साउथहाल रेलवे स्टेशन पर जब मैं उतरा तो सबसे पहले ध्यान वहाँ स्टेशन के नामपट्ट ने आकृष्ट किया , यह अंग्रेज़ी के साथ गुरूमुखी में भी था. तबियत खुश हो गई . तब से ले कर साउथहाल से विदा लेने तक पंजाब और पंजाबियत का जो साक्षात्कार हुआ उसका ख़ुशनुमाएहसास कई दिनों तक रहा.
स्टेशन से सीढ़ियाँ चढ़ कर रोड के फ़्लाईओवर पर आया तो वहीं से गुरूद्वारा श्री सिंह सभा का विशाल भवन दिखाई दिया , जिसे भारत से बाहर बना सबसे बड़ा गुरूद्वारा कहा जाता है. साउथहाल ब्रॉडवे पर घूमते हुए कभी लग रहा था कि लुधियाना में हैं तो कभी अमृतसरकी फीलिंग आ रही थी . साउथहाल में सिख , पंजाबी हिंदू तो हैं ही साथ ही पंजाबी मुस्लिम की संख्या भी अच्छी ख़ासी है. इसलिए कुछ-कुछ अविभाजित भारत जैसा भी माहौल लगता है . रेस्टोरेंट की बात की जाए तो यहाँ चाँदनी चौक, मोती महल, स्पाइस विलेज , दइंडिया-बेस्ट ऑफ़ द सिटी, टेस्ट ऑफ़ पंजाब , जलेबी जंक्शन खाने, चाट और मिठाई के लिए मशहूर है, शुद्ध शाकाहारी खाने के लिएआहार है ही. लाहौर भी अपने जायके के लिए जाना जाता है , वहाँ का प्रतिनिधित्व करने के लिए के लिए टेस्ट ऑफ़ लाहौर, लाहौरकढ़ाई मौजूद है. दूर दूर के उपनगरों और सेंट्रल लन्दन से पंजाबी खाने पीने के शौक़ीन यहाँ खाने के ही लिए नहीं देसी सामान की ख़रीदारी के लिए भी आते रहते हैं .
आज जो कुछ इतना सहज लगता है उसे हासिल करने में यहाँ के लोगों को साठ वर्ष से भी अधिकका समय लग गया है.
आज से डेढ़ सौ साल पूर्व तक साउथहाल में कभी खेतीबाड़ी हुआ करती थी, उन्नीसवीं शताब्दी में साउथहाल के आसपास उद्योगों औरफ़ैक्टरियों की शुरुआत हुई. इन में से एक फैक्ट्री 1950 में लगी नाम था आर वुल्फ़ रबर फैक्ट्री , इसका जनरल मैनेजर द्वितीयविश्वयुद्ध के दौरान सिख सैनिकों के साथ काम कर चुका था और वह उनकी मेहनत का क़ायल था इसलिए उसने अपनी फैक्ट्री में सिख और पंजाबियों को नौकरी पर रखा , इनमें से अधिकांश भारत के विभाजन के समय यहाँ आ गए थे। ये लोग प्रारंभ में पूर्वी लन्दन केआल्डगेट इलाक़े में रहते थे और वहाँ से फैक्ट्री तक उन्हें आने जाने में बहुत समय लगता था . बाद में धीरे धीरे करके साउथहाल में आगए क्योंकि यह उस जमाने में बहुत ही सस्ता इलाक़ा था और वहाँ से फैक्ट्री तक आना जाना भी आसान पड़ता था . आज साउथहाल कीजो विशिष्ट पहचान बनी है उसकी शुरुआत पाँचवें दशक में हुई थी .
लेकिन यह सब इतना आसान नहीं रहा था , कदम-कदम पर इन प्रवासियों को रंगभेद और नस्लवाद से जूझना पड़ता था. इसका एक छोटा सा अवशेष साउथहाल का हैवलाक रोड है जिसका नामकरण सर हेनरी हैवलाक के नाम पर किया गया था . ये महोदय 1830 सेलेकर 1840 तक अफ़ग़ान और सिख युद्ध में ब्रिटेन के जनरल थे और इन्होंने 1857 की सैनिक बग़ावत को कुचलने में भूमिका निभाई थी. रोचक बात यह है कि गुरूद्वारा श्री सिंह सभा इसी रोड पर है , कई बार रोड का नाम बदलने की बात भी चल चुकी है .
वर्ष 1954 में प्रीतम सिंह सांघा ने साउथहॉल में भारतीय ग्रोसरी की एक दुकान खोली थी उस समय उनको अंदाज़ा नहीं था के उनका यहकदम एक छोटी मोटी क्रांति की शुरुआत कर देगा. उन दिनों साउथहाल ही नहीं पूरे पूरे ब्रिटेन में कोई भारतीय ग्रोसरी की कोई दुकान नहीं थी. जब सांघा का दाल , चावल, आटा और भारतीय मसालों का पहला शिपमेंट आया उन्होंने अपनी बेटी को आसपास रहने वाले हर पंजाबी घर में यह सूचना देने के लिए भेजा , देखते ही देखते उनकी दुकान का सारा सामान बिक गया. उसके बाद तो वहाँ के लोग प्रतीक्षा करते थे कि कब सांघा की दुकान पर अगली सप्लाई आये और उन्हें अपने देश जैसा स्वाद मिले. देख जाए तो ब्रिटेन में देसी करी के प्रति मोहब्बत काफ़ी बाद में शुरू हुई. यह वह दौर था जब साउथहाल लिटिल इंडिया कहलाने लगा था, और अगर साउथहाल को जुकाम होता था तो पूरे लन्दन में बसे भारतीय छींकने लगते थे !
इण्डियन वर्कर्स एसोसिएशन ने साउथहाल में डोमिनियन सिनेमा भी बनाया था जिसमें नियमित रूप से हिंदी फ़िल्में दिखाई जाती थीं , यहाँ हर सप्ताह कम से कम आठ हज़ार दर्शक फ़िल्में देखते थे . यही नहीं ब्रिटेन में जब भी कोई भारतीय अभिनेता या अभिनेत्री आते थे वे इस सिनेमा में ज़रूर पहुँचते थे. यह सिनेमा हाल केवल फ़िल्म ही नहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों, बॉक्सिंग, कुश्ती के लिए भी इस्तेमाल होताथा इन अवसरों पर हॉल भरा रहता था .
साउथहाल ब्रिटेन के सबसे पहले बड़े फ़िल्म स्टूडियो के कारण भी जाना जाता है. ग्लाडस्टोन रोड के साउथहाल स्टूडियो ने 1930 सेलेकर 1950 तक फ़िल्म निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. साउथहाल का पंजाब संगीत में भी बड़ा नाम है . यहाँ 1977 में पंजाबी संगीत का ग्रुप आलाप बना था जिसके स्थापित होने में चन्नी सिंह और हरजीत गांधी की महत्त्वपूर्ण भूमिका थीं. चन्नी सिंह को भांगड़ा संगीत का पितामह भी कहा जाता है, अब तो उनकी बेटी मोना सिंह भी बड़ी गायिका है. यहाँ के प्रेमी, हीरा, डीसीएस, आज़ादबैंड भी भांगड़ा में बड़ा नाम बन चुके हैं .
साउथहाल में फ़िलहाल लगभग 70,000 लोग रहते हैं जिनमें कभी पंजाबी लोग 70 % हुआ करते थे पिछले दस पंद्रह सालों में यहाँ के संपन्न सिख और पंजाबी यहाँ से निकल कर बेहतर इलाक़ों में बस गये हैं उनकी जगह श्रीलंकाई, अफ़ग़ानी और सोमालियाई मूल केलोगों ने ले ली है इसके वावज़ूद यह आज भी मिनी पंजाब या लिटिल इंडिया कहलाता है . यहाँ के तीनों काउंसलर सुश्री मोहिन्दर कौरमिद्धा, कँवल कौर बैंस और श्री रणजीत धीर पंजाब मूल के हैं और मोहिन्दर कौर तो ईलिंग की मेयर भी हैं.
(लेखक दुनिया भर में घूमते हैं और विभिन्न देशों वहाँ की संस्कृति, समाज और भारतीयता से जुड़े विषयों पर लिखते हैं)