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जब जनता भागीरथ बन जाए तो मृत नदी भी जी उठती है

उत्तर प्रदेश के संभल शहर के बाहरी किनारे पर फ़िरोज़पुर है जहां से कभी सोत नदी गुज़रती थी, आज से कोई पचहत्तर वर्ष पूर्व इस नदी में इतना तेज प्रवाह और गहराई थी कि इसके ऊपर बने रेल पुल से तकनीकी ख़राबी की वजह से एक ट्रेन की बोगी गिर गई थी जो काफ़ी दिन के प्रयास के वावज़ूद वह पानी से निकल नहीं पायी थी। इस नदी का उद्गम ज़िला बिजनौर में था वहाँ से अमरोहा, फिर संभल से होती हुई बदायूं की ओर निकल जाती थी और आगे चलकर गंगा में मिल जाती थी अब से करीब चार दशक पहले तक पानी से लबालब भरी रहती थी, इसीलिए इसे सदा नीरा कहा जाता था। संभल जिले सहित कई जिलों की किसानों के लिए यह वरदान थी। लेकिन यह धीरे धीरे ग़ायब हो गई।

अगर हम इसकी प्राचीनता की बात करें तो इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है जहां इसे भविष्य गंगा कहा गया है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण की कथा में बताया गया है वर्तमान समय में चल रहे कलयुग के 5000 वर्ष पूरे होने पर मां गंगा पृथ्वी से लौटकर वापस स्वर्ग चली जाएंगी और कलयुग में इसका यह समय पूरा होने वाला है।  श्रीमद्देवीभागवत की मानें तो कुछ ही समय में मां गंगा को स्वर्ग वापस लौट जाएंगी, यह बात न केवल शास्त्रों में वर्णित है  है, बल्कि इस बात को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सत्य माना जा रहा है, क्योंकि बीते कुछ सालों में वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि जिस गोमुख ग्लेशियर से गंगा की अविरल धारा निकलती है, वह लुप्त होने की कगार पर है।

श्रीमद्देवीभागवत पुराण की कथा के अनुसार, एक बार मां गंगा और सरस्वती के बीच में नोक झोंक हो गई थी तब मां लक्ष्मी ने बीच-बचाव करने के आ गईं। इससे क्रोधित होकर गंगा ने लक्ष्मी जी को पृथ्वी पर पद्मा नदी बनकर रहने का श्राप दे दिया। इससे देवी लक्ष्मी पद्मा नदी के रूप में पृथ्वी पर आई। श्राप ही के कारण गंगा और सरस्वती को भी पृथ्वी पर आना पड़ा। इस पौराणिक आख्यान के अनुसार जब भगवान विष्णु को जब नारद मुनि से इस घटना के विषय में पता चला, तब उन्होंने कहा कि कलयुग 5000 पूरे होने पर तीनों देवियों को स्वर्ग लौटना होगा। पद्मा और सरस्वती नदी पहले ही लुप्त हो चुकी हैं, गंगा संकट में है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भविष्य गंगा पुन: प्रकट होगी और यह विष्णु के कल्कि अवतार का पहला चिन्ह होगा।

सोत नदी ही भविष्य गंगा है रोचक तथ्य यह है कि अंधाधुँध वृक्षों की कटाई और जंगलों के सिकुड़ने के कारण चालीस वर्ष पहले सोत नदी पूरी तरह सूख गई थी।

सोत नदी को लेकर स्थानीय एनजीओ ने प्रशासन के साथ मिल कर जो भगीरथ प्रयास किए, रीवर बेड की गहरी खुदाई की उसके कारण अब यह नदी पूरी तरह से चार्ज हो गई है और इसका जल स्तर अब प्रचुर है। यही नहीं इसके पुर्नजीवित होने के कारण 110 किमी धारा प्रवाह मार्ग के इर्द गिर्द की खेती बाड़ी में गुणात्मक सुधार भी हुआ है क्योंकि इसके मार्ग के दोनों और की भूमि में भी वाटर रिचार्ज हुआ है। प्रयास यह किया जा रहा है कि नदी के दोनों किनारों पर वृक्षों के झुरमुट लगाये जायें ताकि इसके तटबंध मज़बूत रहे।

मनरेगा की प्रभावशीलता को लेकर बहुत सारे प्रश्न चिन्ह लगाए जाते रहे हैं लेकिन सोत नदी का पुर्नजन्म इसी योजना के अंतर्गत हज़ारों मज़दूरों द्वारा रीवर बेड की गहरी खुदाई के कारण संभव हो पाया है।

(लेखक स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं और सामाजिक व सांस्कृतिक विषयों पर लेखन करते हैं।)