याकूब मेमन की फांसी की सजा पर अंतिम फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि सिर्फ उसे ही फांसी क्यों दी गई, बम रखने वाले 10 दोषियों को क्यों नहीं। शीर्ष कोर्ट ने बताया कि याकूब ही मुख्य साजिशकर्ता था, बाकी 10 दोषी जरूर थे पर याकूब के इशारे पर काम कर रहे थे। एक अन्य की मौत ट्रायल के दौरान ही हो गई थी। यही वजह थी कि बाकियों की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याकूब के वकील जसपाल सिंह ने दलील पेश की कि उसका कोई क्रिमिनल रेकॉर्ड नहीं था, वब 1996 से डिप्रेशन का शिकार था और 19 साल उसमें जेल में गुजार दिए थे। यह दलील इतनी मजबूत नहीं थी कि याकूब की सजा में कोई नरमी बरती जाती।
सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि मामले के बम प्लांट करने वाले दोषियों की वकील फरहाना शाह ने जो सबूत और तर्क पेश किए, वे उनकी सजा में रियायत करने योग्य थे। शाह ने कहा कि दोषियों को अपने किये का पछतावा था, वे गरीब थे, उनका कोई क्रिमिनल रेकॉर्ड नहीं था, ब्लास्ट के समय उनमें से कइयों की उम्र काफी कम थी और उन्होंने जांच में पूरी मदद भी की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'अपील करने वाले सभी 10 दोषी समाज के निचले वर्ग के थे और उनमें से कइयों के पास पेट पालने के लिए नौकरी नहीं थी। अपने-अपने हालातों के चलते ये लोग उन साजिशकर्ताओं के मोहरे बन गए थे, जिनका छिपा हुआ मकसद लोगों में आतंक फैलाना था।' सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया कि इन लोगों का मकसद याकूब जैसा नहीं था, इसीलिए उन्हें फांसी की सजा नहीं सुनाई गई।