Friday, November 22, 2024
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चौपाल में बरसा संगीत और सुरों का जादू

मुंबई की चौपाल का अपना ही रंग होता है। हर बार चौपाल सुधी श्रोताओँ और दर्शकों को चौंका देती है। अतुल तिवारी जी और शेखर सेन जाने कैसे चौपाल के लिए एक से एक विषय और इससे जुड़े गुणी जनों को लाकर चौपाल के श्रोताओं को चार घंटे तक बिठाए रखते हैं।

इस बार चौपाल में कई रंग देखने को मिले। मुंबई के साहित्य- संस्कृति प्रेमी कविता और दिनेश जी गुप्ता ने चौपाल का आतिथ्य भी बखूबी निभाया। उनके घर चौपाल हो तो ऐसा लगता है जैसे किसी पारिवारिक सगाई-शादी में आए हैं, पूरा घर चौपालियों की सेवा में लग जाता है और हर बार नए नए व्यंजनों से स्वागत होता है।

चौपाल की शुरुआत स्वर्गीय संगीतकार मदन मोहन जी की बेटी श्रीमती संगीता कोहली गुप्ता द्वारा प्रस्तुत संस्मरणों से हुई। उन्होंने इस कालजयी संगीतकार की जिंदगी और उनके कामों से जुड़े एक से एक यादगार किस्से प्रस्तुत किए। गायिका अनिका अग्रवाल ने संस्मरण से जुड़े गीतों को गाकर इस शाम को और यादगार बना दिया। उन्होंने 1956 में आई फिल्म भाई भाई के गीत से जुड़े किस्से बताए तो अनिका अग्रवाल ने इस फिल्म का गीत कदर जाने ना मोरा बालम बेदर्दी गाकर श्रोताओं के दिल के तार झनझना दिए।

1962 में आई फिल्म अनपढ़ के गीत आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल हमें को लेकर उन्होंने बताया कि पहले इस गाने की जगह दूसरा गना बन चुका था, गाने की रेकॉर्डिंग भी हो रही थी और लता जी आ चुकी थी, लेकिन तभी गीतकार अली हसन आए और उन्होंने कहा कि मैंने इस सिचुएशन पर कुछ और लिखा है। इसके बाद मदनजी को ये गीत सुनाया गया तो उन्होंने सी समय इसकी धुन तैयार की। लताजी जिस गाने को गाने आई थी उसे छोड़कर वापस चली गई और बाद में ये आपकी नजरों वाला गाना रेकार्ड हुआ।

 

 

उन्होंने बताया कि तब फिल्म अभिनेता और अभिनेत्रियाँ अपनी भूमिका में प्राण डालने के लिए कितनी मेहनत करते थे, उसका उदाहरण है माला सिन्हा। माला सिन्हा ने एक नेपाली फिल्म के लिए गीत गाया था और वह मदन जी केपास आकर फिल्म में दिखाए जाने वाले गाने की रिहर्सल करती थी ताकि उनके ओठ हिले तो गाने के बोल से अलग ना लगे।

उन्होंने कहा कि एक बार मदन मोहनजी के साथ पूरा परिवार कार में लॉंग ड्राईव पर जा रहा था। हमारी गाड़ी बहुत तेजी से चल रही थी क्योंकि तब मुंबई में सड़कें खाली होती थी। तभी एक पुलिस की गाड़ी सायरन बजाती बजाती हमारे पीछे आने लगी, हम गाड़ी और तेज भगाने लगे, मगर पुलिस की गाड़ी ने आगे आकर हमारा रास्ता रोक लिया। हमें लगा कि अब तो फँसे, मगर उस पुलिस वाले ने कार के अंदर पापा की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा मदन जी मैं आपके गाने आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल का जबर्दस्त प्रशंसक हूँ और आपको देखा तो आपसे मिलने का लोभ संवरण नहीं कर सका।

संगीता जी ने बताया कि 1964 में मदन मोहन जी ने 8 फिल्मों में संगीत दिया। वो कौन थी फिल्म में 9 गाने थे। मगर वो फिल्म एक सप्ताह भी नहीं चली जबकि उसके गाने बहुत लोकप्रिय हुए। इस फिल्म को लेकर भी रोचक किस्सा है। फिल्म के निर्देशक चाहते थे कि फिल्म में गीत रफी साहब गाए मगर मदन मोहनजी ने कहा कि इसमें ये गीत तलत महमूद गाएँगे अगर वो नहीं गाएंगे तो मैं संगीत नहीं दूंगा। मदन जी ने ये गाना अपने खर्च से तलत जी आवाज़ में रिकार्ड करवाया।

 

फिर वही शाम चली गीत जसविंदरजी ने तलत महमूद की धीर गंभीर आवाज़ में प्रस्तुत कर खूब वाहवाही लूटी।

शेखर जी ने बताया कि मदन मोहन खुद एक गायक बनने मुंबई आए थे। उन्होंने पहला गाना लताजी के साथ गाया था और उस गाने को सुनने के बाद खुद ने ही अपने आपको गायक बनने के काबिल नहीं समझा। उन्होंने लताजी के साथ माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की गाया था।

निर्मला जी ने बरसात पर कविता प्रस्तुत कर अपने मन के भावों को प्रस्तुत किया।

संचालन करते हुए शेखर जी ने कहा कि कोयल पावस को बुलाने के लिए जोर जोर से गाती है ताकि बादल आएँ और बरसे मगर बारिश होते ही चुप हो जाती है, क्योंकि मेंढकों की टर्र-टर्र में उसकी आवाज़ दब जाती है। रहीम का दोहा पावस देखि रहीमन कोकिल साधे मौन, अब दादुर वक्ता भये हमको पूछे कौन। इसकी व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जहाँ बकवास करने वाले लोग इकठ्ठे हो जाए वहाँ समझदाव वक्ता को चुप हो जाना चाहिए।

रायपुर से आए जाने माने लोककलाकार, संगीतकार, निर्देशक लेक नाट्यकर्मी श्री राकेश तिवारी ने अपनी खनकती आलवाज़ में जब छत्तीसगढ़ी लोक गीत झिमिर झिमिर बरसे देखो रे संगी साथी सुनाया तो ऐसा लगा मानों मेघों की गड़गड़ाहट के बीच बारिश कि रिमझिम सुनाई दे रही है। श्री तिवारी को संगीत नाटक अकादेमी से पुरस्कृत भी हो चुके हैं और उन्होंने छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों पर फिल्में बनाकर पिछली पीढ़ियों की कला विरासत को जीवंत कर दिया है।

अगली बारी थी जाने माने बारी वादक रोनू मजुमदार और उनके बेटे ऋषि की। शेखरजी ने बताया कि रोनू जी ने अपने पिता से संगीत सीखा और काशी से उल्हासनगर आए और वहाँ से मुंबई अपनी बहन को संगीत सिखाने ले जाते थे और खुद भी सीखते थे। मैने रोनूजी के साथ ही संघर्ष किया है। शेखरजी ने एक रोचक घटना बताते हुए कहा कि 1985 में हम दोनों ने सा रे गा मापा के लिए रमामयण रिकार्ड कर रहे थे। एक दिन रोनू दादा रिकार्डिंग पर बहुत देर से आए और वो भी सूट बूट में…मैं उनको इस हुलिए में देखकर कुछ बोलता इसके पहले ही वो चिल्लाकर बोले दादा मेरा अमरीका का वीसा हो गया। उन्होंने बताया कि रोनू जी ने जगजीत सिंह जी के साथ बहुत काम किया और वे अपने जमाने के प्रसिध्द चंदन स्टुडिओं से भी जुड़े रहे।

रोनू मजुमदार जी ने बाँसुरी से राग मल्हार तान छेड़ी तो तबले पर राजेश मिश्रा ने संगत कर अद्भुत रसवर्षा की।

 

जसविंदर जी बरसात के मौसम की फुहारों से बिगोती ग़ज़लें प्रस्तुत कर बारिश के मौसम का एहसास कराते रहे। उनके साथ आशीष विश्वास ने संगत की।

किसने भीगे हुए बालों से ये झटका मानो झूमके आई घटा,

यूँ तो क्या क्या नज़र नहीं आता, कोई तुमसा नज़र नहीं आता

जो नज़र आते हैं हैं नहीं अपने, जो है अपना वो नज़र नहीं आता।

झोलियाँ तब भी भरती जाती है देने वाला नज़र नहीं आता।

कोई तुमसा नज़र नहीं आता…..

दस्तूर इबादत का दुनिया में मेरा हो

एक हाथ में माला हो, एक हाथ में प्य़ाला हो

कौन है जिससे मैने मय नहीं चखी, कौन झूठी कसम उठाता है

जो मयकदे से बच निकलता है, तेरी आँखों में डूब जाता है

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए

न झुकाओ यूं अपनी निगाहें, कहीं रात ढल न जाए

ये अश्क़ भी हैं, इस पर शराब उबल न जाए

मेरा जाम छूने वाले, तेरा हाथ जल न जाए

मेरी ज़िंदगी के मालिक मेरे दिल पे हाथ रख दे

तेरे आने की खुशी में मेरा दम निकल न जाए

मैं नजडर से पी रहा हूँ, तू यों न झुका निगाहें

इसके बाद उन्होंने ये गज़लें प्रस्तुत कर माहौल को एक नए दौर में ढाल दिया।

कोई उम्मीद पर नहीं आती, कोई सूरत पर नहीं आती

मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद रात भर क्यों नहीं आती

आगे आनी भी थी हाले दिल पर हँसी

अब हालात है ये हँसी अब किसी बात पर नहीं आती

शेखर सेन ने कबीर की बेटी कमाली की रचना

भीगी जाऊँ मैं बचाए लैयो, झरन लागी बदरिया प्रस्तुत करने के बाद ठुमरा पेश किया।

अभी तक जितने भी भक्ति गीत या गीत प्रचलित हैं, वे राधा से कृष्ण के संवाद के हैं। ये ठुमरा कृष्ण का राधा से संवाद है। कृष्ण बाँसुरी बजाते हुए राधा से संवाद कुछ यों करते होंगे-

तन तो रंगा है राधा मन अभी कोरा रे

अपने ही रंग रंग दे जैसा रंग तौरा है

बरसाने वाली मो पे रंग बरसा दे

नैनों की प्याली से तू रंग सरसा दे

करे ये बिनती है तौसे नंद का छोरा रे

 

इसके बाद शास्त्रीय गायिका श्रावणी चौधरी ने अपना शास्त्रीय गीत प्रस्तुत किया।

शेखर दा ने कहा कि आज हम शास्त्रीय गीत और संगीत का जो शुध्दतम स्वरूप देख रहे हैं इसको जिंदा रखने में तवायफों का बहबुत बड़ा योगदान रहा है, जिन्होंने तमाम अपमान और उपेक्षा सहकर भी ठुमरी, कव्वाली और संगीत की कई विधाओं को जीवित रखा। उन्होंने कहा कि हमारी दादी नानियों ने भी घर में घट्टी पिसते हुए, घर में काम करते हुए, भारतीय संगीत और गीतों के खजाने को सुरक्षित रखा। हमारी लोक परंपराओं को जीवित रखने में हमारे बुजुर्गों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

कार्यक्रम के अंत में शेखर सेन, रोनू मजुमदार, श्रावणी चौधरी, जसविंदर सिंह ने मिलकर अलग-अलग अंदाज़ में एक साथ गीत गाकर इस शानदार महफिल का जादुई समापन किया।

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