ज्ञान चतुर्वेदी के नए उपन्यास ‘एक तानाशाह की प्रेमकथा’ का एक अंश। इस उपन्यास में लेखक ने प्रेम जैसे सार्वभौमिक तत्त्व को अपना विषय बनाया है और उसे वहाँ से देखना शुरू किया है जहाँ वह अपने पात्र के लिए ही घातक हो उठता है। वह आत्ममुग्ध प्रेम किसी को नहीं छोड़ता चाहे प्रेमी के लिए प्रेमिका हो, पति के लिए पत्नी हो या शासक के लिए देश।
***
देश में मुनादी पिट रही है। चैनल चैनल डुगडुगी, अख़बार-अखबार अलख, कानोकान कनकही।
सारे भोंपू बता रहे हैं कि कल सुबह, ठीक दस बजे बादशाह एक महत्त्वपूर्ण घोषणा करेगा। कल तानाशाह दरबार और राष्ट्र को एक साथ सम्बोधित करेगा।
राष्ट्र अभी से तरद्दुद में आ गया है कि कल वो क्या कहेगा? कौन सा नया शिगूफ़ा? कौन सी अनोखी सनक? सबको पता है कि बादशाह इस देश को आगे बढ़ाने की हड़बड़ी में है; वो आगे-पीछे की नहीं सोचता, मन में कोई योजना आई कि सब पर थोप दी; बाद में उनको सजा भी दी जिन्होंने एक शानदार योजना साजिशन फेल करा दी।…कल ऐसी ही कोई योजना न हो?
अन्देशे में है सारा देश कि पिछली बार जैसा तो कुछ नहीं करेगा? या उससे पहले जैसा कि जिसने पूरे देश को उथल-पुथल कर डाला था? या उससे भी पिछली घोषणा जैसा? या इन सबसे भी ख़राब कुछ एकदम अकल्पनीय?…या शायद इस बार कुछ बहुत अच्छा?…लोग बस कयास लगा सकते थे। जब से मुनादी हुई है, देश मानो रुक गया है। सब इसी चिन्ता में मुब्तिला हैं।
हर घर में यही विमर्श चल रहा है। हर तरफ़ बस यही चर्चा कि कल क्या कहने, करनेवाला है बादशाह? प्रजा कानाफूसी, बतकहियों, शर्त लगाने, सट्टेबाजी और बहस में मुब्तिला है आज; कल की कल देखी जाएगी! एक ही चर्चा, कल तानाशाह क्या बोलेगा? कोई बता नहीं सकता पर बता सब रहे हैं।
***
तानाशाह क्या घोषणा करेगा?
देश जानता है कि उसके अनुमान ग़लत सिद्ध होंगे पर लगा रहा है।
तानाशाह अपने इरादों की भनक कभी स्वयं को भी नहीं लगने देता। हर बाज़ी वह पत्तों को छाती से चिपकाकर खेलता है; साथ बैठा सहायक भी हैरान रह जाता है कि अभी तो बेगम फेंक रहा था, अचानक दुक्की क्यों उठा ली? बाजी अलग, गड्डी अलग; पत्ते ऐसे पैने कि बाजी खेलते-खेलते कौन सा पत्ता वो अपने सबसे क़रीबी शख़्स की गर्दन पर चला दे, कोई नहीं जानता।
राष्ट्र को पूरा एक दिन मिला है कि वह हर अनहोनी के लिए तैयार हो ले। वैसे राष्ट्र अब वैसा परेशान नहीं होता। आदी हो गया है इन बातों का। जो होगा, देखेंगे। तानाशाह की सनक के साथ जीना सीख चुका है देश। लोग टीवी के समक्ष बहस में उलझे हैं; गरमागरम पकौड़ों और चाय के साथ बड़ा मजा आता है राष्ट्र की चिन्ता करने में। हर मकान में उत्तेजित, मुस्कराते, गम्भीर, चिन्तित, हा हा ही ही करते, बहस में संलग्न, शोर को विमर्श मानने वाले नागरिक कयास में व्यस्त हैं।
***
मकान नम्बर दो, आशियाना तानाशाह नम्बर दो का। रस्तोगी जी और पायल का घर। इस घर को भी सम्भावित घोषणा ने अपनी तरह से चपेट में लिया।
कैसे? बताते हैं।
आज पायल को दफ़्तर से आते थोड़ी देर हुई।
रस्तोगी जी ऐसे सरकारी डिपार्टमेंट के मुलाजिम हैं जहाँ कोई कुछ पूछता नहीं; मुँह उठाए कभी भी आ जाओ और जब अकर्मण्यता से बोर हो जाओ तो बाहर निकल आओ, ऐसा कर्मठ वातावरण, वे हमेशा समय से पहले ही घर पहुँच जाते हैं। आज तो वे दोपहर ही घर लौट आए। अभी तलक एक नींद ले चुके हैं, दूसरी की तैयारी में थे कि पायल आ गई।
वह घर में घुसी कि रस्तोगी जी ने घड़ी पर नज़र डाली। बोले तो नहीं पर उनकी नजरें बहुत कुछ कह रही थीं।
पायल ने इस नज़र पर ध्यान न देकर उनको मुस्कराकर देखा, पर्स को सोफ़े पर उछाला और सीधे किचन में घुस गई। बिना कपड़े चेंज किये सबसे पहले चाय चढ़ा दी उसने। आज सिर भारी है। चाय चढ़ाकर बच्चों की तरफ़ गई। बच्चे अन्दर खेल रहे हैं। उनको खूब प्यार किया। वे अपने खेल में मशगूल रहे। वहाँ से लौटी। चाय की गैस को सिम पर करके वाशरूम गई, मुँह हाथ धोए, बाहर के कपड़े बदले, टी-शर्ट और पाजामा डाला और भागकर वापस किचन में पहुँच गई। चाय धीमी आँच पर भी उबलने लगी थी। चाय लेकर वापस लिविंग रूम में पहुँची। तानाशाह चुपचाप बैठा हुआ टीवी के रिमोट से खेल रहा था।
पायल ने बेहद सुन्दर और सिंपल पिंक पाजामे पर ढीली सी कालर वाली ब्लू टी शर्ट डाल रखी है। उसकी यह ड्रेस रस्तोगी जी को बड़ी दिलकश लगती है। कभी पहने तो उत्तेजित हो जाते हैं; हो गए; प्यार उमड़ आया। पास बैठने का इशारा करते हुए बोले, “ग़ज़ब लग रही हो यार। इस टी शर्ट में तुम्हारा टॉमबॉयिश लुक किसी को भी हिला दे।”
“तुम हिल गए न? मेरे लिए यही बहुत है…” कहकर हँसने लगी पायल।
उसने चाय के कप सामने रखे और तानाशाह से एकदम सटकर बैठ गई।
रस्तोगी जी के प्यार के बादल गहरे होकर घुमड़ने लगे। बूंदाबांदी होने लगी।
चाय पड़ी रही और उनका हाथ पायल के बदन पर घूमने लगा। पायल को भी अच्छा लगा गो कि उसने झूठ-मूठ आँखें दिखाईं, बच्चों के कमरे की तरफ़ इशारा करते हुए रस्तोगी जी को बरजा। वे शरारतन मुस्कराकर उसके और पास आ गए। सहलाते रहे उसका बदन।
पायल ने चाय का अपना कप उठा लिया।
उन्होंने कन्धा भींचा तो कप हिल गया।
“यार, चाय गिर जाएगी तुम पर, बहुत गर्म है।”
“हम उससे ज़्यादा गरम हैं।” कहकर वे खूब जोर से हँसे।
पायल ने कप वापस रख दिया।
फिर दोनों हाथ रस्तोगी जी के गले में डालकर टिक गई उनसे।
पायल का एक हाथ पति के कन्धे से खिसककर पीठ पर आ गया। उँगलियाँ नाचने लगीं वहाँ। उसकी एक आँख बच्चों के बेडरूम के दरवाजे पर है। तानाशाह ने अब उसको भरपूर आलिंगन में ले लिया था। बदन के साज पर रस्तोगी जी की उँगलियाँ चल रही हैं। सितार बजने लगा। सब कुछ बेहद आत्मीय, मादक और अद्भुत था। महक फैल रही थी। रस झरने लगा। नशा श्वासों में घुल रहा था। आनन्द में पायल की आँखें मुँदने लगीं। तानाशाह की उँगलियाँ नाचते हुए पायल की कमर से नीचे जा पहुँचीं। घने बादल घुमड़ आए। हवा तेज़ हो गई। पायल का जूड़ा खुल गया। खुले बाल लहराने लगे आनन्द की हवा में। उत्तेजना के अतिरेक में पायल ने आँखें बन्द कर लीं।
उसने हल्की सी आह भरी ही थी कि अचानक तानाशाह ने उसे बुरी तरह धकेलकर परे कर दिया।
पायल चौंक गई।… बच्चे आ गए क्या?… नहीं तो। उनकी तो अब भी अन्दर से आवाज़ आ रही है, फिर?
उसने आश्चर्य से पति की तरफ़ देखा जो उसे बेहद गुस्से से घूर रहा था।
“क्या हुआ यार?…अभी तो बड़े मूड में थे?” पायल ने मुस्कराते हुए पूछा।
“यह सब क्या है?” तानाशाह ने गुर्राकर पूछा।
पत्नी जान गई कि क्या शुरू करनेवाला है?
वह खिसककर उससे दूर बैठ गई।
“क्या हुआ?”
“तुमने शेविंग की है नीचे?”
“हाँ, तो?”
“तो का मतलब?”
“मतलब यह कि ऐसा क्या कर दिया मैंने; सब करते हैं यार, बड़ा अनहाइजीनिक सा लग रहा था।… इसमें क्या?”
“इसमें कुछ नहीं? वाह!!”
“सब करते हैं।”
“कितनों को करते देखा है?”
“पता है यार, नार्मल बात है…”
“नार्मल बात होती तो मैं कहता?”
“क्या एब्नॉर्मल कर दिया मैंने?”
“हमें तो यही नार्मल पता था कि पति कहे तो पत्नी शेव कर लेती हैं वरना…”
“वरना?”
“वरना क्यों करना।”
“तो मुझे इसके लिए भी तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी? तुमको एप्लीकेशन देती कि…”
“…बताकर तो करतीं?”
“इसमें क्या बताना। तुमको पता चल ही जाता न?”
“पहले तो ग़लत काम करोगी और पकड़ ली जाओ तो बहस करोगी?”
“ग़लत काम? अब अपनी सफ़ाई के लिए भी तुमसे पूछना होगा?”
“मुझसे नहीं तो किससे? चेतन से? या कोई और भी है?”
वह तानाशाह को घूरकर देखती रही। यह आदमी पक्का पागल है। एकदम पागल। और इस पागलपन को ये प्यार कहता है, विश्वास करता है कि यही प्यार है।
“यार, तुम्हारा दिमाग़ ख़राब है।”
पायल दूर खिसककर बैठ गई और चाय उठा ली उसने। “अच्छा! मेरा दिमाग़ ख़राब है? रुको। कुछ दिखाता हूँ तुमको।”
रुकने का इशारा करते हुए वह लैपटॉप पर गूगल करने लगा—“हाऊ टू डिसाइड दैट माई वाइफ़ इज हैविंग एक्स्ट्रा मैराइटल अफेयर?” कई सारी पोस्ट सामने थीं।
एक पोस्ट खोलकर उसने लैपटॉप का स्क्रीन पत्नी की तरफ़ घुमा दिया।
“क्या है यह?” पायल ने पूछा।
“खुद पढ़कर देख लो।”
कहकर रस्तोगी जी ने चाय का कप उठा लिया। पायल चाय पीती हुई उसे घूरती रही। वह किसी जासूस की गहरी उसे वापस घूरता रहा। निगाहों से दोनों कुछ देर तक चुप रहकर चाय पीते रहे। दोनों के बीच खुला हुआ लैपटॉप पायल की तरफ़ देख रहा है। पायल ने ख़ाली कप जोर से काँच की सेंट्रल टेबल पर पटका और तिरस्कार और हिकारत की नजरों से देखते हुए लैपटॉप तानाशाह की तरफ़ घुमाते हुए कहा, “ऐसे ही ट्रेश पढ़-पढ़कर अपना दिमाग़ ख़राब करोगे और मेरा भी, जीवन भर?”
“यह ट्रेश नहीं, हक़ीक़त है। इसका प्वाइंट नम्बर चार पढ़ो।”
“मुझे कुछ नहीं पढ़ना। वैसे भी तुम रोज मुझे ऐसी पोस्ट्स भेजते रहते हो।”
“फिर भी तुम समझती नहीं?”
“मैं बिना पढ़े डिलीट कर देती हूँ इस कचरे को।… तुम्हारे दिमाग़ में यह सब जो चलता रहता है न—सेक्स फैंटेसीज, एक्ट्रा-मेराइटल अफेयर्स, यह सारा कचरा ऐसी ही ट्रेश पोस्ट्स पढ़कर अर्जित ज्ञान है…।”
“चलो, कहीं से अर्जित किया हो, है तो ज्ञान ही न?”
“ऐसे ज्ञान से तो अज्ञानी होना बेहतर…”
“…ताकि तुम गुलछर्रे उड़ाओ और मैं कुछ न पूछें?”
“तो ये शेविंग करना मेरा गुलछर्रे उड़ाना है?”
“नहीं, इसे गुलछर्रे उड़ाने की तैयारी कहते हैं,” कहकर वह ऐसा हँसा मानो कोई बहुत अर्थपूर्ण बात कह डाली हो।
“ऐसा लिखा है तुम्हारे गूगल ग्रन्थ में?” उसने भी व्यंग्यपूर्वक हँसकर पूछा।
“हाँ, प्वाइंट फोर पढ़ो न?”
कहकर उसने लैपटॉप का रुख़ फिर से पायल की तरफ़ कर दिया। पायल ने पढ़े बिना ही लैपटॉप को वापस उसकी ओर घुमा दिया।
“तुम तो पढ़ चुके न, तुम ही बता दो।”
उसने पायल को हिकारत से देखा और बोला—
“चलो, मैं ही बता देता हूँ। इसमें साफ़ लिखा है कि तुम्हारी औरत नियमित रूप से नीचे शेविंग करती है तो सतर्क हो जाओ, ज़रूर वह किसी के साथ अफेयर में है।” वह जोर-जोर से हँसने लगी।
“और तुम इस घटिया तर्क पर विश्वास करते हो!”
वह उसका मखौल करती हुई हँसने लगी।
तानाशाह उसे वितृष्णा से देखता रहा।
“हँस लीं, या और बाक़ी है?”
वह चुप हो गई।
“अब तो बता दो, किसके साथ चल रहा है तुम्हारा?”
वह हैरान रह गई। एकदम ही पागल है क्या?
“यार, गूगल-गंगा में आज गोता ही खा गए हो क्या? मैं हाईजैनिक रहूँ, नियमित शेव करूँ तो मैं चरित्रहीन!”
चुप रहकर घूर रहा है वह।
“सिम्पली डिस्गस्टिंग!!” पत्नी बोली।
अब वो उखड़ गया।
“डिस्सास्टिंग? मैंने एक सच बोल दिया तो डिस्गस्टिंग, वाह!”
“तुम इसे सच मानते हो?”
“सच है तो सच ही माना जाएगा।”
“तुम किसी अच्छे सायकेट्रिस्ट को दिखा लो न यार।”
“डिस्कोर्स मत बदलो पायल।”
“दिमाग़ गड़बड़ा गया है तुम्हारा।”
“चलो, मेरा दिमाग़ ठीक नहीं पर गूगल में जो लिखा है वो?”
“होगा वहाँ भी कोई तुम जैसा ही…”
“गूगल इसे एक एस्टेब्लिश्ड फ़ैक्ट बताता है और तुम इसे मेरा पागलपन बताकर बच निकलना चाहती हो? तुम आज रँगे हाथ पकड़ी गई हो पायल।”
“तुमने पकड़ा?”
“हाँ, मैंने; अभी पकड़ा न? शेव करके बैठी हो और बहस करती हो? बताती क्यों नहीं, चेतन के लिए की है या किसी और के लिए?”
“तुमको क्या लगता है?”
“मेरे लिए तो नहीं की, ये जानता हूँ बस।”
“हाँ तुम्हारे लिए नहीं की।”
“तो यह भी बता दो, किसके लिए की?”
“अपने लिए की; अपने लिए तो कर सकती हूँ न कि उसके लिए भी मुझे तुमसे परमीशन लेनी होगी?”
“तुम फिर से डिस्कोर्स बदल रही हो।”
“यार, तुम तो अपने डिस्कोर्स पर डटे हो न, डटे रहो।”
“देखो, सच बता दोगी तो मैं तुमसे कुछ नहीं बोलूँगा। प्वाइंट नम्बर फोर…”
“भाड़ में गया तुम्हारा प्वाइंट नम्बर फोर।” वह बिफर गई।
“ऐसा कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती तुम, मुझे तुमसे एकदम साफ़ सुनना है कि यह शेविंग किसके लिए की है तुमने?”
“भाड़ में जाओ, जो लगे वो समझ लो।”
वहाँ से उठकर वह दूर बैठ गई।
“आज भी चेतन से मिलकर आ रही हो न?” तानाशाह ने पुलिसिया अन्दाज में पूछा।
“वह तो रोज़ मिलता है।” पायल ने बेपरवाह जवाब दिया।
“तो क्या कहा उसने?”
“किस बारे में?”
“तुम्हारी इस चिकनी…”
“… दिमाग़ एकदम ही ख़राब हो गया है क्या?”
“मेरा कि तुम्हारा?” वह चुप हो गई।
इस बहस का कोई अन्त नहीं था। चुप रह जाना ही बेहतर। वह कसमसाता हुआ घूरता रहा उसे।
“तुमको पता नहीं, दुनिया के मर्द बड़े हरामी हैं।” रस्तोगी जी ने अब समझाने के स्वर में कहा।
“तुम भी तो उसी दुनिया से हो, और शायद मर्द भी हो,” पायल ने वितृष्णा के स्वर में कहा।
“हाँ मैं मर्द हूँ, इसीलिए जानता हूँ इन मर्दों को, तभी कह रहा हूँ।”
“सुन लिया मैंने।”
“सुनना नहीं, समझना होगा।”
“समझ भी लिया। तुम जैसा विद्वान आदमी समझाए तो कौन नहीं समझेगा?”
रस्तोगी जी घूरने लगे पायल को।
बात आगे बढ़ती, इससे पहले ही दोनों बच्चे एक-दूसरे के पीछे दौड़ते हुए लिविंग रूम में आ गए।
माँ-बाप को अपना चेहरा बदलना पड़ा।
आदर्श माँ-बाप हैं।
बच्चों को दोनों ही बेहद प्यार करते हैं, उनके प्रति गहरी जिम्मेदारी भी महसूस करते हैं; इसी के चलते ऐसा हर विवाद, एक सीमा पर आकर अगली बार के लिए स्थगित कर दिया जाता है। तानाशाह बेहद प्यार करता है पायल को। पायल को भी प्यार है अपने पति से जिसका प्यार और सन्देह एक साथ चलता है। दाम्पत्य एक तानाशाही में बदल गया है पर दोनों ही कमोबेश खुश रहते हैं।
देखिए न कि माँ अभी सब कुछ भूलकर बच्चों के साथ कैसी खिलखिला रही है। तानाशाह भी झूठ-मूठ ही सही, मुस्करा तो रहा है गो कि उसके चेहरे पर जगह-जगह प्वाइंट नम्बर फोर छपा हुआ है। पायल बच्चों के साथ कितनी खूबसूरत लग रही है! माँ के रूप में उसका चेहरा कितना आकर्षक लगता है!
रस्तोगी जी को पायल का हर रूप भाता है। बहुत प्यार करते हैं वे उसे।
अपनी बातें सुनाने में मशगूल हैं बच्चे, पायल भी तनाव भुलाकर बेहद सहज हो गई है। तानाशाह ने भी टीवी खोल लिया, कोई न्यूज़ चैनल। वही बहस चल रही थी कि बादशाह कल क्या बोल सकता है?
बहस कम, गुत्थमगुत्था ज्यादा; तू-तू-मैं-मैं, शोर-शराबा, बस। सभी अपनी बात एक साथ कह रहे हैं, रुकने, सुनने को तैयार नहीं कोई; स्कूल में ऐसा करते तो मास्टर मुर्गा बना देता!
तानाशाह बहुत रुचि के साथ बहस सुनने लगा। पायल भी अपनी एक आँख टीवी पर रखे है।
“क्या कहती हो जान? कल क्या बोलेगा बादशाह?”
रस्तोगी जी ऐसे सहज होकर पूछ रहे हैं मानो कुछ देर पहले की बातें मज़ाक़ में बोली हों।
पायल बच्चों में मग्न है।
“जो बोलना है, बोले; वह तो रोज़ ही कुछ न कुछ बोलता रहता है,” पायल ने बेपरवाही से कहा।
तानाशाह को बुरा लगा; यदि उसने कोई टास्क दी तो पत्नी को मनोयोग से उसमें पार्टिसिपेट करना चाहिए; यही नारी-धर्म है!
“फिर भी, कोई अन्दाज़ा?” तानाशाह ने फिर कहा।
“फ्रेंकली स्पीकिंग, मुझे इस बात में कोई इंट्रेस्ट ही नहीं,” पायल ने कहा।
“फिर भी? कुछ तो सोचो,” तानाशाह पूछता गया।
पत्नी अचानक मुस्कराने लगी। हँस ही पड़ी लगभग। वह उसका मुँह देखने
“बताऊँ?” पायल हँसती हुई बोली।
“बताओ न? कह तो रहा हूँ…”
वह हँसकर बोली और बोलने के बाद भी हँसती रही—
“हो सकता है कि कल से बादशाह बिना उचित परमीशन के ऐसी शेविंग करना गैर-क़ानूनी घोषित कर दे।”
तानाशाह तिलमिला गया।
“मज़ाक़ उड़ा रही हो?”
“मज़ाक़ नहीं, सच है। बादशाह लोग कुछ भी सोच लेते हैं। भाई!” वह मुस्कराती रही।
वह और तिलमिला गया।
बच्चे वहीं थे पर बोल ही दिया उसने—
“यह भी तो हो सकता है कि वह ऐसे अफेयर्स में इन्वॉल्व्ड लोगों को फाँसी चढ़ाने का क़ानून लाने की बात करे।” उसका लहजा बहुत तल्ख था, इतना तल्ख कि छोटा बेटा देखने लगा उन दोनों को।
पत्नी अलबत्ता मजे ले रही थी।
“इतनी बड़ी सज़ा! बाप रे!!” वह डरने का अभिनय करने लगी।
“चेतन जैसे लोग तभी होश में आएँगे।” वह अब भी तल्ख था।
“फाँसी चढ़ गया तो होश में कैसे आएगा?” वह छेड़ रही थी।
“क्या हुआ चेतन अंकल को पापा?”
“अपनी मम्मा से पूछो। वे ज्यादा जानती हैं चेतन अंकल को।”
वह अर्थपूर्ण ढंग से हँसा और रिमोट उठाकर टीवी में डूब गया।
किसी चैनल पर रोचक जूतमपैजार चल रही है। कोई कह रहा है कि पहले बादशाह यह बताए कि उसने पुरानी घोषणाओं का क्या किया? देश में विरोधी भी बोल लेते हैं कभी-कभी ।… पूरी पैनल उस आदमी पर चढ़ बैठी।… बादशाह जैसा आज तक कभी कोई हुआ भी है देश में?… इतना किया है उसने और तू स्साले ऐसी बातें…। अबे जा।… अबे तू जा!.. क्या कर लेगा बे?
बहस बौद्धिक मोड़ ले चुकी है।
साभार https://