लकवा हुआ होश पूरी तरह था। सीटी स्कैन में छोटा सा ब्लीड हुआ। जिसको हुआ वो, लखनऊ में हाई सोसाइटी के लोग थे। तमाम सरकारी चिकित्सालयों को नाकार पहुँचे, पाँच सितारा चिकित्सालय। वहाँ तुरंत आईसीयू में रख इलाज शुरू। बेहोशी की दवा दे, वेंटीलेटर पर। ३ दिन बाद, गला काट के ट्यूब लग गया। इधर, बड़े आदमी के रिश्तेदार बड़े डाक्टर्स से चर्चा कर रहे। गूगल पर इलाज ढूँढ रहे। दस दिन का खर्च, बीस लाख का बिल। मरीज़ आधा होश के हाल में, गले के पाइप के साथ डिस्चार्ज।
पाँच सितारा चिकित्सालय के चिकित्सकों ने, घर पर ही आईसीयू केयर के लिये कुछ उपकरण और बेड बता दिये। साथ में अपना एक आदमी भी रोज़ केयर के लिये लगा दिया। अब एक महीने में घर का इलाज में भी दस लाख खर्च। पर मरीज़ अब वेंटिलेटर जनित रोग से ग्रसित। अभी भी लाचार रिश्तेदार, अब इलाज ढूँढ रहे। पर ऐसे रोग का इलाज, केवल रेस्ट करने और बीपी कंट्रोल से हो सकता है। ऐसे बड़े लोग, रोज़ ठगे जा रहे। साथ में ग़रीब लोग भी बड़े चिकित्सालयों के चक्कर में बिक जा रहे! कोई सुध लेने को तैयार नहीं!
इसका बड़ा कारण है कि बिना जाने सोचे, बड़े चिकित्सालयों की और दौड़ना! उधर मज़बूरी है कि इतना बड़ा चिकित्सालयों का खर्च कैसे निकले? तो बस फिर क्या, मरीज़ पहुँचे, तो बस रिश्तेदारों का लूटना शुरू! अब इसका एक ही इलाज है। चिकित्सालय में इलाज संबंधित सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक आप डिजिटल प्लेटफर्म पर डाल, इसके एनएमसी से ऑडिट करायें और जानकारी को रिश्तेदारों को साझा करें।
साभार- https://twitter.com/DrVNMishraa से