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मदन मोहन मालवीय जी का पत्रकारिता में योगदान

भारतीय पत्रकारिता (पत्रकारिता धर्म) को नवोन्मेष , लोकतांत्रिक, समाजोपयोगी एवं लोकोनुमूखी आयाम, कालजयी लेखक,संपादकों एवं पत्रकारों में अग्रगामी महामना मदनमोहन मालवीय जी यथा नाम तथा गुण थे,कल उनकी जयंती थी।उन्होंने भारतीय पत्रकारिता को अपने अलौकिक कामनविहिन्न(काम,क्रोध ,मद एवं लोभ से मुक्त), पुरुषार्थी (धर्म,अर्थ,काम एवं मोक्ष से युक्त) मेधा व अनथक – अनवरत श्रम से सशक्त किया था।महामना जी वातानुकूलित कक्ष में बैठकर चाटुकारिता,मूख प्रसन्न एवं सहानुभूति के आधार पर कलम चलाने वाले कलमकार नहीं थे,बल्कि सामाजिक सुधार एवं सांस्कृतिक मूल्यों व आदर्शो के उपापदेई वाले अप्रतिम पुरुषार्थी व्यक्तिव थे।

उन्होंने अपने दौर के लोक जनमानस की समस्याओं (गरीबी/निर्धनता, बेरोजगारी एवं धर्ममय राजनीति )से झंकृत किया था।

महामना जी व्यक्तिगत संबंधों एवं सम्मान के भौतिक एवं मनोभौतिक लाभ उठाने वाले व्यक्तिव नहीं थे,बल्कि जनतांत्रिक(उनके समय लोकतंत्र का अभाव) मूल्यों, उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण थे। मानवीय जीवन में वही व्यक्ति साधक होता है,जिसका जीवन परोपकार,भौतिक सुविधाविहीन,इन्द्रियों पर नियंत्रण ,निष्ठा(जिसने ऊपर उठाया हो),सरलता एवं मानवता से परिपूर्ण होती है।

महामनाजी सामाजिक सुधार एवं राजनीतिक क्षेत्र (उत्तरदायित्व शासन की उपादेयता,राजनीतिक आभार से प्रेरित एवं शासक और शासित के परस्पर आध्यात्मिक संबंधों पर आधारित) के सबसे बड़े चिंतकों में से एक थे; पत्रकारिता में मालवीय जी के वैश्विक पहचान, प्रतिष्ठा (सामाजिक स्तर) व पकड़(चारित्रिक सौंदर्यता) को भी रेखांकित करता है।

मालवीय जी सदैव सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आधार पर भारतवर्ष को एक संप्रभुता संपन्न सांस्कृतिक राष्ट्र- राज्य के रूप में संगठित करते हुए भारत को स्वाधीन कराना चाहते थे।भारत में सामाजिक ,धार्मिक ,राजनैतिक/राजनीतिक जागरण के प्रयासों को भारत की स्वाधीनता के रूप में लक्षित करना ही मौलिक उदेश्य था।भारतीय जनमानस में इस जागतिक मूल्यों,आदर्शो एवं उदेश्य्यो की पूर्ति के लिए वैचारिक क्रांति (बौद्धिक स्तर पर आमूल चूल बदलाव) का अभ्युदय हुआ था।

मालवीय जी एक ऐसे पुरुषार्थी मनीषी थे जिन्होंने अपने वैचारिक विवेक की उपादेयता से हिन्दू समाज एवं हिन्दू राष्ट्र के विविध क्षेत्रों को सुधारात्मक दृष्टिकोण प्रदान किए।उन्होंने अपने अपर्तिम विलक्षण मेधा का उपादेयता सार्वजानिक जीवन में मानवीय कल्याण के लिए किए। मालवीय जी का व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन रास्ट्रोपयोगी था,उनके व्यक्तिव का सार्वभौमिक उपादेयता था कि उनकी कथनी और करनी एक थी।उनके व्यक्तिव ,चरित्र एवं कार्य से समाज को कल्याणकारी रूप में ढालना चाहिए।

(डॉक्टर सुधाकर मिश्रा ,राजनीतिक विश्लेषक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिक विषय के सहायक आचार्य हैं।)