आरिफ़ अपने पिता की बीमारी की खबर सुनकर मुंबई में कोई साधन नहीं मिलने से 2100 किलोमीटर दूर जम्मू के लिए सायकिल से ही निकल पड़ा, लेकिन सीआरपीएफ कैसे किसी देवदूत की तरह उसकी और उसके पिता की मददगार बनी….
‘मेरे अब्बा की सांसें सीआरपीएफ़ की वजह से चल रही हैं, मैं ताउम्र सीआरपीएफ़ का शुक्रिया अदा करता रहूंगा.’
ये कहते-कहते आरिफ़ रुआंसे हो जाते हैं. जब वो साइकिल से मुंबई से जम्मू-कश्मीर के राजौरी तक के 2100 किलोमीटर लंबे सफ़र पर निकले थे तब उन्हें नहीं पता था कि वो अपने अब्बा को ज़िंदा देख पाएंगे या नहीं.
लेकिन अब वो चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में हैं जहां उनके अब्बा का इलाज चल रहा है और वो उनके साथ हैं.
कोरोना वायरस को रोकने के लिए भारत सरकार ने 25 मार्च को देशभर में लॉकडाउन किया था. 14 अप्रैल तक चलने वाले इस लॉक़ाउन में सबकुछ बंद है.
मोहम्मद आरिफ़ को जब घर से फ़ोन आया कि उनके अब्बा वज़ीर हुसैन की तबियत बहुत ख़राब हो गई है तो वो बेचैन हो उठे.
उन्होंने घर जाने का हर रास्ता तलाशने की कोशिश की, लेकिन जब कुछ न हो सका तो साइकिल पर ही मुंबई से कश्मीर के सफ़र पर निकल पड़े.
बीबीसी से फ़ोन पर बात करते हुए आरिफ़ ने बताया, “मेरे अब्बा को अटैक आ गया था, लॉकडाउन था, कोई सिस्टम नहीं था आने का. मैंने हर संभव कोशिश की लेकिन कोई मदद नहीं मिल सकी. फिर मैंने साइकिल ख़रीदी और साइकिल पर घर के लिए निकल गया. मैं मुंबई से दो अप्रैल को चला था.”
आरिफ़ साइकिल पर कश्मीर की ओर बढ़ रहे थे. रास्ते में लोग उनका हालचाल पूछ रहे थे. ऐसे ही एक युवक दीपेश ने उनका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर किया था.
कुछ लोगों ने आरिफ़ की कहानी सीआरपीएफ़ की हेल्पलाइन मददगार के साथ शेयर की. आरिफ़ के बारे में पता चलते ही सीआरपीएफ़ तुरंत उनकी मदद के लिए सक्रिय हो गई.
जम्मू-कश्मीर में सीआरपीएफ़ के विशेष डीजी ज़ुल्फ़िक़ार हसन ने बीबीसी को बताया, “हमने आरिफ़ से संपर्क किया और उन्हें समझाने की कोशिश की कि वो रास्ते में रुक जाएं. इस दौरान हमारी टीम उनके पिता तक पहुंचने के लिए सक्रिय हो गई.”
हसन बताते हैं, “राजौरी में जब हम उनके घर पहुंचे तो उनके पिता की तबियत ख़राब थी. उन्हें तुरंत ज़िला अस्पताल लाया गया जहां से उन्हें जम्मू के लिए रैफ़र कर दिया गया. हमने हेलिकॉप्टर से उन्हें जम्मू पहुंचाया लेकिन यहां भी डॉक्टरों ने उन्हें चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल के लिए रैफ़र कर दिया. हमने उनके पिता को जितनी जल्दी हो सका चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल पहुंचाया जहां उनका इलाज चल रहा है.”
जुल्फ़िकार हसन बताते हैं, “दूसरी ओर हम आरिफ़ को भी चंडीगढ़ पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे. हमने उन राज्यों की पुलिस की भी मदद ली जो रास्ते में पड़े और आख़िरकार उन्हें उनके पिता के पास पहुंचा दिया गया.”
आरिफ़ बताते हैं कि वो तीन दिन साइकिल चलाकर गुजरात के बड़ौदा पहुंच चुके थे जब सीआरपीएफ़ की टीम उन्हें मिली. आरिफ़ बताते हैं, “बड़ौदा में सीआरपीएफ़ मुझे मिली. मुझे सीआरपीएफ़ अपने हेडक्वार्टर लेकर गई और वहां मुझे खाना खिलाया और फिर दो हज़ार रुपए कैश भी दिए.”
वो बताते हैं, “जब मैं मुंबई से निकला था तो मैंने हिसाब लगाया था कि 21-22 दिन साइकिल चलाकर घर तक पहुंच जाउंगा. मैं अपने पिता को देखने के लिए बेचैन था. सीआरपीएफ़ के लोग फ़रिश्तों की तरह आए और मुझे मेरे अब्बा से मिलवा दिया.”
फिलहाल चंडीगढ़ के अस्पताल में आरिफ़ के अब्बा का इलाज चल रहा है और पूरा ख़र्च सीआरपीएफ़ उठा रही है.
आरिफ़ और सीआरपीएफ़ को उम्मीद है कि उनके अब्बा जल्द ही ठीक हो जाएंगे.
क्या है सीआरपीएफ़ मददगार?
ज़ुल्फ़िक़ार हसन के मुताबिक सीआरपीएफ़ की हेल्पलाइन मददगार को साल 2017 में स्थापित किया गया था.
इस हेल्पलाइन का मक़सद मुसीबत में फंसे हुए लोगों की मदद करना है.
हसन बताते हैं कि जब जम्मू-कश्मीर में बीते साल पांच अगस्त को लॉकडाउन शुरू है तब इस हेल्पलाइन के ज़रिए देशभर में रह रहे कश्मीरी लोगों और छात्रों की मदद की गई.
सीआरपीएफ़ एक केंद्रीय बल है और इसकी उपस्थिति देश के हर हिस्से में हैं. ऐसे में सीआरपीएफ़ की ये हेल्पलाइन उन कश्मीरी लोगों के लिए संजीवनी साबित होती है जो देश के किसी भी हिस्से में मुश्किल हालात का सामना कर रहे होते हैं.
केंद्र शासित प्रदेश कश्मीर में भारतीय सैन्य बलों की भारी मौजूदगी है. इनमें सीआरपीएफ़ प्रमुख है. ज़ुल्फ़िक़ार हसन मानते हैं कि अपनी इस हेल्पलाइन के ज़रिए सीआरपीएफ़ कश्मीरी लोगों में भरोसा पैदा कर रही है.
आरिफ़ बार-बार सीआरपीएफ़ का शुक्रिया अदा करते हुए कहते हैं, “मेरे अब्बा सीआरपीएफ़ की वजह से ज़िंदा हैं, मैं शुक्रगुज़ार हूं कि मैं उन्हें ज़िंदा देख पाया.”
सभार- https://www.bbc.com/hindi/ से