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वैश्विक भुखमरी सूचकांक” सच्चाई या साज़िश ?

अभी हाल में जर्मनी और आयरलैंड के संयुक्त सहयोग से गैर – सरकारी संगठन ने “वैश्विक भुखमरी सूचकांक” को जारी किया था;जिसमें भारत को वैश्विक स्तर पर 107 वे पायदान पर जगह मिली है।आश्चर्य का तथ्य यह है कि भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका को 64 वे स्थान पर रखा गया है;पाकिस्तान को 99वे पायदान पर एवं नेपाल को 81वे पायदान पर स्थान प्रदान किया गया है। इस सूचकांक की सत्यता को समझने के लिए आकड़े, विशेषज्ञ की राय एवं जनता -जनार्दन के राय(जनमत)के आधार पर देखते है।मोदी सरकार ने भुखमरी से उन्मूलन के लिए प्रत्येक वर्ष 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत प्रदान कर रही है;1.78 करोड़ गर्भवती महिलाओं को पूरक आहार प्रदान किया जा रहा है।

कोविड-19 के दौरान/कोविड लॉकडाउन के दौरान 20 करोड़ महिलाओं के जन-धन खाते में नकद हस्त्रांरण किया गया है।इन आंकड़ों का बारीकी से शल्य चिकित्सा करे तो स्पष्ट होता है कि आमजन खुशहाल, गुणवत्ता पूर्वक जीवन जी रहे है। लोकतंत्र में लोकतंत्रिकीकरण से आशय होता है अधिकतम सहभागिता (जन सहभागिता कितना प्रतिशत (%) है ,इस आधार पर व्यवस्था को सशक्त, स्थिर एवं आदर्श माना जाता है।गैर-सरकारी संगठन(NGO) ने 1 अरब,29 करोड़ के दरम्यान/सापेक्ष 3000 लोगो का सर्वे करना;अर्थात सम्पूर्ण जनसंख्या का 0.000002%है,वह भी वातानुकूलित कक्ष में रहने वाले लोग,स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इतना फुर्तीला की स्वास्थ्यवर्धक एवं हड्डियों को मजबूती के लिए विटामिन D की खुराक लेनी पड़ती है।

प्रश्नोत्तरी भी ऐसे शहरों से जो ज्यादातर निजी कंपनी,बहुराष्ट्रीय निगमों में कार्यरत है,एवं इनमें भी ज़्यादातर लोग है जो गरीबी,निर्धनता, वेरोजगरी ,बुढ़ापे की स्थिति ,विमारियों से निजात जैसी समस्याओं का सामना किए ही नही है।इस तरह यह सूचकांक निराशाजनक, भारतीयों के बढ़ते कद,वैश्विक परिदृश्य में मजबूती के विरुद्ध षड्यंत्र महसूस हो रहा है।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं और राष्ट्रीय व सामाजिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैां)