दो टूक : कहते हैं जीतने के लिए सिर्फ हौंसले और जोश ही काफी नहीं होते बल्कि उनके साथ सोच समझ और सच का होना भी जरुरी है. निर्देशक रेमो डिसूजा की वरुण धवन, श्रद्धा कपूर, प्रभुदेवा, राघव जुयाल, पुनीत पाठक, धर्मेश येलांदे, लॉरेन और प्राची शाह के अभिनय वाली उनकी ए बी सी डी : २ (थ्री डी) की नयी कड़ी भी कुछ युवाओं के इसी जोश और सच को तलाशने की कहानी है.
कहानी : रेमो की पिछली फिल्म खुद उनके संघर्ष के अनुभव पर आधारित थी तो एबीसीडी की दूसरी कड़ी में रेमो नालासोपारा के एक डांस ग्रुप की सच्ची कहानी से प्रेरित हैं. फिल्म की कहनानी सुरेश (वरुण धवन) और उसके डांस ग्रुप की है. सुरेश अपने डांस ग्रुप के ऊपर लगे 'चीटर्स' और नक़ल वाले डांस ग्रुप के दाग को धोकर लास वेगास की हिपहॉप डांस प्रतियोगिता जीतना चाहता हैं. लेकिन इसके लिए उनकी मदद बस विष्णु (प्रभुदेवा) कर सकता है. विष्णु उनकी बदनामी के चलते उनका साथ नहीं देना चाहता लेकिन उनकी लगन और सच देखकर वो उनका साथ देने को तैयार हो जाता है. सुरेश तैयारी के बाद बंगलौर में क्वालीफाई राउंड भी जीत लेता है और लास वेगास जाने के लिए 25 लाख रुपये का इंतजाम भी कर लेता है. लेकिन कहानी में बदलाव तब आता है जब विष्णु रुपये लेकर गायब हो जाता है. इसके बाद शुरू होती है इस ग्रुप के एक नए संघर्ष की शुरुआत.
गीत संगीत : गौर से देखा जाए तो डांस पर आधारित फिल्म में गीतों को याद रखने वाला होना चाहिए लेकिन मयूर पूरी, प्रिया सरैया, डी सोल्ड्रिज और रिमी निक के गीतों में विशाल ददलानी, अनुष्का मनचन्दा और सचिन जिगर के गाये गीतों में भी कोई खास ताजगी नहीं है. फिर भी आप चाहे तो 'हैप्पी ऑवर' में प्रभुदेवा का डांस 'बेजुबान फिर से' और 'वंदे मातरम' जैसे गीत सुन सकते हैं और गुनगुना भी सकते हैं. हाँ ये बात अलग है कि ये सभी गीत भव्य सेट्स पर फिल्माए गए है और उनमे कोरियोग्राफी और थ्री डी प्रभावों के चलते वो देखने वाले बन गए हैं.
अभिनय : वैसे तो फिल्म में केंद्रीय भूमिका वरुण धवन के नाम है लेकिन फिल्म में छोटे छोटे चरित्रों के साथ श्रद्धा कपूर और प्रभु देवा भी हों तो उनके लिए गुंजायश कम हो जाती है. कुछ दृश्यों में उन्होंने मेहनत की है पर वो ग्रुप में शामिल बाकी के चरित्रों के बीच दबकर रह गयी है. श्रद्धा अभी तक बेचारी लड़की वाले चेहरे से उबर नहीं पा रही हैं. हाँ कुछ डांस स्टेप्स उन्होंने ठीक किये हैं. डांस ग्रुप में वे एकमात्र अभिनेत्री हैं और इंटरवल के बाद उनकी जगह लॉरेन आ जाती हैं. श्रद्धा के मुकाबले लॉरेन डांस के मामले में ज्यादा प्रभावित करती हैं. प्रभुदेवा दोहराव और अतिरेक्ता से भरे दिखाई दिए हैं लेकिन उनके मुंह से हिंदी में संवाद अच्छे लगते हैं. प्राची शाह, धर्मेश, पुनीत, राघव को डांस और अभिनय का अवसर भी मिला है लेकिन उनकी गिनती किन्ही नामी कलाकारों में नहीं होती.
निर्देशन : निर्देशक के रूप में रेमो का अपने विषय के प्रति लगाव, प्रस्तुतिकरण, मनोरंजन, कोरियोग्राफी और लेखन का निर्वाह बुरा नहीं है. पर तुषार हीरानंदानी की पटकथा और लास वेगास की लोकेशन इसे एक और बेहतरीन फिल्म बनाने में उनकी मदद नहीं करते. कोरियोग्राफी और थ्री-डी इफेक्ट्स पर मेहनत की गयी है लेकिन कहानी का कोई नया विस्तार नहीं दिखाई देता. कई जगह फिल्म केवल एक रियल्टी शो का हिस्सा लगती है. गति और लम्बाई पर भी रेमो ने शायद ध्यान नहीं दिया है. अरे भाई, ये अपनी लिखी फिल्म का मोह है और कुछ नहीं. बेहतर होता वो इसे कुछ छोटा करते और कहानी के शिल्प को नए रूप में बरत लेते. फिर भी आप चाहे तो इसे एक बार देख सकते हैं.
फिल्म क्यों देखें : अगर थ्री डी और डांस के शौक़ीन हैं.
फिल्म क्यों न देखें : अगली और पिछली फिल्म में कोई बहुत अंतर नहीं है.