भारत सरकार का यह प्रयास सराहनीय एवं स्वागत योग्य है कि कारागार में निरुद्ध कैदियों के जमानत की रकम अदायगी का भार वहन करेगी। कारागार में निरुद्ध गरीब /निर्धन कैदियों पर लगाए गए जुर्माने और जमानत पर आने वाली लागत का खर्च भारत सरकार की तरफ से अदायगी की जाएगी. सरकार का यह कार्य कल्याणकारी राज्य के लक्ष्य और उद्देश्यों को पूर्ण करने में सहयोग करेगा। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो( एनसीआरबी) ने हाल ही में जेल सांख्यिकी(jail manual) का प्रतिवेदन जारी किया है, इसके आंकड़ों के अनुसार देश की जेलों में निरुद्ध कैदियों की संख्या 4.83 लाख है।
देश भर की जेलों में हजारों कैदी हैं जिनके पास जमानत लेने के लिए या उन पर लगाए गए जुर्माने की राशि चुकाने के लिए पैसे नहीं है जबकि उनकी कैद की अवधि पूरी हो चुकी है, या फिर वह विचाराधीन है।यह सौभाग्य का पहल है कि भारत सरकार ने ऐसे कैदियों के अधिकारों के लिए मदद का हाथ बढ़ाएं ।दिल्ली में संपन्न हुई सभी राज्यों के पुलिस और अर्धसैनिक संगठनों के प्रमुखों की वार्षिक सुरक्षा बैठक में भी जेलों की वर्तमान स्थिति पर चर्चा हुआ है ।कैदी भी सामान्य नागरिक हैं, जिनके मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकार होते हैं। उनके मौलिक अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षा करने का पुनीत दायित्व राज्य का है। विधायिका ( विधि बनाने वाली संस्था), कार्यपालिका( विधियों को क्रियान्वित करने वाली संस्था) एवं न्यायपालिका( विधियों के संवैधानकता को सिद्ध करने वाली संस्था, क्योंकि विधि यूनानी भाषा” Decoisune” से लिया गया है, जिसका आशय ‘ उचित’ (Rightiousness) हैं।
कैदियों को उनके मूल अधिकारों को प्रदान करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है। कैदी को जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, शुद्ध पेयजल का अधिकार, स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार ,मुफ्त कानूनी सलाह का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। कैदियों को गरिमामय जीवन का अधिकार है ;जिससे वे अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकें, जेलों का सुधार अच्छी नियत और इमानदारी के भाव से किया जा सकता है ,क्योंकि मानवीय समाज को भावनात्मक आधार पर ही जोड़ा जा सकता है। कैदी भी समाज के अभिन्न अंग हैं ।समाज के स्वस्थ विकास से ही राष्ट्र का विकास हो सकता है।