सरकार अधिगृहीत बैंकों का नॉन परफॉर्मिंग एसेट 1.74 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह इन बैंकों की कुल नेटवर्थ का लगभग एक तिहाई है। नॉन परफॉर्मिंग एसेट से मतलब है ऐसी धनराशि जो कि लोन के रूप में दी गई थी लेकिन अब उसकी वापसी की संभावना न के बराबर है। इंडियन एक्सप्रेस की ओर से दायर आरटीआई में रिजर्व बैंक ने बताया कि, 29 सरकारी बैंकों ने 2013 से 2015 के बीच 1.14 लाख करोड़ रुपये को अटका हुआ करार दिया। नेट एनपीए पर नजर डालेंगे तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आएगी। पहली, सितम्बर तिमाही तक कुछ बैंक जैसे इंडियन ओवरसीज बैंक का 83.3 प्रतिशत राशि इस तरह से अटकी हुई थी। 25 में से 16 बैंकों का इस तरह का डाटा उपलब्ध है और इनका अनुपात 33 फीसदी है। जबकि प्राइवेट बैंकों का औसत 4.9 प्रतिशत है। बैंकों को कुछ राशि लोन देने के लिए चाहिए होती है।
अगर बैंकों की राशि का बड़ा हिस्सा इस तरह से अटक जाता है तो वो वह आसानी से लोन नहीं दे पाता। ऐसा होने पर उसे सरकार से भी मदद मिलती है लेकिन राजकोषीय घाटे के समय ऐसा होना मुश्किल है। दूसरा, बैंक इस तरह की राशि को फिर से फाइनेंस कर एनपीए को कम कर सकते हैं। लेकिन ऐसी स्थिति में बैंक थोड़े समय के लिए खुद को बचा सकते हैं लेकिन निवेश की स्थिति उत्पन्न न होने पर इस राशि को रिकवर कर पाना मुश्किल हो जाता है। स्वतंत्र एनालिस्ट और निर्मल बंग सिक्युरिटीज की रिसर्च विंग के पूर्व मुखिया हेमेन्द्र हजारी बताते हैं कि, ‘ यह इससे भी भयंकर स्थिति है। विशेष रूप से ऊर्जा और निर्माण से जुुड़ी कई कंपनियां घाटे से गुजर रही है।’ आरबीआई की ओर से दिसम्बर में किए गए एसेट क्वालिटी रिव्यू में सामने आया कि एक्सिस और आईसीआईसीआई जैसे प्राइवेट बैंकों में अटके हुए लोन की राशि में बढ़ोत्तरी हुई है। जानकारों का कहना है कि पब्लिक सेक्टर बैंकों की रिपोर्ट अभी आना बाकी है। उनके अटके हुए लोन की राशि में बढ़ोत्तरी की ही आशंका है।
साभार- इंडियन एक्सप्रेस से