Sunday, November 24, 2024
spot_img
Homeशेरो शायरीएक विशुद्ध हिन्दीगजल

एक विशुद्ध हिन्दीगजल

कर्मवीरों के प्रयासों को डिगा सकते नहीं ।
शब्द-सन्धानी परावर्तन करा सकते नहीं ।।

अस्मिता का अर्थ बस उपलब्धि हो जिनके लिए ।
इस तरह के झुण्ड निज-गौरव बचा सकते नहीं ।।

गुप्त-गाथाएँ पढ़ीं तो दग्ध-अन्तस ने कहा ।
अन्धकारों के रसिक दीपक जला सकते नहीं ।।

अन्ततोगत्वा दशानन हारता है राम से ।
शान्ति-हन्ता शान्ति-दूतों को हरा सकते नहीं ।।

हम प्रलोभन के लिये उतरे नहीं संग्राम में ।
मातु श्री जगदम्ब का मस्तक झुका सकते नहीं ॥

जल-प्रपातों की कलाएँ सीखना अनिवार्य है ।
अन्यथा हम प्रेम की गंगा बहा सकते नहीं ।।

परावर्तन – प्रत्यावर्तन, सम्पादन करते हुए मूलस्वरूप को प्रतिष्ठापित करना
शब्द-सन्धानी – लफ़्फ़ाज़, बकलोल;
जल-प्रपात – झरना

:- नवीन सी. चतुर्वेदी
*******

साभार
नवीन सी. चतुर्वेदी
मुम्बई
+91 9967024593
Webpage: http://www.saahityam.org/
Facebook: https://www.facebook.com/navincchaturvedi
Twitter: https://twitter.com/navincchaturved
E Formates – http://issuu.com/navinc.chaturvedi
रोजी-रोटी – http://www.vensys.biz/

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार