Sunday, December 22, 2024
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भारत के महामहिम उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू द्वारा लेखकः अच्युत सामंत द्वारा अंग्रेजी में लिखित पुस्तक -नीलिमारानीःमाई मदर,माई हीरो भुवनेश्वर राजभवन में लोकार्पित

मुख्यअतिथि उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू के अनुसार हमें अपनी मां,मातृभूमि तथा मातृभाषा को कभी नहीं भूलना चाहिए।

02अप्रैल को भुवनेश्वर राजभवन में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह के सम्मानित अतिथि ओडिशा के मान्यवर राज्यपाल प्रोफेसर गणेशीलाल की गरिमामयी उपस्थिति में लेखकः अच्युत सामंत द्वारा अंग्रेजी में लिखित पुस्तक -नीलिमारानीःमाई मदर,माई हीरो का लोकार्पण मुख्यअतिथि भारत के उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू द्वारा हुआ। वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव को ध्यान में रखकर यह आयोजन भुवनेश्वर राजभवन में रखा गया था। अपने संबोधन में मुख्यअतिथि उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने बताया कि उन्होंने अनेक आत्मकथाएं पढीं हैं लेकिन अपनी मां की आत्मकथा वे पहली बार लेखक प्रोफेसर अच्युत सामंत का देख रहे हैं। लोकार्पित पुस्तक नारीजाति के लिए प्रेरणा है। हमें अपनी मां,मातृभूमि तथा मातृभाषा को कभी नहीं भूलना चाहिए। सम्मानित अतिथि ओडिशा के मान्यवर राज्यपाल प्रोफेसर गणेशीलाल ने अपने संबोधन में यह कहा कि हमें केवल मानवता की सेवा ही नहीं करनी चाहिए अपितु मानवता की पूजा भी करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि डा सामंत की अंग्रेजी में लिखी पुस्तक नीलिमारानीःमाई मदर,माई हीरो को आद्योपांत पढकर मुझे ठक्कर बापा की याद आती है।लेखकः अच्युत सामंत ने मुख्यअतिथि उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू तथा सम्मानित अतिथि ओडिशा के मान्यवर राज्यपाल प्रोफेसर गणेशीलाल के प्रति हृदय से आभारी हैं जिन्होंने उनकी पुस्तक को आज लोकार्पितकर उनको प्रोत्साहित किया है। उन्होंने पुस्तक प्रकाशन के पीछे प्रेरणा को स्पष्ट करते हुए यह बताया कि संतान चाहे अमीर हो अथवा गरीब,प्रत्येक संतान के जीवन में उसकी अपनी मां का विशेष महत्त्व होता है। यह बात मेरे साथ भी लागू है। मेरी मां ऐसे धनाढ्य परिवार से थी, जहां पर उसकी परवरिश बडे लाड-प्यार से हुई। उस देदीप्यमान कन्या का विवाह किसी धनी लडके के साथ होना चाहिए था लेकिन उसके भाग्य ने उसका विवाह मेरे दादाजी के माध्यम से एक साधारण, सौम्य तथा ईमानदार गरीब लडके से करा दिया। मेरे पिताजी बहुत गरीब थे लेकिन एक पवित्र व्यक्ति बनने से वे अपनेआपको आजीवन रोक नहीं सके।

कोई यह अवश्य सोच सकता है कि मैंने यह पुस्तक- नीलिमारानीःमाई मदर,माई हीरो, क्यों लिखा, इसका यही कारण है कि मेरा मां एक अलौकिक दूरदर्शी तथा निःस्वार्थ समाजसेवा के संकल्प से जुडी अतिसाधारण महिला थी। यथार्थ रुप में वह नारीजाति की गौरव थी जो नारी सशक्तिकरण को नया आयाम देना चाहती थी। मेरी मां जब मात्र 40 वर्ष की थी तभी मेरे पिताजी का एक रेलदुर्घटना में असामयिक निधन हो गया। मेरे परिवार के भरण-पोषण के साथ-साथ स्वयं के साथ-साथ कुल 7 बच्चों की परवरिश तथा उनकी शिक्षा –दीक्षा की पूरी जिम्मेदारी मेरी विधवा मां के ऊपर आ गई। मेरे पिताजी समाजसेवा के लिए अपने जीवनकाल में अनेक काबुलीवालों से ऋण लिए हुए थे। हमलोग इतने गरीब थे कि जब मेरे पिताजी का निधन हुआ तो मेरी मां ने मेरे बडे भाई से यह कहा कि वे अपने पिताजी का अंतिम संस्कार कर के ही कलराबंक लौटें। मेरी मां अपने जीवन के उन सबसे बुरे दिनों में काफी संघर्ष करके बडे धीरज और साहस के साथ अकेले ही अपनी कुल 7 संतानों को अच्छी शिक्षा प्रदानकर उन्हें नेक तथा स्वावलंबी बनाया।

जब मैंने कीट-कीस की स्थापना की नींव भुवनेश्वर में 1992-93 में डाली और जब निर्माण कार्य बडी तेजी के साथ आरंभ हुआ उस वक्त भी मेरी मां ने मेरे पैतृक गांव कलराबंक को भी स्मार्ट विलेज के रुप में विकसित करने की बात मुझ से कही। उसने कहा कि कलराबंक गांव की अपनी झोपडी की मरम्मत तथा अपने परिवार की खुशी के लिए पैसे-संग्रह करने की जगह कलराबंक गांव के सर्वांगीण विकास के लिए पैसे लगाने की बात उसने मुझसे कही।उसने मुझसे कभी भी अपने लिए आभूषण खरीदने के लिए तथा जगह-जमीन खरीदने के लिए नहीं कहा। मेरे भाइयों को पैसे देने के लिए भी नहीं कहा । उसके अनुसार हम जो कुछ भी कमायें उसका इस्तेमाल हमें अपनी मातृभूमि की सेवा में ही लगाना चाहिए।

मैंने आज जो कुछ भी अपने जीवन में हांसिल किया है, वह सबकुछ मेरी मां के द्वारा मुझे प्रदत्त मूल्यों का है, जिसे मैंने उसकी आजीवन सेवा करके प्राप्त किया है। मेरी मां की मेरी अच्छी परवरिश तथा अच्छे दिव्य संस्कारों का प्रतिफल है।उसके द्वारा मुझे एक नेक,भद्र,परोपकारी तथा अच्छे इंसान के रुप में तैयार किए गए अभूतपूर्व सहयोग का है। इसलिए मेरे विदेह जीवन की उन तमाम उपलब्धियों को आज मैं अपनी स्वर्गीया मां नीलिमारानी ,माई मदरःमेरी हीरो को समर्पित करता हूं। मैं जीवनभर अपनी स्वर्गीया मां नीलिमारानी सामंत के जीवन में अपनाये गये शाश्वत जीवन मूल्यों ,सिद्धांतों,आध्यकत्मिक तथा उसके पवित्र जीवन आदि के प्रति ऋणी हूं जिनके बदौलत मैं भी एक आध्यात्मिक जीवन यापन करता हूं । आज मैं जो कुछ भी हूं,वह सबकुछ मेरी स्वर्गीया मां नीलिमारानी सामंत की देन है। यह पुस्तक निश्चित रुप से नारी सशक्तिकरण हेतु मैंने लिखी है। –अच्युत सामंत

प्रस्तुतिः अशोक पाण्डेय

साभार
https://alokpurush.in/ से

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