विश्व में बाघों की क्रीड़ा स्थली राष्ट्रीय रणथम्भौर अभयारण्य प्रकृति के रमणिक वातावरण में विचरण करते वन्य-प्राणियों और उनकी अठखेलियां देख पर्यटक खूब आनंदित होते हैं। बाध दिखने पर तो खुशी का ठिकाना नहीं रहता। राज्य में सर्वाधिक बाघ यहीं पाये जाते हैं। विश्व की बड़ी-बड़ी सेलीब्रेटिज अपना अवकाश यहाँ बीताना सौभाग्य समझते हैं। अभयारण में बना जोगी महल आकर्षित करता है। यह राजस्थान की प्रथम बाघ परियोजना है।
दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान प्राचीन काल से ही अपने पशु-पक्षियों के लिए विख्यात रहा है। यहाँ वन्य जीवों में सबसे प्रमुख है हमारा राष्ट्रीय पशु बाघ, जिसे यहाँ दिन की रोशनी में भी आराम से देखा जा सकता है। यहाँ बाघ के अलावा तेंदुआ, जरख, रीछ, सियार, सहेली, नील गाय, सांभर, चीतल, हिरण, जंगली सूअर, चिंकारा, जंगली बिल्ली, मगरमच्छ आदि वन्य जीव प्रमुख रूप से पाये जाते हैं। रियासती काल में यह जयपुर के महाराजाओं की शिकारगाह थी। आजादी के बाद राज्य सरकार ने 7 नवम्बर 1955 को इसके 392.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को अभयारण्य घोषित किया। बाघ परियोजना के लिए चयनित 9 बाघ रिजर्व क्षेत्रों में से रणथम्भौर भी एक है। इसे 1 नवम्बर 1980 को राणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। इसका क्षेत्रफल 274.5 वर्ग किलोमीटर है। रणथम्भौर टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 133.6 वर्ग किलोमीटर है।
यह एक शुष्क पतझड़ी वन क्षेत्र है, जहाँ अरावली एवं विन्ध्याचल दोनों की पर्वत श्रृंखलाएं मिलती हैं। यहाँ इस समुचित क्षेत्र में पदम तालाब, राजबाग, मलिक तालाब, गिलाई सागर, मानसरोवर एवं लाहपुर झील हैं। यहाँ के वनों में धोंक मुख्य प्रजाति है। इसके अतिरिक्त यहाँ ढाक, सालर, गुरजन, बरगद, जामुन, आम एवं चुरैल आदि के वृक्ष एवं बांस भी काफी संख्या में पाए जाते हैं। सवाई माधोपुर शहर से करीब 13-14 किलोमीटर दूर स्थित इस राष्ट्रीय उद्यान में जोगी महल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। इसके खुले बरामदे में बैठकर सामने बने पद्म तालाब में वन्यजीवों को विभिन्न गतिविधियां करते हुए देख मन अति प्रसन्न होता है। पद्म तालाब के अतिरिक्त राजबाग और मलिक तालाब के आस-पास भी सैकड़ों की संख्या में चीतल, सांभर, नीलगाय और जंगली सूअर भी घूमते हुए देखे जा सकते हैं।
रणथम्भौर ने राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित कर अपना एक अलग स्थान बनाया है, जिसका मुख्य कारण राष्ट्रीय पशु बाघ है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि बाघ को नैसर्गिक वातावरण में देखना है तो रणथम्भौर से अच्छा कोई स्थान नहीं है। रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में 270 से अधिक प्रजाति के पक्षियों में ग्रेपेट्र्रिज, पेन्टेड पेेट्र्रिज, पेन्टेड स्टार्क, व्हाईट नेक्ड स्टार्क, ब्लैक स्टार्क, ग्रीन पिजन, क्रेस्टेड सरपेन्ट ईगल, कुएल, स्पूनबिल, तोते, उल्लू, बाज आदि पाए जाते हैं। रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में विभिन्न पानी के स्त्रोत, नाले, तालाब, झीलें, एनीकट एवं कुएं आदि हैं। रणथम्भौर बाघ परियोजना में विश्व बैंक एवं वैश्विक पर्यावरण सुविधा की सहायता से वर्ष 96-97 से इण्डिया ईको डवलपमेंट प्रोजेक्ट चलाया गया। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों की सहभागिता से उद्यान पर लोगों का दबाव कम करके जैव विविधता का संरक्षण करना है।
सात पहाड़ियों के मध्य रन पहाड़ी पर स्थित रणथम्भौर किले पर जन-जन की आस्था और विश्वास का केन्द्र त्रिनेत्र गणेश मंदिर की प्रमुख विशेषता है। हम्मीर की आन-बान शान का प्रतीक रणथम्भौर राजस्थान का एक प्राचीन एवं प्रमुख गिरि दुर्ग है। बीहड़ वन और दुर्ग घाटियों के मध्य अवस्थित यह दुर्ग विशिष्ट सामरिक स्थिति और सुदृढ़ संरचना के कारण अजेय माना जाता था। दिल्ली से उसकी निकटता तथा मालवा और मेवाड़ के मध्य में स्थित होने के कारण रणथम्भौर दुर्ग पर निरन्तर आक्रमण होते रहे।
सवाई माधोपुर से लगभग 13 किमी. दूर रणथम्भौर अरावली पर्वतमाला की श्रंखलाओं से घिरा एक विकट दुर्ग है। रणथम्भौर दुर्ग एक ऊंचे गिरि शिखर पर बना है और उसकी स्थिति कुछ ऐसी विलक्षण है कि दुर्ग के समीप जाने पर ही यह दिखाई देता है। रणथम्भौर का वास्तविक नाम रन्त: पुर है अर्थात् ’रण की घाटी में स्थित नगर’। ’रण’ उस पहाड़ी का नाम है जो किले की पहाड़ी से कुछ नीचे है एवं थंभ (स्तम्भ) जिस पर यह किला बना है। इसी से इसका नाम रणथम्भौर हो गया। यह दुर्ग चतुर्दिक पहड़ियों से घिरा है जो इसकी नैसर्गिक प्राचीरों का काम करती हैं। दुर्ग की इसी दुर्गम भौगोलिक स्थिति को लक्ष्य कर अबुल फजल ने लिखा हैं-यह दुर्ग पहाड़ी प्रदेश के बीच में है।
रणथम्भौर दुर्ग तक पहुँचने का मार्ग संकरी व तंग घाटी से होकर सर्पिलाकार में आगे जाता है। हम्मीर महल, रानी महल, कचहरी, सुपारी महल, बादल-महल, जौरां-भौरां, 32 खम्भों की छतरी, रनिहाड़ तालाब, पीर सदरूद्दीन की दरगाह, लक्ष्मीनाराण मंदिर (भग्न रूप में) जैन मंदिर तथा समूचे देश में प्रसिद्ध गणेश जी का मंदिर दुर्ग के प्रमुख दर्शनीय स्थान हैं। किले के पाश्र्व में पद्मला तालाब तथा अन्य जलाशय हैं। इतिहास प्रसिद्ध रणथम्भौर रणथम्भोर दुर्ग के निर्माण की तिथि तथा उसके निर्माताओं के बार में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है।
रणथम्भौर को सर्वाधिक गौरव मिला यहाँ के वीर और पराक्रमी शासक राव हम्मीर देव चैहान के अनुपम त्याग और बलिदान से। हम्मीर ने सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही सेनापति मीर मुहम्मदशाह (महमांशाह) को अपने यहाँ शरण प्रदान की जिसे दण्डित करने तथा अपनी साम्रज्यवादी महत्वाकंाक्षा की पूर्ति हेतु अलाउद्दीन ने 1301 ई. में रणथम्भौर पर एक विशाल सैन्य दल के साथ आक्रमण किया। पहले उसने अपने सेनापति नुसरत खां को रणथम्भौर विजय के लिए भेजा लेकिन किले की घेराबन्दी करते समय हम्मीर के सैनिकों द्वारा दुर्ग से की गई पत्थर वर्षा से वह मारा गया। क्रुद्ध हो अलाउद्दीन स्वयं रणथम्भौर पर चढ़ आया तथा विशाल सेना के साथ दुर्ग को घेर लिया।
पराक्रमी हम्मीर ने इस आक्रमण का जोरदार मुकाबला किया। अलाउद्दीन के साथ आया इतिहासकार अमीर खुसरो युद्ध के घटनाक्रम का वर्णन करते हुए लिखता है कि सुल्तान ने किले के भीतर मार करने के लिए पाशेब (विशेष प्रकार के चबूतरे) तथा गरगच तैयार करवाये और मगरबी (ज्वलनशील पदार्थ फेंकने का यन्त्र) व अर्रादा (पत्थरों की वर्षा करने वाला यन्त्र) आदि की सहायता से आक्रमण किया। उधर हम्मीरदेव के सैनिकों ने दुर्ग के भीतर से अग्निबाण चलाये तथा मंजनीक व ढेकुली यन्त्रों द्वारा अलाउद्दीन के सैनिकों पर विशाल पत्थरों के गोले बरसाये। दुर्गस्थ जलाशयों से तेज बहाव के साथ पानी छोड़ा गया जिससे खिलजी सेना को भारी क्षति हुई। इस तरह रणथम्भौर का घेरा लगभग एक वर्ष तक चला।
अन्ततः अलाउद्दीन ने छल और कूटनीति का आश्रय लिया तथा हम्मीर के दो मंत्रियों रतिपाल और रणमल को बूंदी का परगना इनायत करने का प्रलोभन देकर अपनी और मिला लिया। इस विश्वासघात के फलस्वरूप हम्मीर को पराजय का मुख देखना पड़ा। अन्ततः उसने केसरिया करने की ठानी। दुर्ग की ललनाओं ने जौहर का अनुष्ठान किया तथा हम्मीर अपने कुछ विश्वस्त सामन्तों तथा महमांशाह सहित दुर्ग से बाहर आ शत्रु सेना से युद्ध करता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। जुलाई, 1301 में रणथम्भौर पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया। हम्मीर के इस अदभुत त्याग और बलिदान से प्रेरित हो संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी एवं हिन्दी आदि सभी प्रमुख भाषाओं में कवियों ने उसे अपना चरित्रनायक बनाकर उसका यशोगान किया है। रणथम्भोर अपने में शौर्य, त्याग और उत्सर्ग की एक गौरवशाली परम्परा संजोये हुए है।
त्रिनेत्र गणेश विश्व धरोहर में शामिल राजस्थान के रणथंभौर दुर्ग के भीतर विराजते हैं। अरावली और विध्यांचल पहाडिय़ों के बीच रमणिक, प्राकृतिक, सौन्दर्य के मध्य होकर गणेश मंदिर तक धार्मिक आस्था लेकर पहुंचना अपने आप में एक अलग ही अहसास कराता है। भारत के चार स्वयंभू मंदिरों में से यह एक है और यहां भारत के ही नहीं, विश्व के कोने-कोने से दर्शनार्थी गणेश दर्शन के लिए आते हैं, मनौती मांगते हैं, जिन्हें त्रिनेत्र गणेश जी पूर्ण करते हैं। पूरी दुनिया में गणेश जी का यह अकेला मंदिर में है, जहां वे अपने पूरे परिवार- दो पत्नी रिद्धि और सिद्धि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ के साथ प्रतिस्थापित हैं। त्रिनेत्र गणेश जी का महत्व इस बात से भी है कि ये भक्तगणों की मनोकामना को पूर्ण करने वाले माने जाते हैं। इसीलिए इस कामना के वशीभूत लोग मांगलिक कार्य विशेष रूप से विवाह का पहला निमंत्रण पत्र या तो स्वयं उपस्थित होकर भेंट करते हैं या डाक से प्रेषित करते हैं। मंदिर का पुजारी निमंत्रण पत्र को गणेश जी के सम्मुख खोलकर, पढ़कर सुनाता है। त्रिनेत्र होने के कारण इन्हें महागणपति का स्वरूप माना जाता है।
जिला मुख्यालय से सैलानी करीब 55 किमी. की दूरी पर मध्य प्रदेश की सीमा चंबल नदी पर स्थित पवित्र धार्मिक स्थल है। इस स्थान को त्रिवेणी के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ तीन नदियां चंबल, बनास एवं सीप आकर मिलती हैं। भक्तगण यहाँ त्रिवेणी में स्नान कर पूजा अर्चना करते हैं। पर्यटक समीप ही बरवाड़ा गांव में पहाड़ी पर स्थित चौथमाता मंदिर में भी दर्शन के लिए जा सकते हैं।
रणथंभौर में थ्री स्टार और फाइव स्टार होटलों के साथ – साथ हर बजट के होटल और कई हेरिटेज रिजॉर्ट की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां शाखाहारी और मांसाहारी, राजस्थानी और दक्षिण भारतीय भोजन उपलब्ध है।
कैसे पहुंचें?
रणथम्भोर राष्ट्रीय पार्क और रणथंभोर किला सवाईमाधोपुर जिला मुख्यालय से करीब 14 किमी दूरी पर हैं। सवाईमाधोपुर मुंबई-दिल्ली बड़ी रेलवे लाइन का प्रमुख रेलवे स्टेशन है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 11 एवं 12 जिले से हो कर गुजरते हैं। देश के समस्त प्रमुख शहरों से बस एवं रेल सेवा से अच्छी तरह से जुड़ा है। समीपस्थ एयर पोर्ट जयपुर के सांगानेर में 144 किमी. दूरी पर स्थित है। स्थानीय परिवहन के लिए सवाईमाधोपुर से रणथंभोर के लिए जीप एवं टैक्सी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। अभयारण्य भ्रमण के लिए वन विभाग से अधिकृत केंटर और जीपें चलती हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पर्यटन, संस्कृति, इतिहास से जुड़े विषयों पर नियमित लेखन करते हैं)