Wednesday, April 2, 2025
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प्राचीन भारतीय खेल साँप सीढ़ी

भारत मे ‘सांप सीढी’ और विश्व मे ‘स्नेक अँड लेडर्स’ इस नाम से प्रसिद्ध इस खेल की खोज भारत मे ही हुई है। इसका पहले का नाम ‘मोक्ष पट’ था. तेरहवी सदी मे संत ज्ञानेश्वर जी (वर्ष 1272 – वर्ष 1296) ने इस खेल का निर्माण किया।

ऐसा कहा जाता है की संत ज्ञानेश्वर और उनके बडे भाई संत निवृत्तीनाथ, भिक्षा मांगने के लिये जब जाते थे, तब घर मे उनके छोटे भाई सोपानदेव और बहन मुक्ताई के मनोरंजन के लिए, संत ज्ञानेश्वर जी ने यह खेल तैयार किया।

इस खेल के माध्यम से छोटे बच्चों पर अच्छे संस्कार होने चाहिए, उन्हे ‘क्या अच्छा, क्या बुरा’ यह अच्छी तरह से समझ मे आना चाहिए, यह इस मोक्षपट की कल्पना थी। सामान्य लोगों तक, सरल पध्दति से अध्यात्म की संकल्पना पहुंचे, इस हेतू से इस खेल की रचना की गई है।

साप यह दुर्गुणोंका और सीढी यह सद्गुणोंका प्रतीक माना गया। इन प्रतिकों के माध्यम से बच्चों पर संस्कार करने के लिए इस खेल का उपयोग किया जाता था।

प्रारंभ मे, मोक्षपट यह खेल 250 चौकोन के साथ खेला जाता था। बाद मे मोक्षपट का यह पट, 20×20 इंच के आकार मे आने लगा। इसमे पचास चौकोन थे। इस खेल के लिए 6 कौडीयां आवश्यक थी। यह खेल याने मनुष्य की जीवन यात्रा थी।

डेन्मार्क के प्रोफेसर जेकब ने ‘भारतीय संस्कृती परंपरा’ इस परियोजना के अंतर्गत मोक्षपट पर बहुत रिसर्च किया है। प्रोफेसर जेकब ने कोपनहेगन विश्वविद्यालय से ‘इंडोलॉजी’ इस विषय पर डॉक्टरेट की है। प्राचीन मोक्षपट इकठ्ठा करने के लिए उन्होने ने पूरे भारत का भ्रमण किया। अनेक मोक्षपट का उन्होने संग्रह किया। कुछ जगह पर इसी को ‘ज्ञानचोपड’ कहा जाता था। प्रोफेसर जेकब को प्रख्यात शोधकर्ता और मराठी साहित्यिक रा. चिं. ढेरे के पांडुलिपियों के संग्रह मे दो प्राचीन मोक्षपट मिले। इन मोक्षपट में 100 चौकोन थे। इसमे पहला घर जन्म का और अंतिम घर मोक्ष का होता था। इसमे 12 वा चौकोन यह विश्वास का या आस्था का होता था। 51वां घर विश्वसनीयता का, 57 वा शौर्य का, 76 वा ज्ञान का और 78वा चौकोन तपस्या का होता था। इनमे से किसी भी चौकोन मे पहुंचने वाले खिलाडी को सीढी मिलती थी, और वह खिलाडी उपर चढता था।

इसी प्रकार सांप जिस चौकोन मे रहते थे, वह चौकोन दुर्गुणों का प्रतिनिधित्व करते थे। 44 वा चौकोन अहंकार का, 49 वा चौकोन चंचलता का, 58 वा चौकोन झूठ बोलने का, 84 वा चौकोन क्रोध के लिए और 99 वा चौकोन वासना का रहता था। इन चौकोनो मे जो खिलाडी आते थे, उनका पतन निश्चित था।

भारत में रामदासी मोक्षपट, वारकरी मोक्षपट, (ज्ञानेश्वर जी का मोक्षपट, गुलाबराव महाराज का मोक्षपट) आदी प्रचलित थे. रामदासी मोक्षपट मे  38 सीढीयां और 53 सांप थे। समर्थ रामदासजीने राम कथा को संस्कार रूप से बच्चों तक पहुंचाने के लिए इसका उपयोग किया।

1892 मे यह खेल इंग्लंड मे गया। वहां से युरोप में ‘स्नॅक अँड लेडर्स’ इस नाम से लोकप्रिय हुआ। अमेरिका मे यह खेल, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, वर्ष 1943 मे पहुंचा। वहां इसे ‘शूट अँड लैडर्स’ कहते है।

ताश
सामान्यतः यह माना जाता है की, दुनिया मे बडे पैमाने पर खेले जाने वाले पत्तों के (ताश / कार्ड) खेल का उद्गम, नवमी सदी मे चीन मे हुआ है। गुगल, विकिपीडिया सब जगह यही उत्तर मिलता है। लेकिन यह सच नही है। भारत में प्राचीन काल से पत्तों का खेल खेला जा रहा है। केवल इसका नाम अलग था. इसका नाम था ‘क्रीडापत्रम’..!

भारत मे जो मौखिक / वाचिक इतिहास चलता आ रहा है, उसके अनुसार साधारणतः देढ हजार वर्ष पूर्व, भारत मे राजे रजवाडो मे, उनके राज प्रासादोंमे ‘क्रीडापत्रम’ यह खेल खेला जाता था।

‘A Philomath’s Journal’ के 30 नवंबर 2015 के अंक मे एक लेख आया है – ‘Popular Games and Sports that Originated in Ancient India’। इस लंबे-चौड़े लेख मे ठोस रूप से यह बताया गया है कि, ‘क्रीडापत्रम’ इस नाम से पत्तों का खेल, भारत मे बहुत पहले से था। इस का अर्थ है, ‘भारत ही पत्तों के (ताश के) खेल का उद्गम देश है’।

मुगल कालीन इतिहासकार अबुल फजल ने इस खेल के संबंध में जो जानकारी लिखकर रखी है, उसके अनुसार पत्तों का यह खेल भारतीय ऋषीओंने बनाया है। उन्होने 12 यह आकडा रखा। हर पैक मे बारा पत्ते रहते थे। राजा और उसके 11 सहयोगी, ऐसे 12 सेट. अर्थात 144 पत्ते। लेकिन आगे चलकर मुगलो ने जब इस खेल को ‘गंजीफा’ के रूप मे स्वीकार किया, तब उन्होने 12 आंकडा तो वैसा ही रखा, लेकिन ऐसे 12 पत्तों के आठ सेट तैयार किये। अर्थात गंजीफा खेल के कुल पत्ते हुए 96।

मुगलों के पहले के जो ‘क्रीडापत्रम’ मिले है, वे अष्टदिशाओं के प्रतीक के रूप मे आठ सेटो मे थे। कही – कही 9 सेट थे, जो नवग्रहों का प्रतिनिधित्व करते थे। श्री विष्णू के दस अवतारों के प्रतीक के रूप मे 12 पत्तों के दस सेट भी खेल मे दिखते है। मुगल पूर्व काल के सबसे अधिक पत्तों के सेट, ओरिसा मे मिले है।

पहले के यह पत्ते गोल आकार मे रहते थे। राज दरबार के नामांकित चित्रकार उस पर नक्काशी करते थे। ये सब पत्ते हाथों से तैयार किये हुए, परंपरागत शैली मे होते थे।

शतरंज, लूडो, साप सीढी, पत्ते (ताश) यह सब बैठकर खेलने वाले खेल है. अंग्रेजी में इसे ‘बोर्ड गेम’ या ‘इनडोअर गेम’ कहा जाता है. विश्व में यह खेल सभी आयु के लोगों मे प्रिय है। हमारे लिए गर्व की बात है कि, ये सब खेल भारत ने दुनिया को दिये हैं..!


(क्रमशः)
–   प्रशांत पोळ – जाने माने लेखक हैं और भारत के ऐतिहासिक, राजनीतिक व साँस्कृतिक इतिहास पर शोधपूर्ण लेखन करते हैं, इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है)
(आगामी ‘भारतीय ज्ञान का खजाना – भाग 2’ इस पुस्तक के अंश)

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