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राजनांदगांव। लायंस डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन चेयरमैन और रीडर्स क्लब के अध्यक्ष और छत्तीसगढ़ राज्य शिखर सम्मान से अलंकृत दिग्विजय कालेज के प्रोफ़ेसर डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कहा है कि पॉलिथीन छत्तीसगढ़ की ही नहीं, पूरे देश की एक गंभीर समस्या है। इसके खिलाफ अब छत्तीसगढ़ में भी मुहिम छिड़ चुकी है। इन दिनों इसके विरोध के स्वर और समझाइश के साथ दबिश की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं। मीडिया ने भी लोगों को जगाने और सोचने-समझने की नई दिशा देने के लिए प्रभावी अभियान छेड़ रखा है। फिर भी डॉ.जैन का कहना है कि सुविधा का लोभ और सहूलियत की उम्मीद से लोगों के बाज़ आये बगैर पोलीथीन से मुक्ति एक चुनौती है।
डॉ.जैन ने कहा कि महिलाएं कागज के बैग और लिफाफे बनाकर मुफ्त में बांट रही हैं ताकि लोगों में जागृति आए और वे पॉलिथीन के मोह को छोड़ें। जैसे-जैसे अभियान जोर पकड़ता जा रहा है, व्यापारी और अन्य कारोबारी भी इससे जुड़ते जा रहे हैं। लोग घरों में ही पेपर बैग बनाने लगे हैं। लेकिन फटाफट लेन-देन की गरज से कहें, पॉलिथीन का इस्तेमाल बंद नहीं हो सका है। लोग घर से खाली हाथ निकलने की आदी हो चुके हैं। लिहाज़ा, कपडे के थैले यानी झोला लेकर बाज़ार जाना शायद उन्हें गवारा नहीं है। इस मानसिकता को बदलना जरूरी है।
डॉ.जैन ने चिंताजनक हालात की चर्चा करते हुए कहा कि पहले हम जब खरीदारी के लिए झोला लेकर जाते थे, तब दुकानदार के पास कागज के लिफाफे या अखबार के टुकड़े होते थे जिनमें वह सामान डाल देता था। लेकिन अब हम पॉलिथीन मांगते हैं। घर जाकर यह पॉलिथीन चली जाती है कूड़ेदान में, पॉलिथीन मवेशी के पेट में जमा होने लगती है और इससे वे कुछ ही दिनों में मर जाती हैं। मंदिरों, ऐतिहासिक धरोहरों, पार्क, अभयारण्य, रैलियों, जुलूसों, शोभा यात्राओं आदि में धड़ल्ले से इसका उपयोग हो रहा है। शहरों की सुंदरता पर इससे ग्रहण लग रहा है। पॉलिथीन न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य को भी नष्ट करने पर आमादा है। पॉलिथीन का उपयोग मनुष्य की आदत में शुमार हो गया है। लगातार इस्तेमाल के कारण आज हर व्यक्ति इसी पर निर्भर दिखाई दे रहा है।
डॉ.जैन ने बताया कि अब कि यह अच्छी बात है कि शहरों को सुंदर, स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त बनाने का बीड़ा महिलाओं ने उठाया है। पेपर बैग बनाकर अभियान चलाया जा रहा है। आस-पास के दुकानदारों को मुफ्त में पेपर बैग भी दे रही हैं। उधर प्रदेश के स्कूलों में पॉलिथीन से पॉल्यूशन को सिलेबस में शामिल कर पढ़ाई का फैसला हाल ही में हुआ है। अब बिलासपुर यूनिवर्सिटी ने भी कॉलेजों के सिलेबस में इसे शामिल करने का निर्णय लिया है। पर्यावरण विषय में पॉलिथीन के दुष्प्रभाव और इससे दैनिक जीवन में क्या-क्या नुकसान होते हैं, यह पढ़ाया जाएगा। बोर्ड ऑफ स्टडीज से मंजूरी मिलते ही यह चैप्टर अगले सत्र से कॉलेजों में पढ़ाया जाने लगेगा। बावजूद इसके डॉ.जैन कहते हैं कि पढ़े हुए को जीने की आदत बनाने की ज़रुरत बनी रहेगी। सुविधा के आदी लोगों को पटरी पर लाना मुश्किल काम है। इसलिए,पोलीथीन पर प्रतिबन्ध को कारगर बनाने लिए सोच में बदलाव के साथ सतत मानिटरिंग जरूरी है।
उठाये जाएँ ये कदम
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कहा कि पर्यावरण की रक्षा के लिए पॉलीथीन पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध तभी कारगर हो सकते हैं,जब उनके लिए कुछ इस तरह कदम उठाए जाएं – पॉलीथीन निर्माण करने वाली फैक्ट्रियों पर कड़ी नजर रखी जाए, जिससे वे मानक के विपरीत इसका निर्माण न कर सकें, दुकानदारों को विकल्प के रूप में जूट एवं कागज के बने थैले सस्ते दामों में और पर्याप्त मात्रा में नियमित रूप से उपलब्ध कराए जाएं, जूट एवं कागज से बने थैलों के निर्माण के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं को प्रोत्साहन दिया जाए, प्लास्टिक के प्रयोग को निरूत्साहित करने के लिए स्कूल और कॉलेज स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं, मानक के विपरीत पालीथिन का उत्पादन या व्यापार करने वालों के विरूद्ध सख्त कार्यवाही की जाए। सामजिक संगठनों के सहयोग से लगातार निगरानी से अच्छे नतीजे मिल सकते हैं बशर्ते जगाने वाले पहले खुद उसे अमल में लाएं।
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