भारतीय विचार की शिक्षा के लिए 8 हजार करोड़ देने की पहल

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अनिल अग्रवाल

आज से 1600 साल पहले पूरी दुनिया से छात्र भारत आते थे ताकि वे नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर सकें। आर्यभट्ट, जगदीश चंद्र बोस, सीवी रमन, होमी भाभा…ये भारत के वो नगीने हैं जिन्होंने भारत का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया है। मैं अपने जीवन में जब पहली बार विदेश गया तो अमेरिका गया, वहां मुझे सस्ते इक्विपमेंट, फंडिंग और अमेरिका को देखने का मौका मिला।

उनकी स्पीड, उद्यमशीलता, बड़ी सोच मेरे लिए आंखें खोल देने वाली थी। वैसा अनुभव मुझे अपने देश में नहीं हुआ। मैंने पाया कि उनके एजुकेशन सिस्टम के कारण वहां ये अंतर आया। अमेरिका में 40 बड़े विश्वविद्यालय हैं जहां शिक्षा के अलावा, रिसर्च और डेवलपमेंट को प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे छात्रों को वे टॉपिक्स स्टडी करने की अनुमति मिलती है जो उनके दिल के करीब हैं। पॉलिसी मेकर्स के साथ उन इंस्टीट्यूट्स के कनेक्शन ने अमेरिका को वह बना दिया है जो वो आज है।

बात गौर करने वाली है कि एकेडमिक ईयर 2022-2023 में, लगभग 10 लाख भारतीय स्टूडेंट्स दुनिया भर की यूनिवर्सिटीज़ में डिग्री के लिए पढ़ाई कर रहे थे। मुझे आश्चर्य होता था कि इतनी बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स हायर स्टडी के लिए भारत से बाहर क्यों जाते हैं! इसके लिए होने वाला खर्च कोई कम भी नहीं है। औसतन, विदेश में पढ़ने वाला एक इंडियन स्टूडेंट अकेले ट्यूशन फीस पर प्रति वर्ष 20 से 50 लाख रुपए के बीच खर्च करता है, जो इंस्टीट्यूट और कोर्स पर डिपेंड करता है। एक स्टडी के मुताबिक वर्ष 2024 में फॉरेन इंस्टीट्यूट्स में पढ़ने वाले इंडियन स्टूडेंट द्वारा प्रति वर्ष होने वाला खर्च 80 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।

प्राचीन काल से ही भारत ने हमेशा विश्व गुरु का रोल निभाया है। यहीं से सबसे पहले शास्त्र और उनसे जुड़ा ज्ञान आया। मुझे ये बहुत दुखद लगता है कि भारत के बच्चों को ज्ञान लेने के लिए बाहर जाना पड़ रहा है।

मेरे दादाजी मेरे लिए गुरु समान थे। आज मैं जो कुछ भी हूं उनकी सीख के कारण ही हूं। वो कहा करते थे: “बेटा हरदम समाज की, देश की, लोगों की सेवा को ही ध्यान में रखना। अगर पैसा होगा तो पैसे से सेवा करना। नहीं तो अपने हाथों से किसी की मदद करना।” हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की वॉटर फ्रंटेज लोकेशन मुझे बहुत पसंद है और मैंने ये संकल्प लिया कि अगर मैं आर्थिक रूप से सक्षम होता हूं तो ऐसा कुछ बनाऊं जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक तीर्थ बन जाए।

जब मैं ओडिशा के एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था, तभी मैंने वहां एक वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटी और एजुकेशन सिटी बनाने का तय कर लिया था। पुरी और कोणार्क मंदिर के बीच मुझे वो जगह नजर आई जो एक एतिहासिक स्थान भी है और वाटर फ्रंट भी। जब मैंने लोकेशन विजिट की तो मुझे बहुत सुंदर और स्पिरिचुअल फीलिंग हुई। एक तरफ जगन्नाथ मंदिर था और दूसरी तरफ कोणार्क मंदिर था। मैं जानता था कि यही वो जगह है जहां विद्या की देवी को विराजमान करना है।

शुरुआत में वहां एक लाख छात्र होंगे और मेरी इच्छा कम से कम 5 लाख लोगों के लिए एक शहर बनाने की है। युनिवर्सिटी में सारे प्रचलित कोर्सेज होंगे लेकिन लिबरल आर्टस, मेडिसिन और एंटरप्रेन्योरशिप पर फोकस किया जाएगा। हम इस बात पर सहमत हैं कि इसका लाभ ज़रूरतमंद और टैलेंटेड बच्चों को मिलना चाहिए। तीस पर्सेंट एडमिशन कम फीस या बिना फीस के मिलने चाहिए। हमने जो लोकेशन सिलेक्ट की, वो एयरपोर्ट से 40 मिनट की दूरी पर थी। सरकार मुफ्त जमीन देने पर विचार कर रही थी, लेकिन हमने फैसला किया कि हम जमीन को मार्केट वैल्यू पर खरीदेंगेI इस तरह कोई भी वंचित नहीं रहेगा, क्योंकि हमें इस नेक काम के लिए सभी लोगों के आशीर्वाद की जरूरत है।

मेरा सपना था कि उस यूनिवर्सिटी में वर्ल्ड फुटबॉल लीग खेली जाए और एक वर्ल्ड क्लास स्टेडियम हो, सभी फैकल्टी के लिए हाउसिंग कॉलोनी बनाई जाए। रिसर्च पर फोकस हो ताकि हम ग्लोबल लेवल पर आगे आ सकें।

अमेरिका और बाकी देशों में लगभग 16% इंडियन फैकल्टी मेंबर्स हैं। उनसे बात करने पर पता चला कि उनमें से काफी लोग भारत वापस आ कर इस मिशन के साथ जुड़ना चाहते हैं। हमने इसे बनाने में मदद करने के लिए एमरी यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट विलियम चेज़ को चेयरमैन अप्वाइंट किया था और इस सपने को साकार करने और आगे बढ़ाने के लिए एक सक्षम टीम जुटाई।

मैंने इस विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए तुरंत 1 बिलियन डॉलर (8000 करोड़ रुपए) देने का संकल्प किया है और अतिरिक्त 2 बिलियन डॉलर की व्यवस्था करने का वादा किया है।

इस यूनिवर्सिटी का ब्लूप्रिंट मैं बार बार अपने दिमाग में बनाता रहता हूं। सोचता रहता हूं और क्या करना चाहिए हमें जो हमारे यूथ को एक नई दिशा में ले जाए। ख्याल आया कि इस यूनिवर्सिटी में एक एग्जिबिशन सेंटर भी होना चाहिए। जहां बारह महीनों में कोई न कोई मेला या एग्जिबिशन चलता रहे। भारत हेवी मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, रिन्यूएबल, ऑटोमोबाइल, रियल एस्टेट, टेक्सटाइल और फर्नीचर के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा बाजार है। इससे हमारे बच्चों को इन इवेंट्स में पार्ट टाइम जॉब्स मिलेंगे और इंफ्रा स्ट्रक्चर डेवलप होगा- कई होटल, रेजिडेंशियल कॉलोनी और रियल एस्टेट विकसित होंगे। मैं उत्साहित था क्योंकि यहां एक वॉटर फ्रंट होने के कारण हम कई वॉटर स्पोर्ट्स आयोजित कर सकेंगे।

ओडिशा गवर्नमेंट ने इस बारे में बिल को असेंबली में पास कर दिया। हमें सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं चाहिए। हम सिर्फ साथ और सहयोग की अपेक्षा रखते हैं।
अमेरिका के आगे बढ़ाने में उसके यूनिवर्सिटीज का रोल था जो उनके थिंक टैंक- सूत्रधार थे। भारत का यूथ बहुत टैलेंटेड है, ज़रूरत है तो सिर्फ उनको सही प्लेटफॉर्म की। अधिकांश स्टूडेंट्स विदेश नही जा सकते, या फिर लोन ले कर पढ़ाई करते हैं। दुनिया नहीं चाहती कि भारत एक एजूकेशन हब बने। बहुत सारे एनजीओ इसमें कूद पड़े और सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर किया। इस प्रयास में सात साल बीत गए हैं। न्यायालय को अर्जेंसी के सेंस को समझना होगा और मामले में स्पष्टता लानी होगी।

हमने डिजिटल यूनिवर्सिटी का भी इरादा बनाया, जिसे दूर रहने वाले छात्र तक भी पहुंचा जा सके। हमारा उद्देश्य शिक्षा का व्यापार करके पैसा कमाना नहीं है, हम सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में एक नई क्रांति लाना चाहते हैं। आप अमेरिका में देखिए, उनके पास 40 बड़ी यूनिवर्सिटी हैं जिनमें से एक भी गवर्नमेंट फंडेड नहीं है। हम एक ऐसी शुरुआत करना चाहते हैं जो देश के और एंटरप्रेन्योर्स को प्रेरित करे, आगे के न्यू एज एजुकेशनल इंस्टीट्यूट बनाने के लिए। “पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया!”

भारत को दुनिया को दिखाना है कि विश्वगुरु हम हैं। जो हम कर सकते हैं वो कोई नहीं कर सकता। हमारे उद्यमी सिर्फ बिजनेस नहीं करते, अपने देश की मिट्टी से सोना निकालते हैं। मैं अपने जीवनकाल में इस यूनिवर्सिटी के कैंपस में बैठ कर अपने आस-पास लाखों स्टूडेंट्स के चहकते, मुस्कुराते चेहरों में अपने देश के भविष्य को सूरज सा चमकता देखना चाहता हूं। क्या आप मेरे साथ हैं?

 

(लेखक वेदांता उद्योग समूह के प्रमुख हैं।)