कर्मवीरों के प्रयासों को डिगा सकते नहीं ।
शब्द-सन्धानी परावर्तन करा सकते नहीं ।।
अस्मिता का अर्थ बस उपलब्धि हो जिनके लिए ।
इस तरह के झुण्ड निज-गौरव बचा सकते नहीं ।।
गुप्त-गाथाएँ पढ़ीं तो दग्ध-अन्तस ने कहा ।
अन्धकारों के रसिक दीपक जला सकते नहीं ।।
अन्ततोगत्वा दशानन हारता है राम से ।
शान्ति-हन्ता शान्ति-दूतों को हरा सकते नहीं ।।
हम प्रलोभन के लिये उतरे नहीं संग्राम में ।
मातु श्री जगदम्ब का मस्तक झुका सकते नहीं ॥
जल-प्रपातों की कलाएँ सीखना अनिवार्य है ।
अन्यथा हम प्रेम की गंगा बहा सकते नहीं ।।
परावर्तन – प्रत्यावर्तन, सम्पादन करते हुए मूलस्वरूप को प्रतिष्ठापित करना
शब्द-सन्धानी – लफ़्फ़ाज़, बकलोल;
जल-प्रपात – झरना
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
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साभार
नवीन सी. चतुर्वेदी
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