बाबई (माखननगर) होशंगाबाद, 4 अप्रैल, 2016 मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा ने समाज के विभिन्न तबकों में निरंतर आ रही गिरावट पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि सतयुग से कलयुग तक का समय समाज को अलग-अलग दिशा प्रदान करता है। कलयुग में अन्याय, अत्याचार एवं साम्राज्यवाद के बढ़ते प्रभाव ने राष्ट्रवाद पर ही गहरा प्रभाव छोड़ा है। हमें ऐसे दौर में देश (घर) के भीतर छिपे गद्दारों से सावधान रहने की जरूरत है।
डॉ. शर्मा आज यहाँ राष्ट्रकवि, स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रख्यात पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी की “भारत राष्ट्र की कल्पना” की व्याख्या करते हुए कहा कि लोकतंत्र में तीन स्तम्भ कार्य करते हैं, चौथा स्तम्भ मीडिया माना गया है। इन लोकतांत्रिक संस्थाओं में निरंतर सामाजिक परिदृष्य के प्रभाव से गिरावट देखी जा रही है, और वर्तमान दौर में कुछ ऐसे तत्व हैं जो देशद्रोह या देश के खिलाफ कार्य कर रहे हैं, वह देश के प्रति समर्पित लोगों को साम्प्रदायिक कहने पर तुले हुए हैं। भारत की भूमि में भगवान श्री राम के आदर्श सर्वविदित हैं। महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने न्याय का दृष्टांत प्रतिपादित किया है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, दादा माखनलाल चतुर्वेदी और लोकमान्य तिलक जैसे अनेक देश भक्तों ने राष्ट्रवाद की परिभाषा को अपने जीवन से सिद्ध किया है। महात्मा गांधी भी राष्ट्रवाद के पुजारी थे। वर्तमान दौर में देश-भक्ति एवं राष्ट्रवाद का अलख जगाने की महती आवश्यकता है।
समारोह के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार एवं माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति श्री अच्युतानंद मिश्र ने दादा माखनलाल चतुर्वेदी के जीवन के विभिन्न पड़ावों, यात्राओं, राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत घटनाओं का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि बाबई की भूमि पवित्र है, जहाँ राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म हुआ। वे एक विचारधारा से कभी बंधे नहीं रहे, हालांकि उनके पास कांग्रेस के कई महत्वपूर्ण पद थे, इसके बावजूद उन्होंने आवश्यकता पड़ने पर पार्टी के बजाए देश हित की बात की और पार्टी के कई फैसलों को मानने से इंकार कर दिया। हिंदी साहित्य में उनके गुरू भारतेन्दु हरिश्चंद्र और पत्रकारिता में उन्होंने माधवराव सप्रे से प्रेरणा ली। गणेश शकर विद्यार्थी और दादा माखनलाल जी दो शरीर एक आत्मा थे।
उन्होंने कहा कि 1916 में लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन ने कांग्रेस को एक अलग दिशा दी। यहाँ माखनलाल जी और गणेश शंकर विद्यार्थी की मुलाकात महात्मा गाँधी जी से हुई, और यहाँ गांधीजी जी से हुई लम्बी बहस के बाद दोनों का अहिंसा के प्रति नजरिया बदल गया। बाद में प्रताप अखबार में 14 फरवरी 1922 में दादा ने पुष्प की अभिलाषा में अपने भाव प्रकट किए। उन्होंने कहा कि 1936 में गांधीजी के निर्देश पर अंग्रेजों की शिक्षा व्यवस्था का बहिष्कार करने का फैसला किया और राष्ट्रवादी संस्थान जैसे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी सहित देश के अन्य शहरों में स्थापित किए गए, उसी दौर में काशी में देश का पहला भारत माता मंदिर बनाया गया, जिसमें किसी देवी-देवता का चित्र न होकर भारत का मानचित्र स्थापित किया गया। यह भारतीयता की परिसंकल्पना थी, उन्होंने कहा कि पिछले दो सालों से अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर एक नई बहस शुरू की गई है। हमारा इतिहास हमें राष्ट्रवाद, राष्ट्रीयता एवं भारतीयता का पाठ पढ़ाता है। हमारा सौभाग्य है कि हमें दादा माखनलाल चतुर्वेदी जैसे प्रेरणा पुरुषों के आदर्श मूल्य और जीवन जीने की सीख मिली है। जब तक उनके आदर्शों की छांव हमारे साथ है, तब तक राष्ट्रीयता पर कोई आंच नहीं आएगी।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि अमेरिका और यूरोप में जब स्व अस्तित्व की पहचान का संकट था, तब हमारा धर्म हमारी राह प्रशस्त कर रहा था। हमें कभी नहीं लगा कि हम कौन हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान हालात में राष्ट्र विभाजन की ओर बढ़ता दिखता है। ऐसे में हमें खासतौर से, युवा संचारकों को क्या करना चाहिए? उसका बोध कराना होगा। मीडिया की दृष्टि क्या हो और भारत किस दिशा में आगे बढ़े, इस बात का संकल्प आज बाबई में, दादा माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती पर हम यदि लेते हैं तो यह दादा के प्रति हमारी सच्ची श्रृद्धांजलि होगी। उन्होंने पत्रकारिता विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को इस दिशा में कारगर पहल करने की आवश्यकता भी प्रतिपादित की। समारोह में जाने-माने हिंदी सेवी एवं वरिष्ठ पत्रकार कैलाशचंद्र पंत ने भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की समाज व्यवस्था एवं ऋषि परम्परा पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान राम और श्री कृष्ण जिस दिशा में खड़े थे और उनका जो जीवन आदर्श है वही हमारा धर्म है। धर्म को हमें गलत ढंग से परिभाषित नहीं करना चाहिए। धर्म, रिलीजन का पर्याय नहीं है, उसका अपना एक स्व-अस्तित्व है।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव श्री लाजपत आहूजा ने विश्वविद्यालय स्थापना के पच्चीस वर्ष पूर्ण होने पर वर्ष 2016 में रजत जयंती वर्ष श्रृंखला के अंतर्गत आयोजित किए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी और कहा कि दादा माखनलाल चतुर्वेदी ने कभी पद के पीछे भागना स्वीकार नहीं किया। उन्हें 1963 में पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया था। यह सम्मान भी उन्होंने राष्ट्रभाषा हिंदी के गौरव को लेकर 1967 लौटा दिया था। विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं डीन अकादमिक डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पच्चीस वर्ष की गौरवमयी विकास यात्रा को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि चार अप्रैल, 1989 को खंडवा में एक सार्वजनिक सभा में विश्वविद्यालय स्थापना की घोषणा की और 1990 में विधानसभा में एक्ट पारित कर विधिवत स्थापना की गई। विश्वविद्यालय दो पाठ्यक्रमों और चालीस विद्यार्थियों से शुरू होकर आज डेढ़ दर्जन पाठ्यक्रमों के साथ लगभग एक लाख पिचहत्तर हजार विद्यार्थियों के साथ आज अपने शीर्षस्थ मुकाम पर है।
उन्होंने कहा कि कुलपति प्रोफेसर बृज किशोर कुठियाला के कुशल नेतृत्व में विश्वविद्यालय आज देश ही नहीं वरन् विश्व में संचार परम्परा का ब्रांड बन चुका है। यह एक गौरव की अनुभूति है। विश्वविद्यालय के सम्बद्ध अध्ययन संस्थाओं के निदेशक दीपक शर्मा ने कहा कि माखनलाल विश्वविद्यालय की सम्बद्ध संस्थाएं भारत के विभिन्न हिस्सों के साथ नेपाल में भी संचालित हैं। वर्ष 2010 के पहले पांच सौ सैंतीस संस्थाएं संचालित थीं, जो अभी बढ़कर नौं सो तीस हो गई हैं।
समारोह के प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा दादा माखनलाल चतुर्वेदी माँ सरस्वती एवं भारत माता के चित्र पर माल्यार्पण किया, उसके बाद विद्यार्थियों द्वारा माखनलाल जी की कविताओं का पाठ किया गया। अंत में अतिथियों को स्मृति चिह्न, शाल एवं श्रीफल से सम्मानित किया गया, तथा राष्ट्र गायन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। समारोह में बाबई के जनपद अध्यक्ष बृज मोहन मीणा, नगर परिषद अध्यक्ष ओमप्रकाश उपाध्याय सहित गणमान्य नागरिक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।