Friday, November 22, 2024
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महिला शक्ति की चौपाल ने जमाया रंग

महिला दिवस के नाम पर ऐसे तो देश भर में कई कार्यक्रम हुए और अखबारों से लेकर टीवी चैनलों के गला फाड़ू एंकरों ने उनका खुब गुणगान किया मगर मुंबई की चौपाल में महिला शक्ति ने अपना ऐसा रंग जमाया कि चौपाल के रसिक श्रोताओं ने अपने आपको धन्य समझा। चौपाल की सत्रधार थी श्रीमती श्वेता सेन।

ऐसे तो चौपाल हर बार मुंबई के अंधेरी स्थित भुवंस के एसपीजैन सभागृह में होती है मगर चौपाल के यजमान दिनेश जी और कविता को लगता है कि हर बार चौपाल अगर भुवंस में ही होगी तो फिर वो चौपालियों की मेजबानी कैसे करेंगे। तो इस बार चौपाल कविताजी और दिनेश जी के जुहू स्थित घर में हुई। चौपाल चूँकि महिला दिवस को समर्पित थी, इसलिए संचालन से लेकर वक्ताओं तक महिलाशक्ति की भागीदारी थी, पुरुष केवल श्रोता मात्र थे। तो कविता जी के घर चौपाल की शुरुआत कविता से ही हुई।

सुश्री गीता रामदास ने अपनी कविता कुछ शब्द मुझे बाँधते हैं कुछ उन्हें, शब्दों का बंधन न मुझे पसंद है न तुम्हें – से चौपाल का आगाज़ किया। इसके बाद उन्होंने दूसरी रचना प्रस्तुत की।

ये मेरी ज़िंदगी दिल से निकरकर कुछ गीली बातें सुखाती, …..कुछ पुराने तौर तरीके बदलने हैं,……सांस उखड़ जाती है बार बार काम पूरा नहीं होता …

इसके बाद संध्या रियाज़ ने अम्मा के लिए कविता प्रस्तुत करते हुए

अम्मा के जाने के बाद पेटी से थैला मिला है जिसमें मेरे बचपन का सामान मिला है – से तीन पीढ़ियों की संवेदनाओँ को मर्मस्पर्शी भावों के साथ प्रस्तुत कर वाहवाही लूटी।

चौपाल की सबसे सक्रिय, सजग और एकाकी दर्शक निर्मला डोसी ने अपनी नानी के संस्मरणों को साझा करते हुए सौ साल पहले की उस स्थिति का जीवंत रुपक प्रस्तुत किया। तब राजस्थानी समाज में बाल विवाह के बाद एक छोटी लड़की के स्त्री बनने की दुरुह यात्रा और स्त्री से माँ और माँ से नानी बनने का संघर्ष अपने सरल और सपाट शब्दों में जिस आरोह और अवरोह से प्रस्तुत किया वह मौजूद श्रोताओँ के लिए सौ साल पहले अतीत की यात्रा करने जैसा था।

कार्यक्रम की सूत्रधार श्रीमती शेखर सेन ने कहा कि ये सब सुनकर ऐसा लगता है कि शतर चंद्र की कहानी बड़ी दीदी और मंझली दीदी हर समाज में, हर दौर में एक शाश्वत स्वरूप में जीवित है।

शैलदा पाठक ने उसने कितना खूब लिखा है देखो तो, पानी पर भी खूब लखा है देखो तो – कविता से स्त्री विमर्श के एक नए विषय को रेखांकित किया।

अलका अग्रवाल ने आजकल जमीं पर पाँव पड़ते नहीं मेरे गीत से चौपाल के सुरों में संगीत की मिठास घोली।

जानी मानी लेखिका मालती जोशी जिन्हें अपनी बरसों पहले लिखी कहानी को बगैर देख हू-ब-हू सुना देने की महारत हासिल है, उन्होंने मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे- कहानी से एक मध्यमवर्गीय परिवार की उलझनों को बहुत ही कुशलता से प्रस्तुत किया। विदेश जाने का टिकट करा चुके एक सेवा निवृत्त जोड़े को अचानक खबर मिलती है कि उनकी बहू गर्भवती हो गई है और उसकी संतान के जन्म का समय वही है जब वो विदेश यात्रा पर होंगे। विदेशयात्रा के महंगे टिकट और बेटे के घर संतान आने की इस उलझन में ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि विदेश जाएँ या महंगे टिकट जो वापस भी नहीं हो सकते, उनका उपयोग करें…लेकिन कहन सुखद मोड़ लेती है और लड़के के पिता टिकट कैंसिल कर अपने बेटे के घर आने वाली संतान के स्वागत की तैयारी करने लगते हैं।

चित्रा देसाई ने मेरे गाँव की चौपाल बोलती है, पगड़ी को पाँव में रख कितनी बार मनाया रिश्तों को – के माध्यम से रिश्तों की कृत्रिमता का एहसास कराया।

जानी मानी लेखिका श्रीमती मध काँकरिया ने झारखंड के वनवासी क्षेत्रों की अपनी यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि मीलों तक की यात्रा में कहीं कोई बिजली का निशान नहीं, गाँव के बच्चे ढिबरियों में (चिमनियों) की रोशनी में बैठकर गीली मिट्टी में अँगुली से लिखते हुए अक्षर ज्ञान प्राप्त कर रहे थे। उन्होंने बताया कि आदिवासियों मे गाँव में किसी लडके की शादी होती है तो गाँव के सब लोग मिलकर उसके लिए घर बनाते हैं । वहाँ गरीबी का आलम ये है कि आज भी महिलाओँ के पास पहनने को साड़ी नहीं है – एक घर में दो महिलाओं के पास एक ही साड़ी होती है। आदिवासियों के पास खाने को कुछ नहीं होता, वो पेड़ों के पत्ते उबालकर खाते है। वहाँ वो व्यक्ति धनवाल समझा जाता है जो कभी कभार गेहूँ की रोटी या चावल खा लेता है। उन्होंने बताया कि एक खास पेड़ के पत्ते की सब्जी बनाने का उपयोग किया जाता है, ये पेड़ एक झरने के किनारे है- एक महिला अपने बच्चों के लिए पत्ते लेने गई तो झरने में फिसलने से उसकी मौत हो गई। वहाँ आम तौर पर मौत ऐसे ही आती है।

उन्होंने बताया कि आदिवासियों के लोकगीत में भी यही दर्द सामने आता है। उन्होंने देखा कि आदिवासी महिलाएँ अपने बच्चों को पीठ पर बाँधकर मजदूरी करती है, कुदाल चलाती है।

सुधा अरोड़ा ने वृंदावन की विधवाओँ के संघर्ष और जिजिविषा पर रचना पाठ किया। श्रीमती श्वेता सेन ने चौपाल को हर बार गुदगदाने वाले स्व. यज्ञ शर्मा की रचना स्त् लिंग में महिला आरक्षणका प्रभावी पाठ किया।

ममता सिंह ने पहला प्यार – कहानी को अपने सधे हुए अंदाज़ मे रेडिओ रूपक की तरह प्रस्तुत किया। अनन्या भौमिक ने गीत प्रस्तुत किया।

चौपाल के आखिरी दौर में रंजना जी ने दादरा प्रस्तुत किया तो पुणे से आई गौरी पाठारी ने शास्त्रीय गायन से होली के गीत से चौपाल का समापन किया।

चौपाल का फेसबुक पेज https://www.facebook.com/Chaupaal/

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