Friday, November 22, 2024
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#गुलबर्गा_की धरती पर महकता फूल बासवराज पाटिल सेडम – केएन गोविंदाचार्य

दलीय प्रतिबद्धताओं से बढ़कर देश और समाज है, यह बहुत पहले गांधीजी ने अपने आचरण से सबको बता दिया था। सितंबर, 1934 में जब उन्हें लगा कि कांग्रेस उनके और समाज के बीच में एक पुल की बजाए बाधा बनती जा रही है, तो उन्होंने उसे राम-राम कह दिया। कांग्रेस छोड़ने के बाद गांधी जी ने पहले से कहीं अधिक प्रभावी तरीके से देश का नेतृत्व किया। राजनीति को उन्होंने नया अर्थ दिया। रचनात्मक कार्यों को उन्होंने सकारात्मक राजनीति के लिए अनिवार्य बताया। यह देश का दुर्भाग्य है कि देश में राजनीति का गांधी जी ने जो स्वरूप विकसित किया था, वह आज तार-तार हो चुका है। अब राजनीति का मतलब अधिकतर लोगों के लिए चुनाव लड़ना, एमपी एमएलए बनना और सत्ता के सुख भोगना भर रह गया है।

अपने अनुभव के आधार पर जनता यह मानने लगी है कि जिसको चुनाव लड़ना है, वही समाज सेवा की बातें करता है। यह सच है कि राजनीति का गांधी माडल दुर्लभ हो गया है, लेकिन सौभाग्य से वह निर्मूल नहीं हुआ है। अभी भी कई ऐसे लोग हैं जो राजनीति को चुनावी राजनीति का पर्यायवाची नहीं मानते। इन्हीं में से एक हैं, बसवराज पाटिल सेडम। कर्नाटक के गुलबर्गा (कलबुर्गी) जिले के सेडम तालुका के रहने वाले बसवराज ने भारतीय जनता पार्टी की ओर से संसद की लोकसभा और राज्यसभा में कर्नाटक का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने कर्नाटक भाजपा के अध्यक्ष का भी दायित्व निभाया। इस सबके बावजूद उनके व्यक्तित्व पर चुनावी राजनीति का रंग नहीं चढ़ पाया और वे मूलतः सामाजिक कार्यकर्ता ही बने रहे।

#पाटिल_जी कर्नाटक के लिंगायत संप्रदाय से हैं। उनका जन्म सेडम के एक प्रतिष्ठित जमींदार परिवार में हुआ। बचपन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संपर्क हुआ और धीरे-धीरे उसके रंग में ऐसे डूबे कि प्रचारक बन गए। बालासाहब देवरस ने आपको तब के अविभाजित बिहार और आज के झारखंड में काम करने के लिए भेजा। 6 वर्ष उत्तर भारत के सामाजिक-राजनीतिक जीवन का अनुभव लेने के बाद आप 1973 में वापस #सेडम आ गए। मृत्युशैय्या पर पड़े पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हें घर लौटना पड़ा।

पाटिल जी घर तो आ गए थे लेकिन उनका समय घर-गृहस्थी संभालने की बजाए सामाजिक कार्यों में अधिक लगता था। दो साल छिटपुट काम करने के बाद आपने तय किया कि शिक्षा के क्षेत्र में ताकत लगाई जाए और इसी विचार के साथ आपने 1975 में कोत्तल बसवेश्वर भारतीय शिक्षण समिति का गठन किया। इस संस्था ने सेडम के एक पुराने मंदिर में एक छोटे से कमरे से अपनी शुरूआत की और आज इसके नेतृत्व में छोटे बड़े 50 से अधिक शिक्षण संस्थान चल रहे हैं।

मेरा और बसवराज पाटिल का परिचय बहुत पुराना है। वर्ष 2004 में जब मैंने उन्हें भारत विकास संगम के पहले सम्मेलन में वाराणसी बुलाया तब वे खुशी-खुशी इसमें शामिल हुए। इस सम्मेलन में विकास के विविध रूपों पर व्यापक चर्चा हुई। अलग-अलग वक्ताओं ने यहां जो कहा उसका सार यह था कि भारत में विकास की प्रक्रिया तब तक अधूरी और एकांगी रहेगी जब तक समाज की इसमें मजबूत भागीदारी सुनिश्चित नहीं की जाती। हम अपना विकास अपने तरीकों से कर सकते हैं, किसी देश की नकल करने से हमारे हाथ निराशा ही लगेगी। देश के स्थायी विकास के लिए सरकार की ओर टकटकी लगाकर देखने की बजाए, समाज को जगाना और उसे सक्रिय करना बहुत ही जरूरी है।

#भारत_विकास_संगम के सम्मेलन से लौटने के बाद पाटिल जी ने अपनी प्राथमिकताओं को फिर से समायोजित किया और तय किया कि अब वे कर्नाटक के उन 5 जिलों के लिए काम करेंगे जो कभी हैदराबाद निजाम के कब्जे में थे। इनमें उनके गृह जनपद गुलबर्गा (कलबुर्गी) के अलावा यादगीर, बीदर, कोप्पल और रायचूर जिले भी शामिल हैं। इन पांच जिलों को हैदराबाद कर्नाटक कहा जाता है और इनकी गिनती कर्नाटक के सबसे पिछड़े जिलों में होती है।

अपनी सोच को साकार करने के लिए पाटिल जी ने 2004 में ही हैदराबाद-कर्नाटक अभिवृद्धि विभाग की स्थापना की। देखते ही देखते शिक्षा के साथ-साथ कृषि, खेल, साहित्य प्रकाशन, धार्मिक जागरण, प्रतिभा की खोज, गरीबी उन्मूलन इत्यादि उन सभी क्षेत्रों में युद्ध स्तर पर काम शुरू हो गया, जिन्हें विकास का मूल आधार माना जाता है। अब तक इस संस्था ने जो काम किया है, उसे देख कर मुझे गर्व की अनुभूति होती है। हैदराबाद कर्नाटक अभिवृद्धि विभाग का प्रयोग समाज की ताकत और उसकी क्षमताओं का जीता-जागता प्रमाण है। इस प्रयोग में न तो सरकार से लड़ने की बात की गयी और न ही उसके सामने कटोरा फैलाने पर जोर है। यहां तो बस समाज को उसकी ताकत और जिम्मेदारी का एहसास कराने का काम किया गया है।

पाटिल जी ने जहां जमीनी स्तर पर काम किया वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भारत विकास संगम को एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाया। 2010 में उनके नेतृत्व में हुआ भारत विकास संगम अपने आप में अनूठा था। इस सम्मेलन को नाम दिया गया था, कलबुर्गी कंपू अर्थात गुलबर्गा की सुगंध। दस दिन तक चले इस सम्मेलन में 15 से 20 लाख लोग शामिल हुए। अगर मैं कहूं कि सामाजिक सम्मेलनों की दृष्टि से गुलबर्गा सम्मेलन ने इतिहास रच दिया तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह सम्मेलन केवल कार्यकर्ताओं के लिए नहीं बल्कि आम जनता के लिए था। गंभीर मुद्दों पर चर्चा के साथ यहां जादू का शो और आइसक्रीम का आनंद भी था। सामाजिक परिवर्तन के रास्ते में इस सम्मेलन ने संघर्ष के साथ रचना, उल्लास, अर्थोपार्जन एवं स्वस्थ मनोरंजन को भी जोड़ दिया।

#गुलबर्गा_सम्मेलन में कई बड़े अतिथि आए। इनमें पूर्व राष्ट्रपति श्री #अब्दुल_कलाम भी थे। कलाम जी का बच्चों से विशेष लगाव था। अपने भाषण में उन्होंने मुख्यतः बच्चों को ही संबोधित किया। जब उनका भाषण पूरा हुआ तो उनसे एक छात्रा ने पूछा, ‘‘आप सभी से डाक्टर, इंजीनियर बनने की बात तो करते हैं, किसी से किसान बनने की बात क्यों नहीं करते।’’ यह सवाल सुनकर कलाम जी सन्न रह गए। उन्होंने अपनी गलती स्वीकार की और आगे से इस बात का ध्यान रखने के लिए कहा। उस घटना को याद करते हुए पाटिल जी कहते हैं, ‘‘विद्यार्थी ने जो पूछा, वह अनायास नहीं था। पिछले कई वर्षों में हमने अपने बच्चों को विकास का जो पाठ पढ़ाया है, यह उसी का नतीजा है। गुलबर्गा का बच्चा किसान को उतना ही आदरणीय मानता है जितना वह डाक्टर, इंजीनियर को।’’

कलबुर्गी कंपू के ठीक बाद पाटिल जी ने वर्ष 2011 में एक और संगठन बनाया जिसका नाम है विकास एकेडमी। यह मूलतः हैदराबाद कर्नाटक अभिवृद्धि विभाग का ही औपचारिक और संस्थानिक स्वरूप है। इसके फोकस में शिक्षा, कृषि एवं ग्रामीण विकास, युवा, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल कल्याण जैसे विषय हैं। यह संस्था हैदराबाद-कर्नाटक के सभी पांच जिलों में पाटिल जी के विचारों को साकार करने में पूरी तन्मयता के साथ लगी है।

अगले दो महीनों में अर्थात फरवरी 2024 में पाटिल जी 80 वर्ष के हो जाएंगे लेकिन उनकी सक्रियता में कोई कमी नहीं आई है। अभी वे जी-जान से सेडम में एक बड़े सम्मेलन की तैयारी में लगे हैं। जिस सम्मेलन की तैयारी वे पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं, वह भारत विकास संगम का सातवां सम्मेलन होगा। इस सम्मेलन में बसवराज पाटिल जी विकास के भारतीय मॉडल को सगुण रूप में देश के सामने प्रस्तुत करना चाहते हैं। इस आयोजन की आधारभूत संरचना पर पिछले कई वर्षों से काम हो रहा है। पाटिल जी का कहना है कि 28 जनवरी से 6 फरवरी 2025 के बीच इस आयोजन में 50 लाख से अधिक लोग आएंगे। दस दिन के इस सम्मेलन की तैयारी देख मैं रोमांचित हूं। मुझे उस दिन की प्रतीक्षा है जब भारत के परम वैभव की एक मनोहर झांकी के साथ यह महा सम्मेलन हमारे सामने होगा।

(#नोट-यह चित्र 2010 के #कलबुर्गी_कंपू का है। इसमें मेरे और बसवराज पाटिल जी के साथ परमवीर चक्र विजेता बाना सिंह बैठे हैं।)

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