Sunday, December 29, 2024
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भारत के संविधान की उपादेयता

राजनीतिक व्यवस्था में राज्य (देश के लिए प्रयुक्त) किया जाता है ।संविधान राज्य की सर्वोच्च विधि होती है अर्थात विधिक संप्रभु (De jure)संविधान ही है ,यह शासक एवं शासित के संबंधों का मौलिक दस्तावेज है। भारत के संविधान को संसार का सर्वाधिक वृहद संविधान कहा जाता है,क्योंकि इसमें 395 अनुच्छेद,22भाग और 12अनुसूची है,इसके आधार पर हम इसको संसार का सबसे बृहद संविधान कहा जाता है। भारत का संविधान भारतीयों का आत्मा है। 26 जून ,1950 को हमारे गणतंत्र को एक लिखित संविधान प्राप्त हुआ था, भारत के संविधान के अंतर्गत संवैधानिक पदाधिकारियों के अधिकारों व शक्तियों का उल्लेख है एवं नागरिक तथा व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख है जिसके द्वारा वह अपने व्यक्तित्व का चतुर्दिक विकास करते हैं ।संविधान अपने नागरिकों को भयमुक्त वातावरण प्रदान करता है।

भारत एक वृहद जनसंख्या वाला राज्य हैं।यह बहु सांस्कृतिक व्यक्तियों वाले राज्य का संगठन है ,यहां पर विभिन्न धर्मों ,जातियों, लिंगो एवं संप्रदायों के व्यक्ति निवास करते हैं। भारत के संविधान के अंतर्गत नागरिकों को 7 मौलिक अधिकार (अब6) प्राप्त हैं ,जिनका संविधान में भाग 3 के अनुच्छेद 14 से 35 में उल्लेख है। यह मौलिक अधिकार विधायिका और कार्यपालिका से सुरक्षा एवं संरक्षा प्रदान करता है अर्थात नागरिकों को यह अधिकार राज्य से सुरक्षा प्रदान करता है।

भारत के संविधान के भाग 3 को भारत का मैग्नाकार्टा (महान घोषणा पत्र )कहा जाता है। इसके अंतर्गत समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार ,धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार एवं संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्राप्त है। संवैधानिक उपचारों के अधिकार को “संविधान की आत्मा” कहा जाता है; क्योंकि इसके द्वारा नागरिकों के अपने मौलिक अधिकारों की सुरक्षा एवं संरक्षा प्रदान की जाती है ।संवैधानिक उपचारों के अधिकार के उपादेयता के कारण ही न्यायालय( उच्चतम न्यायालय) को संविधान और नागरिकों का अभिवाहक संरक्षक एवं माता- पिता कहा जाता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि भारतीय संविधान भारतीय जीवन दर्शन का पवित्र ग्रंथ है, संविधान को ईश्वर भी कहा जाता है ;क्योंकि अपने नागरिकों को शासकीय अंगों के माध्यम से सुरक्षा, संरक्षा एवं औषधि प्रदान करता है ।किसी भी व्यक्ति, समाज एवं राज्य के लिए सुरक्षा (जीवन का अधिकार), संरक्षाका अधिकार( स्वतंत्रता का अधिकार) एवं औषधि का अधिकार( समानता का अधिकार) प्राकृतिक अधिकार के रूप में वर्णित किया जाता है।

(डॉक्टर सुधाकर कुमार मिश्रा,राजनीतिक विश्लेषक हैं एवं सहायक आचार्य,राजनीति विज्ञान के पद पर कार्यरत हैं)

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