हमारे देश में भगवान श्री गणेश के मन्दिरों की समृद्ध शृंखला में रणथंभौर दुर्ग के भीतर भव्य त्रिनेत्र गणेश मन्दिर का महत्व न केवल राजस्थानवासियों के लिये हैं बल्कि सम्पूर्ण देश में यह मन्दिर चर्चित एवं लोकप्रिय है। सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के भीतर विश्व ऐतिहासिक विरासत में शामिल रणथंभोर दुर्ग में भगवान गणेश का यह मंदिर स्थित है । इस मंदिर में जाने के लिए लगभग 1579 फीट ऊँचाई पर भगवान गणेश के दर्शन हेतु जाना पड़ता है । यह मंदिर विदेशी पर्यटकों के बीच भी आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। ऐतिहासिक एवं प्राचीन काल का होने के कारण इस मंदिर की बड़ी मान्यता है। आस्था और चमत्कार की ढेरों कहानियां खुद में समेटे यह मन्दिर प्रकृति एवं प्राचीनता का भी अद्भुत संगम है।
अरावली और विन्ध्याचल पहा़िडयों के मनोरम परिवेश एवं प्रकृति की गोद में बने इस मन्दिर तक पहुंचने के लिये भक्तों को रणथम्भौर दुर्ग के भीतर कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद त्रिनेत्र गणेशजी के दर्शन होते हैं तो हृदय में श्रद्धा और आस्था का अगाध सागर उमड़ आता है, श्रद्धालु अपनी थकान त्रिनेत्र गणेशजी की मात्र एक झलक पाकर ही भूल जाते हैं।
भारत के कोने-कोने से लाखों की तादाद में दर्शनार्थी यहाँ पर भगवान त्रिनेत्र गणेशजी के दर्शन हेतु आते हैं और कई मनौतियां माँगते हैं, जिन्हें भगवान त्रिनेत्र गणेश पूरी करते हैं। भगवान गणेश शिक्षा, ज्ञान, बुद्धि, सौभाग्य और धन के देवता हैं। श्री गणेश सभी दुःख, पीड़ा, अशुभता और कठिनाइयों को हर लेते हैं। जो भी यहाँ सच्ची आस्था और भक्ति के साथ आता है और सच्चे मन से कोई भी मनौती करता है तो उसकी हर मनोकामना पूरी करते हुए गणेशजी उसको ज्ञान, सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करते हैं। मनोकामना करने वाले हर व्यक्ति की चाहे विवाह की कामना हो, व्यापार में उन्नति की कामना हो, ऊंच्चे अंकों से परीक्षा पास करने की कामना हो, ऐसी हर कामना को त्रिनेत्र गणेशजी पूरी करते हैं। न केवल राजस्थान बल्कि देश के सुदूर क्षेत्रों के श्रद्धालु लोग अपने घरों में होने वाले हर मांगलिक कार्य और विशेषतः विवाह का पहला निमंत्रण त्रिनेत्र गणेशजी को ही प्रेषित करते हैं। यहां विवाह के दिनों में हजारों वैवाहिक निमंत्रण त्रिनेत्र गणेशजी के नाम से पहुंचते हैं।
त्रिनेत्र गणेश मन्दिर से जुड़ी तमाम ऐतिहासिक एवं धार्मिक किंवदतियां भी है। इस गणेश मंदिर का निर्माण महाराजा हमीरदेव चैहान ने करवाया था लेकिन मंदिर के अंदर भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है। राजा हमीर और अल्लाउद्दीन खिलजी के बीच में सन् 1299 से युद्ध अनेक वर्षों तक चला। इस युद्ध के दौरान राजा हमीर के स्वप्न मे भगवान गणेश ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी विपत्ति जल्द ही दूर हो जाएगी। उसी सुबह किले की एक दीवार पर तिनेत्र गणेशजी की मूर्ति अंकित हो गयी। जल्द ही युद्ध समाप्त हो गया । राजा हमीरदेव ने गणेश द्वारा इंगित स्थान पर मूर्ति की पूजा की।
किंवदंती के अनुसार भगवान राम ने जिस स्वयंभू मूर्ति की पूजा की थी उसी मूर्ति को हमीरदेव ने यहाँ पर प्रकट किया और गणेशजी का मन्दिर बनवाया। इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहाँ भगवान गणेशजी अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी- रिद्दि और सिद्दि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है। भारत में चार स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते हंै, जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेशजी प्रथम है। इस मंदिर के अलावा सिद्दपुर गणेश मंदिर गुजरात, अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन एवं सिहोर मंदिर मध्यप्रदेश में स्थित है।
यह भी कहा जाता है कि भगवान राम ने लंका कूच करते समय इसी गणेश का अभिषेक कर पूजन किया था। अतः त्रेतायुग में यह प्रतिमा रणथम्भौर में स्वयंभू रूप में स्थापित हुई और लुप्त हो गई।
एक और मान्यता के अनुसार जब द्वापर युग में भगवान कृष्ण का विवाह रूकमणी से हुआ था तब भगवान श्रीकृष्ण गलती से गणेशजी को बुलाना भूल गए जिससे भगवान गणेश नाराज हो गए और अपने मूषकों को आदेश दिया की विशाल चूहों की सेना के साथ जाओ और श्रीकृष्ण के रथ के आगे सम्पूर्ण धरती में बिल खोद डालो। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण का रथ धरती में धँस गया और आगे नहीं बढ़ पाये। मूषकों के बताने पर भगवान श्रीकृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और रणथम्भौर स्थित जगह पर गणेश को लेने वापस आए, तब जाकर श्रीकृष्ण का विवाह सम्पन्न हुआ। तब से भगवान गणेश को विवाह व मांगलिक कार्यों में प्रथम आमंत्रित किया जाता है। यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते हैं।
रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेशजी दुनिया के एक मात्र गणेश है जो तीसरा नयन धारण करते हैं । गजवंदनम् चितयम् में विनायक के तीसरे नेत्र का वर्णन किया गया है, लोक मान्यता है कि भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी स्वरूप अपने पुत्र गणेश को सौंप दिया था और इस तरह महादेव की सारी शक्तियाँ गजानन में निहित हो गई। महागणपति षोड्श स्त्रौतमाला में विनायक के सौलह विग्रह स्वरूपों का वर्णन है। महागणपति अत्यंत विशिष्ट व भव्य है जो त्रिनेत्र धारण करते हंै, इस प्रकार ये माना जाता है कि रणथम्भौर के त्रिनेत्र गणेशजी महागणपति का ही स्वरूप है।
हाल ही में रणथम्भौर की यात्रा के दौरान मन्दिर के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मुख्य पूजारीजी से अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई। उन्होंने ही बताया कि भगवान त्रिनेत्र गणेश का शृंगार भी विशिष्ट प्रकार से किया जाता है। भगवान गणेश का शृंगार सामान्य दिनों में चाँदी के वरक से किया जाता है, लेकिन गणेश चतुर्थी पर भगवान का शृंगार स्वर्ण के वरक से होता है, यह वरक मुम्बई से मंगवाया जाता है। कई घंटे तक विधि-विधान से भगवान का अभिषेक किया जाता हैं। प्रतिदिन मंदिर में पुजारी द्वारा विधिवत पूजा की जाती है। भगवान त्रिनेत्र गणेश की प्रतिदिन पांच आरतियां की जाती है। गणेश चतुर्थी पर यहां भव्य मेला लगता है।
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(ललित गर्ग)
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