“भारत दो हिस्सों में बंटा हुआ है। एक हिस्से का नाम इंडिया है और दूसरे का नाम है, भारत। इंडिया में वे लोग रहते हैं जो संपन्न और स्वयं को भद्र कहते हैं जबकि भारत में शेष वे सौ करोड़ लोग रहते हैं जो गुलाम बने हुए हैं। इंडिया की इस वर्ग की शासक वाली मानसिकता को हटाने के लिए इंडिया शब्द को हटाना भी आवश्यक है।” यह बात वरिष्ठ पत्रकार एवं भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष डॉ. वेद प्रताप वैदिक ने “एक राष्ट्र एक भाषा: भारत अपनाएं, इंडिया हटाएँ।” विषय पर आयोजित वैश्विक ई-संगोष्ठी में मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए कहे।
ज़ूम पर वैश्विक ई – संगोष्ठी का आयोजन भारत, भारतीयता और भारत के सशक्तिकरण के लिए कार्यरत ‘जनता की आवाज फ़ाउन्डेशन ‘ और देश विदेश में हिंदी को भारतीय भाषाओं के प्रचार प्रसार के लिए कार्यरत सुप्रसिद्ध संस्था ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के संयुक्त तत्वाधान में किया गया था।
अतिथियों व वक्ताओं के स्वागत के पश्चात अभियान गीत प्रस्तुत किया गया और फिर ‘जनता की आवाज फाउंडेशन’ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कानबिहारी अग्रवाल द्वारा संस्था के उद्देश्य और “भारत अपनाएं, इंडिया हटाएँ” अभियान की जानकारी प्रस्तुत की गई । “वैश्विक हिंदी सम्मेलन” के निदेशक तथा ‘जनता की आवाज फाउंडेशन’ के राष्ट्रीय मंत्री डॉ मोतीलाल गुप्ता ने विभिन्न युगों एवं कालखंडों में हमारे ऐतिहासिक, धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथों में वर्णित हमारे देश का नाम भारत होने संबंधी अनेक दृष्टांत प्रस्तुत किए।
संगोष्ठी में सर्वप्रथम दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर निरंजन कुमार ने कहा कि औपनिवेशिक दबाव के कारण स्वतंत्रता के समय भारत के नाम में इंडिया शब्द को जोड़ दिया गया और इसी प्रकार हिंदी को राजभाषा बनाए जाने के बावजूद उसमें अंग्रेजी को जोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि अब इसे जन -अभियान और जन-दबाव के माध्यम से बदले जाने की आवश्यकता है।
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर से इस संगोष्ठी में जुड़े वहां के विश्वविद्यालय के शोधकर्ता इंजीनियर एवं प्रबंधन के विभागाध्यक्ष डॉ. सुभाष शर्मा ने इंडिया शब्द को हटाने और केवल भारत नाम को ही रखे जाने का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा, ‘किसी भी देश का नाम उसकी पहचान होती है और वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि दासता की मानसिकता के चलते भारत के नाम के साथ इंडिया को जोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण था। विभिन्न देशों के नाम बदले जाते रहे हैं। इसलिए हमें अपने देश के नाम से भी इंडिया शब्द को शीघ्र हटाना होगा।’ विभिन्न आध्यात्मिक’ धार्मिक ग्रंथों के उदाहरण देते हुए अमेरिका में रह रही भारतीय आर्ष ग्रंथों सुप्रसिद्ध हिंदी काव्य रूपांतरकार डॉ मृदुल कीर्ति ने कहा कि यदि भारत के लोगों में भारतीयता की तड़प पैदा हो जाए तो कल ही इंडिया नाम को हटाया जा सकता है इसके लिए उन्होंने अमेरिका से हर संभव सहयोग की बात भी कही।
नीदरलैंड से जुड़ी ‘इंटरनेशनल नॉन वायलेंस एंड पीस एकेडमी’ की अध्यक्ष प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने कहा, ‘ हमारी ऋषि परंपरा और आध्यात्मिक परंपरा से हम सबका जेनेटिक कोड भारत का है; लेकिन हम अपनी डीएनए के विपरीत पाश्चात्य दृष्टि से विकास करने में लगे हैं, जिसके कारण हम विकास में पिछड़ रहे हैं । पाश्चात्य शिक्षा के कारण हमारी नई पीढ़ियां भारत के बजाय इंडिया बनने के प्रयास में लगी हैं। हमें अपने डीएनए को पहचानना है तो इंडिया नाम को हटाना होगा।’
मॉरीशस से वैश्विक ई-संगोष्ठी में उपस्थित वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार राज हिरामन ने कहा, आपको नाम के साथ साथ बहुत कुछ बदलना पड़ेगा। भारतवासियों ने मैंकॉले को ओढ़ लिया है और अपने गुरुकुल भी बंद कर दिए। भारत के लोग भारत बनाने के बजाय इंडिया बनाने में लगे हैं।’ उन्होंने कहा , ‘हमारे देश में तो कोई इंडिया नहीं कहता; हम तो भारत को भारत ही कहते हैं। यह तो भारत वालों को सोचना है कि वे अपने को पहचानें और इंडिया शब्द को हटाएँ।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रोफे़सर और ‘भारतीय भाषा मंच’ के अध्यक्ष प्रो. वृषभ जैन ने कहा कि हमारे देश का नाम हजारों वर्ष से भारत है । अब कुछ वर्ष पूर्व इसमें इंडिया जोड़ने का मतलब यह है कि हम हजारों वर्ष के ज्ञान-विज्ञान, धर्म- आध्यात्म और संस्कृति को नकार रहे हैं। इसलिए हमें भारत नाम के साथ ही आगे बढ़ना होगा।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे ‘जनता की आवाज फाउंडेशन’ के अध्यक्ष सुंदर बोथरा जी ने कहा कि हम भारत के वास्तविक नाम ‘भारत’ को स्थापित करने और इंडिया नाम को हटाने के लिए देशभर में मोतियों की माला की तरह सभी को परस्पर जोड़ते हुए इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें नहीं भुलना चाहिए कि भारत नाम भी हमारे संविधान में है इसलिए इसके प्रयोग में कोई रुकावट नहीं है। इसलिए हमें भारत नाम का हर स्तर पर अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए । उन्होंने आगे बताया कि इस कार्य लिए हम उद्योग और व्यापार जगत को भी सम्पर्क कर जागृत कर रहे हैं।
इस कार्यक्रम में भार्गव मित्रा, गृह मंत्रालय, विपिन गुप्ता-राष्ट्रीय सलाहकार, शंकर असकंदानी- राष्ट्रीय समन्वयक, इन्द्र चन्द बैद- राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, रितेश पोरवाल- राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, राजेश महेश्वरी-राष्ट्रीय सचिव, राजेंद्र बरडीया-सूरत, उपाध्यक्ष , कंवरलाल डागा, डाँ. राजीव कुमार अग्रवाल, आनंद खेमका, सुरेन्द्र सुराणा, दिलीप काठेंड, रविन्द्र डब्बास ,राजपाल राजपुरोहित आदि अनेक गणमान्य उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के अध्यक्ष डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ ने किया और धन्यवाद ज्ञापन ‘जनता की आवाज फाउंडेशन’ के राष्ट्रीय महासचिव श्री कृष्ण कुमार नरेडा ने प्रस्तुत किया।
साभार
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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