14 नवंबर को मैथोडिस्ट चर्च हॉल, पापाटोएटोए, ऑकलैंड में ‘शाम-ए-गज़ल’ का आयोजन किया गया। इस समारोह का आयोजन ‘कला कौशल समिति ने किया था। स्थानीय कलाकारों में फीजी, भारत, पाकिस्तान व अफगानिस्तान से संबंध रखने वाले कलाकारों ने ग़ज़ल गायन किया।
इस समारोह में हरीश कथनौर, अज़ीम अनवर, वीरेन्द प्रकाश, रजनेश प्रसाद, प्रवीण रवि, किरणजीत सिंह, फरीद, सतीशेश्वर नन्द, निलेष महाराज व चन्द्र कुमार ने गज़ल गायन किया तो शिवन पदयाची व नवलीन प्रसाद ने संगीत वाद्य से समां बाध दिया।
ऑकलैंड निवासी हरीश कथनौर गज़ल गायन में सुपरिचित नाम हैं। उन्होंने कई ग़जल गाई जिनमें:
“कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबां होती है
ये हक़ीकत तो निगाहोँ से बयां होती है”
और उन्होंने ‘दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है’, गाई जो खू़ब सराही गईं।
पाकिस्तान से तालुल्क रखने वाले ऑकलैंड के स्थानीय गायक अज़ीम अनवर ने ‘क़तील शिफाई’ की ग़ज़ल से
श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया:
तुझ पे हो जाऊंगा कुर्बान तुझे चाहूँगा
मैं तो मरके भी मेरी जान तुझे चाहूंगा
अपने जज्बात में नगमात रचाने के लिए
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
वीरेंद प्रकाश ने –
तेरी बेवफाई का शुक्रिया, मुझे तूने जीना सिखा दिया।
तेरे ग़म में चैन सा मिल गया, तेरे दर्द ने वो मज़ा दिया॥
और –
“ये हक़ीक़त है कि होता है असर बातों में
तुम भी खुल जाओगे दो-चार मुलक़ातों में
तुम से सदियों की वफ़ाओ का कोई नाता था
तुम से मिलने की लकीरें थीं मेरे हाथों में ।”
समारोह में आए अतिथियों ने भी समारोह के अंत में भागीदारी की जिसमें हास्य की छटा बखेरते ‘बेदी साहब’ को काफी सराहना मिली।
‘शाम-ए-ग़ज़ल’ समारोह का मंच-संचालन ‘भारत-दर्शन’ के संपादक ने किया।
समारोह में जलपान व खाने का इंतजाम समिति के सदस्य श्री प्रसाद व उनकी श्रीमती ने किया था।