विजय विनीत की प्रकाशित कहानी संग्रह “मैं इश्क लिखूं तुम बनारस समझना” (2024, सर्व भाषा ट्रस्ट नई दिल्ली से प्रकाशित) उनके बनारसिया होने का प्रमाण है। बनारस से यूं तो मेरा भी लगाव है। जब मैं प्राणी विज्ञान में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से शोध कर रहा था उस समय छः मास वाराणसी में मेरा प्रवास था। पारिवारिक कारणों से मैं छः मास से ज्यादा वाराणसी रह नहीं पाया और मेरा शोध कार्य अपूर्ण रह गया।
मैंने पुनः बाद में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर से नए रूप से अपना शोध कार्य पूर्ण किया। मात्र छः मास के प्रवास में ही मैंने बनारस को जो देखा, जैसा देखा वैसा ही विजय विनीत जी ने भी अनुभव किया। मैं तो छः मास के प्रवास को लिख नहीं पाया पर विजय विनीत ने उसे कलम से लिखकर यह बता दिया कि बनारस के लोग ऐसे ही बना रसिया नहीं होते। वो जब इश्क करते हैं तो इश्क में डूब कर इश्क करतें हैं। बनारस में जो इश्क है न, वो बस इश्क है। बनारस तो बस बना रस ही है जो इसमें जितना डूबा वो उतना ही तर गया। ये शहर ही मुहब्बत का है। यहां हर गली, घाट और घाट की सीढ़ियों पर सब जगह बस इश्क ही इश्क है। इसकी रूमानी में इश्क भरा पड़ा है। ये शहर है या मोहब्बत या मोहब्बत का ही शहर है। यह तय करना सबके बस की बात नहीं। यह इश्क ए बनारस है। आइए और यहां इसके इश्क की तासीर में मिल जाइए।
भारत की सांस्कृतिक विरासत को अपने त्रिशूल पर संभाले भगवान भोले नाथ की नगरी बनारस अपने आप में इस धरा की सबसे अद्भुत भूमि है। यहां अर्ध चंद्राकार के रूप में मां गंगा का स्वरूप भगवान भोले नाथ के जटा पर चांद का प्रतीक है। यहां काशी के कोतवाल काल भैरव और बाबा विश्वनाथ विराजमान हैं। यहां चौबीस घंटे हर- हर महादेव की गूंज होती रहती है। आप पूरी दुनियां घूम आइए, आप उतना नहीं सीख पाएंगे, जितना आप मात्र बनारस घूम कर सीख पाएंगे। बनारस पर कृपा महादेव की है। बनारस पर कृपा मां गंगा की है। महादेव के त्रिशूल पर विराजमान काशी वरुणा और अस्सी के बीच की वो काशी है जो बनारस के इश्क में सराबोर है।
बनारस का रस अपने आप में अनोखा है। बनारस सबको अपना बना लेता है। बनारस में सब गुरु हैं और सब चेला। यहां की बोली “का गुरु, का हालचाल हव” से शुरू होती है और मीठी गाली बक…के पर खत्म होती है। यहां सब एक-दूसरे को मीठी गाली देते भी हैं और गाली सुनते भी हैं। दो बनारसी आपस में बात करें और एक-दूसरे को मिठास भरी गाली न दें, ऐसा हो ही नहीं सकता। एक पुरातन कहावत है कि “सुबहे बनारस, शामें अवध”, अर्थात सुबह बनारस की सबसे हसीन होती है। बनारस से इश्क के लगाव के कारण अब इस कहावत को बदलने की जरूरत है और अब इस कहावत को अगर “सुबहे बनारस, शामें बनारस” कहा जाए तो ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि बनारस की सुबह भी अच्छी है और बनारस की शाम तो इश्क में डूबी हुई और भी अच्छी है।
बनारस एक ऐसा शहर है जो सोता नहीं है। यह चौबीस घंटे जागता है। बनारस लघु भारत है। यदि आपको कम समय में भारत को समझना है तो आप बनारस आ जाइए, भारत समझ में आ जाएगा। बनारस के इश्क में एक प्रकार का तिलिस्म है जो हर मोड़ पर नए इश्क के साथ उमड़ता-घुमड़ता है।
यह एक आम अवधारणा है कि लखनऊ तहजीब में अव्वल है तो यह भी एक अवधारणा है कि बनारस शहर नहीं, एक पूरी शख्सियत है। तहजीब संस्कार से जुड़ा हुआ है और सख्शियत में इंसानियत। अर्थात यह कह सकते हैं कि बनारस जीता-जागता, चलता-फिरता, इश्क की दुकान है। यहां इश्क रोज पनपता है, इश्क रोज जिया जाता है और एक जुनूनी इश्क आत्मा से परमात्मा का मिलन यहां के घाटों पर रोज हजारों की संख्या में अपने इश्क को परमात्मा रूपी अदृश्य शक्ति में विलीन होकर संतृप्त भी होता है।
विजय विनीत उस शहर से लिख रहे हैं जिस शहर के रहने वाले कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी विश्व स्तर पर ख्यातिलब्ध साहित्यकार हैं। यूं तो प्रेमचंद का साहित्य अतुलनीय है, पर विजय विनीत का लेखन कहानीकार के नजरिए से दोनों में एक समतुल्यता को प्राप्त करता है। विजय विनीत अपनी लिखी हर कहानी में एक पात्र हैं तो प्रेमचंद अपनी लिखी कहानी “गुल्ली डंडा” में एक लेखक के रूप में पात्र हैं। यह संयोग ही कहा जाएगा कि इतने दिनों बाद आखिर यह संजोग कैसे बन रहा है? आमतौर पर कहानी लेखन में कहानीकार काल्पनिक चरित्र को गढ़ता है और उसी से समाज में साहित्य को स्थापित करता है, पर विजय विनीत हर कहानी में खुद प्रेमचंद की कहानी “गुल्ली डंडा” की तरह एक पात्र हैं। यहां यह कहना समीचीन होगा कि प्रेमचंद के लेखन का इश्क विजय विनीत के लेखन का इश्क बनारसिया है और बनारसिया बना रहेगा।
विजय विनीत का इश्क यूं तो पत्रकारिता है, फोटोग्राफी है जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया है। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के मूल निवासी विजय विनीत बनारस पढ़ने के लिए आए और बनारसिया होकर रह गए। एक समीक्षक की नजर में मुझे विजय विनीत की कहानी संग्रह “मैं इश्क लिखूं तुम बनारस समझना” उनका जिया हुआ यथार्थ है। उनके द्वारा लिखी गई इस पुस्तक को संस्मरण साहित्य, यात्रा साहित्य, आत्मकथा साहित्य की श्रेणी में रखना ज्यादा मुफीद है।
विजय विनीत जी का इश्क एक अलग तरह का बनारसिया इश्क है। विजय विनीत का इश्क रूमानी इश्क है। उनका इश्क मर्यादित है। उनकी हर कहानी नए शहर से शुरू होती है और समाज की विसंगति को सामने लाकर समाधान ढूंढती हुई आगे बढ़ती है।
लेखक अपने लेखन में खुलापन भी चाहता है पर अपने नैतिक मूल्यों को भी बनाए रखना चाहता है। वह अवसर की तलाश में भी है और संस्कार के दबाव में भी है। हर कहानी में लेखक खुद एक पात्र है, इसलिए अपने लिए नायिका का चयन अपनी इच्छानुसार गढ़ लेता है और अपनी इच्छानुसार नायिका से व्यवहार भी करा लेता है। शब्दों के बाजीगर विजय विनीत जी इश्क तो खूब करते हैं, पर शादीशुदा होने के नाते डरते भी बहुत हैं। इश्क में पड़ा आशिक और कर भी क्या सकता है?
एकतरफा इश्क कभी परवान नहीं चढ़ पाता। इश्क या तो होता है या नहीं होता। इश्क बीच का विषय है ही नहीं। जिस तरह एक सिक्के के दोनों तरफ बिना प्रिंट के सिक्के का कोई मतलब नहीं है, ठीक उसी तरह इश्क भी दोनों तरफ से होता है। एकतरफा इश्क जब तक इजहार के माध्यम से बाहर नहीं आएगा, तब तक उसका कोई मतलब नहीं। इश्क परवान तभी चढ़ता है जब इश्क की आग बराबर दोनों तरफ लगी हो। इश्क किया नहीं जाता, इश्क हो जाता है। भारतीय संस्कृति में इश्क करने का अधिकार शादीशुदा पुरुष को अपनी पत्नी से है और पत्नी को अपने पति से है। शादीशुदा पुरुष को दूसरी महिला में अपनी बहन और शादीशुदा महिला को दूसरे पुरुष में अपने भाई का आभास होना इंसानियत है।
इस तरह कहा जा सकता है कि विजय विनीत की कहानी की नायिकाएं जीवन के यथार्थ से ली गई नायिकाएं हैं। वे जब-जब, जिस-जिस शहर में रहें, वहां पत्रकारिता के दौरान जो-जो उन्हें मिला, उन्हीं में वे इश्क ढूंढते नजर आते हैं। उनका इश्क व्यवसाय से भी जुड़ा इश्क है। कहानी में किसी के बहन की शादी का जिक्र है, तो किसी के पति को कैंसर से जूझना है, तो कोई मजबूरी में कोठे पर पहुंच गई है, तो कोई नाव वाली है, और विवाहोत्तर संबंध में आ रही दरार का भी इश्क है जो सर्वदा समाज में हो रहा है। विजय विनीत जी का कथा संसार यथार्थ का संसार है, नैतिकता का संसार है। वह हमेशा इश्क में तो हैं पर सलीके से, अनुशासन के साथ इश्क को जीते हुए लोगों की हर संभव मदद करते नजर आते हैं।
विजय विनीत जी को इस कहानी संग्रह के सफल प्रकाशन के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।