटन क्षेत्र में गुणात्मक विकास हुआ है। इससे क्षेत्रीय लोगों के आय में आशाजनक वृद्धि हुई है।
(लेखक सहायक आचार्य,स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज,दिल्ली विश्वविदयालय दिल्ली एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)