कलियुग में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के सात्विक-तात्विक विवेचन का औचित्य आवश्यक है क्योंकि वे ही कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म हैं जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के रुप में भारत के अन्यतम धाम पुरी धाम में देखा जा सकता है। भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के दौरान उन्हें रथारुढ रुप में दर्शन का सामाजिक,सांस्कृतिक तथा धार्मिक महत्त्व होता है। रथारुढ भगवान जगन्नाथ के दर्शन का लाभ कुल लगभग 00 यज्ञ कराने के पुण्य के बराबर होता है।
रथयात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ को उनके दशावतारों के रुप पूजा जाता है।वे पुरी धाम में अवतार नहीं अपितु अवतारी के रुप में पूजित होते हैं। वे 16 कलाओं से परिपूर्ण हैं।इसीलिए उनके श्रीमंदिर के चार महाद्वारःपूर्व का प्रवेशद्वार सिंहद्वार कहलाता है जो धर्म का प्रतीक है जहां से जगन्नाथ भक्त श्रीमंदिर की 22सीढियों को पारकर अर्थात् अपने 22 व्यक्तिगत दोषों को दूरकर श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए जाते हैं। श्रीमंदिर का पश्चिम का द्वार व्याघ्रद्वार है जो वैराग्य का प्रतीक है। श्रीमंदिर के उत्तर दिशा के द्वार का नाम हस्ती द्वार है जो ऐश्वर्य का प्रतीक है और श्रीमंदिर के दक्षिण दिशा के द्वार का नाम अश्व द्वार है जो ज्ञान का प्रतीक स्वरुप है।
भगवान जगन्नाथ शबर जनजातीय समुदाय और उस संस्कृति से अनादिकाल से जुडे हैं और शबर समुदाय में यह प्रथा है कि उनके देवता काठ के होते हैं। शबर समुदाय उनकी पूजा गोपनीय रुप में करते हैं। भगवान जगन्नाथ स्वयं कहते हैं कि जहां सभी लोग मेरे नाम से प्रेरित होकर एकत्रित होते हैं,मैं वहां पर अवश्य विद्यमान रहता हूं।इसीलिए प्रतिवर्ष भगवान जगन्नाथ की आषाढ शुक्ल द्वितीया को अनुष्ठित होनेवाली उनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा समस्त जगन्नाथ भक्तों के शरीर तथा श्री जगन्नाथ की आत्मा के मेल की प्रतीक होती है।जगत के नाथ की रथयात्रा भक्तों को आत्मावलोकन की प्रेरणा देती है।स्कन्द पुराण,ब्रह्मपुराण,पद्मपुराण तथा नारद पुराण आदि में भगवान जगन्नाथ तथा उनकी नगरी श्रीजगन्नाथपुरी का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
रामायण और महाभारत में भी जगन्नाथ जी का स्पष्ट उल्लेख है। जगन्नाथ पुरी के श्रीमंदिर में वे चतुर्धा देवविग्रह रुप में विराजमान हैं। जगन्नाथजी वास्तव में स्वयं में सगुण-निर्गुण,साकार-निराकार,व्यक्त-अव्यक्त और लौकिक-अलौकिक के समाहार स्वरुप हैं इसीलिए तो जगन्नाथ जी को वैष्णव, शैव, शाक्त, सौर,गाणपत्य,बौद्ध और जैन रुप में पूजा जाता है। भगवान जगन्नाथ आनन्दमय चेतना के प्रतीक हैं जिनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा धर्म,भक्ति और दर्शन की त्रिवेणी है जिसमें भक्त उनके दर्शन के गोते लगाकर भक्ति,शांति,एकता,मैत्री,सद्भाव,प्रेम और करुणा का महाप्रसाद प्राप्त करते हैं।पुरी में तुलसी भी आये,कबीर भी आये,नानक भी आये और चैतन्यदेव भी आये।पुरी एक धर्मकानन है जहां पर जगन्नाथ की के माध्यम से सर्वधर्म समन्वय का संदेश पुरी दुनिया को जाता है।
रथयात्राःसात्विक-तात्विक विवेचन
श्री जगन्नाथ तत्व से जुडा है रथयात्रा का सात्विक-तात्विक विवेचन। इसीलिए रथयात्रा के दिन रथ मानव-शरीर का,रथि आत्मा का,सारथी बुद्धि का,लगाम मन का और अश्व मानवीय इन्द्रियों के प्रतीक होते हैं।जगत के समस्त देवरुपों के समाहार हैं श्री जगन्नाथ भगवान। जगन्नाथ पुरी अपने आपमें तीर्थ है,क्षेत्र है और धाम है। जाननेवाले यह जानते हैं कि जहां के पवित्र जल से पापी पवित्र हो जांय उसे तीर्थ कहते हैं। जहां पर देवी-देवता का निवास होता है उसे क्षेत्र कहते हैं और धाम वह होता है जहां के आधारभूत देवता स्वयं भगवान होते हैं जो स्वयं मुक्तिप्रदाता होते हैं।
पुरी धाम का स्वर्गद्वार प्रलयकाल में भी कभी समाप्त नहीं होता है। हिन्दू धर्म के रक्षक होने के कारण पुरी गोवर्द्धन पीठ के 145वें पीठाधीश्वर परमपाद स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य हैं।भगवान जगन्नाथ को रविवार को लाल परिधान,सोमवार को शुभ्र बूटियोंवाला परिधान,मंगलवार को 12पट्टियोंवाला परिधान,बुधवार को नीला परिधान,गुरुवार को पीला परिधान,शुक्रवार को सफेद परिधान और शनिवार को काले परिधान में सुशोभित किया जाता है। श्रीमंदिर के गुंबज पर प्रतिदिन लहरानेवाला पतितपावन पताका क्षमाशील तथा दयाशील होता है।
श्रीमंदिर के रत्नवेदी के निर्माण में काला मुगुनी पत्थर लगा है जिसे अन्तरवेदी भी कहा जाता है जो वास्तव में श्री जगन्नाथ भगवान का हृदय है।चतुर्धा देवविग्रहों में जगन्नाथ जी ऋग्वेद के, बलभद्रजी सामवेद के,सुभद्राजी अथर्वेद की तथा सुदर्शनजी यजुर्वेद के जीवंत स्वरुप हैं। भगवान जगन्नाथ को प्रतिदिन निवेदित होनेवाला महाप्रसाद साक्षात अन्नब्रह्म है जिसे महालक्ष्मीजी सभी जीवों के लिए अन्नपूर्णा के रुप में स्वयं पकातीं हैं। श्रीमंदिर के सिंहद्वार की मंदिर की दीवारों पर दशावतार के मध्य अंकित महालक्ष्मी वास्तव मेंअष्टलक्ष्मीःआदिलक्ष्मी,महालक्ष्मी,गजलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धैर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी,जय-विजय लक्ष्मी और विद्या लक्ष्मी का जीवंत समाहार स्वरुप हैं जिनके रथयात्रा के दिन प्रथम दर्शन का अपना विशेष महत्त्व है।
रथयात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ का शरीर भक्त के स्थूल,सूक्ष्म तथा कर्मशील शरीर का वास्तविक स्वरुप होता है जिसके लिए रथयात्रा के दिन पहण्डी विजय के साथ-साथ चतुर्धा देवविग्रहों के रथारुढ कराते समय देव विग्रहों के शरीर की पूरी सुरक्षा तथा आरामदायाक यात्रा के लिए हरसंभव उत्कृष्ट व्यवस्था की जाती है। ऐसे में प्रत्येक जगन्नाथभक्त को रथयात्रा की सात्विक-तात्विक जानकारी परम आवश्यक है।
भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्राः2023 और उससे जुडे अन्यान्य प्रमुख उत्सवों की विस्तृत जानकारीः
अक्षय तृतीयाःरविवार,23 अप्रैल,2023, रविवार,23 अप्रैल,2023 से चंदन तालाब में 21दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा, रविवार,23 अप्रैल,2023 से नये रथों के निर्माण का कार्य आरंभ होगा,देवस्नान पूर्णिमाः रविवार,4जून,2023 को,नेत्रोत्सवः सोमवार,04जून, 2023को,रथयात्राः मंगलवार, 20जून,2023को, हेरापंचमीःशनिवारः24जून, 2023को, बाहुडा यात्राः बुधवार, 28जून,2023को, सोनावेषःगुरुवारः29जून,2023को,अधरपडाःशुक्रवारः30जून,2023 को तथा नीलाद्रि विजयःशनिवारःपहली जुलाई,2023 को है।
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा तथा उससे जुडे सभी उत्सव भगवान जगन्नाथ की ओर से कलियुग में सात्विक जीवन जीने और पूरे विश्व में मानवता को आध्यात्मिक उन्नति का सतत संदेश है। इस वर्ष की रथयात्रा आगामी 20जून को है जिसके लिए देश-विदेश के हजारों जगन्नाथ भक्त पुरी पधार चुके हैं।
(लेखक राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार प्राप्त हैं, भुवनेश्वर में रहते हैं और ओड़िशा की कला, संस्कृति, साहित्यिक व सामाजिक गतिविधियों पर नियमित लेखन करते हैं, आपकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी है)