लेखिका श्यामा शर्मा से साहित्यकार विजय जोशी का साक्षात्कार
संस्मरण शैली और विधा पर विश्लेषणात्मक रूप से हाड़ौती अंचल में संस्मरणात्मक पुस्तकों पर प्रसंगानुसार विवेचना करते हुए कथाकार-समीक्षक विजय जोशी के पूछने पर साहित्यकार श्यामा शर्मा ने अपना संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए बताया कि गीत और कथा का माहौल बचपन से देखने को मिला और जीवन साथी वरिष्ठ साहित्यकार जितेन्द्र निर्मोही के निर्देशन में इन गीतों और कथाओं को साकार करने का अवसर मिला। बस जबसे ही लिखना आरम्भ कर दिया। बाल साहित्यकार श्यामा शर्मा से यह साक्षात्कार हाल ही में कोटा में राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय द्वारा आयोजित पांच दिवसीय संभाग स्तरीय पुस्तक मेले के एक सत्र में लिया गया। यह अकेला साक्षात्कार था जिसे राजस्थानी भाषा में किया गया।
रचनात्मक परिवेश और सृजन सन्दर्भ पर बात करते हुए जब विजय जोशी ने पूछा कि राजस्थानी लोक कथाओं को लिखने एवम् बाल कविताओं का सृजन करने के साथ संस्मरण लिखने की प्रेरणा कैसे मिली ? तो श्यामा शर्मा ने बताया कि कथाओं को सुनने-सुनाने के समय मन में आया कि बचपन में जो अनुभव किया उसे भी तो लिखूँ। बस एक दिन निर्मोही साहब को नदी के स्नान और अन्य बातों की लिखावट के पन्ने दिखाई दिये तो उन्होंने गम्भीरता से कहा कि यह तो अद्भुत है। इन्हें कहानी नहीं संस्मरण रूप में लिखो तो यह एक प्रेरक दस्तावेज़ बन जाएगा। बस यह प्रेरणा मेरे संस्मरण लिखने का मार्ग बन गई और एक राजस्थानी संस्मरण की यह किताब सामने आ गई।
जोशी ने अपने समय की यादों के साथ व्यक्ति के स्वयं से बतियाने और अपनी स्मृतियो को विस्तार प्रदान करने की भावाभिव्यक्ति को गहनता से विश्लेषित करते हुए जब साहित्यकार श्यामा शर्मा से इन्हीं स्मृतियों को शब्द प्रदान कर अविस्मरणीय दस्तावेज़ के रूप में पोथी का स्वरूप प्रदान कर “वै दन वै बातां ” में व्यक्त करने पर पूछा कि इसमें कितने संस्मरण हैं और क्या अभिव्यक्त करते हैं तो लेखिका श्यामा शर्मा ने बताया कि इसमें- अस्यो छै म्हारो गांव कारवाड़, ब्याव में बैलगाड़ी सूं जाबो अर मरद लुगायां को सिणगार, सेठजी की बेटी को ब्याव, भण्डो सीरो, काली भाई, पिताजी का सराद, म्हारा गांव की दवाळी, धूण्यां लोक कथावां की अखूट परंपरा, खेतां में पानसी तौड़बा जाबो, नन्दी को अस्नान, बाळपणा की बातां, जद म्हूँ अठन्नी नगळगी, जीजीबाई का ब्याव का लाडू, पाटा कै नीचै सांप अर वै भी कांई दन छा जैसे पन्द्रह संस्मरण हैं जो मेरे बचपन, गाँव के परिवेश और जीवन की घटनाओं पर आधारित हैं जो मुझे सदैव प्रेरित भी करते हैं और गुदगुदाते भी हैं।
संस्मरण पढ़ते हुए जितना रोमांच होता है उससे कहीं अधिक उसे सुनने में होता है को उजागर कर जब विजय जोशी ने पाटा कै नीचै सांप की बात कहते हुए इससे उत्पन्न भय और रोमांच की बात सुनाने की कही तो लेखिका श्यामा शर्मा ने ‘पाटा कै नीचै सांप’ घटना को संस्मरण शैली में सुनाकर रोमांचित कर दिया।
पाटे के नीचे सांप के बाद यह भाव नदी स्नान की बाल सुलभ चेष्टा में भी उभरे हैं को स्मरण कराते हुए जब संवाद कर्ता विजय जोशी ने पुस्तक में संकलित बचपन की इस घटना का प्रसंग दिया तो लेखिका श्यामा शर्मा ने ‘नन्दी को अस्नान’ सुनाकर श्रोताओं को बालपन की स्वाभाविकता और नटखटता से सराबोर कर दिया। लेखिका श्यामा शर्मा ने लेखन और प्रकाशन के साथ रचना प्रक्रिया से सम्बन्धित युवाओं के लिए सार्थक सन्देश प्रदान किया।
पोथी का विस्तार से परिचय देते हुए जितेंद्र निर्मोही बताते हैं राजस्थानी महिला संस्मरण साहित्य घणौ रुपाळौ छै। ऊं साहित्य कांई छै दस्तावेज छै जस्यां। डॉ तारा लक्ष्मण गहलोत की पोथी “ओळू रो आरसी” होवै चावै कमला कमलेश की ” वहां दनां की बातां ” दोन्यू पोथ्यां माइल स्टोन छै। डॉ तारा लक्ष्मण गहलोत की हवीजाज मौसी अरे कमला कमलेश की ऊंट की बणा पाठक भूल न सकै।
यां दना श्यामा जी की पोथी” वै दन वै बातां” आई हुई छै ।या पोथी भी दस्तावेज जसी छै। संस्मरण में छै- गांव कारवाड़, बैलगाड़ी सूं ब्याव में जाबो,मरद लुगायां को सिंगार, सेठजी को ब्याव,भसन्डो सीरो,काली भाई, पिता जी को सराद,म्हारा गांव की दवाळी,धूण्यां,खेतां में पानसी तौड़बा जाबो,नंदी को अस्नान,बाळपणा की बातां, अठन्नी नगलबो,जीजी भाई का ब्याव का लाडू,पापा कै नीचै सांप,कर वै भी कांई दन छा अध्याय छै। समालोचक डॉ नीरज दइया की कहन की या रळयावणी भासा जीमें भासा कर शिल्प की जुगलबंदी देखबा में मलै छै। डॉ बद्री प्रसाद पंचौली का सबदा में या संस्मरणा में गांव गर्याला का सबद चासनी की नांई डूब्या डूब्या लागै छै।
पहला अध्याय में गांव को रुपाळोपणो बेवरिया की नगरी करवाड़ का रुंख हरियाली नंदी नाला , गांव को भूगोल देवी देवता आद छै। दूजा अध्याय में ब्याव में सपरिवार बैलगाड़ी सूं जाबो, गाड़ी बैल को संभालणौ,मरद लुगायां का सिंणगार,तीजा अध्याय में गांव का सेठ जी को ब्याव गांव में कागज़ की तीतर्यां को बांधबो बालपणा की तीतर्यां देखबा की नजर ब्याव की हूंस मौज मस्ती,चौथो अध्याय मोज मस्ती को लेखिका का मामा का लड़का को दिल्ली जस्या सहर सूं गांव में आबो बंद्याक बणबौ अर मीठा का नांव सूं काला गुड़ को सीरो खाबो उकताबो अर फैर बैसन की चक्की का दरसन,काली बाई एक रेखाचित्र की नांई छै गूंगी बहरी छोरी को नांव काली छोरा छोरी जीकै तांई चरडावै वा चरड’र भाटा फांकै एक भाटो लेखिका का करमटा पै आण लागै फैर ऊं को डाट खाबो।बालपणो मासूमियत सूं भर्यो रै छै कोई का सुख दुख सूं निर्लिप्त हो’र जीबो,अस्यो ई एक संस्मरण छै ” पिता जी को सराद” घर में खीर पुड़ी बणी छै लेखिका को बालपणो आनंद मना र्यो छै ,पण मां रो री छै ।बाल सुलभ सुभाव मां सूं पूछै छै”तू कांई बेई रो री छै? पहल्यां गांव की दवाली का आनंद ई ओर रै छा ,लिपाई पुताई गाय बैला का साज सिणगार धूमधाम या सब छै” म्हारा गांव की द्वाली” में, धूण्यां पहल्यां बातपोशी को साधन हौवै छी यां सूं एक भूत को किस्सों खडै छै जो हकीकत में होवै ई न्ह।खेतां में पानसी तौड़बा जाबो खेत खलाण का चतराम छै।नंदी को अस्नान एक शानदार संस्मरण छै ज्यों बाळपणा की उटंग नै बतावै छै।
लेखिका को अठन्नी नगलबो भी अस्यौ ई संस्मरण छै दही की मलाई कै लारै अठन्नी भी पेट में चलीगी,पराणा ब्याव शादी होबा के बाद बच्या खुच्या लाडू अर पड्यां खासा की याद दुआवै छै।”पापा की नीचै सांप” एक रोमांचक संस्मरण छै।” वौ भी कांई दन छा” संस्मरण घर,परवार स्कूल समाज का परिवेश की याद दुआवै छै।
लेखिका श्यामा शर्मा का पंद्रा संस्मरण की या पोथी पुराणा जमाना ई ले’र एक दस्तावेज जसी छै।ई में गांव गर्याला खेत खलाण नंदी ब्याव शादी गांव की रकाण गांव को सौंदर्यबोध , प्रकृति, मेलजोल, भाई चारो देखबा में मलै छै। पोथी में घणासारा गम्यौडा सबद भी यादां की ला’र तरता दखै छै।
या पोथी भी एक दस्तावेज की नांई छै ।