Saturday, April 27, 2024
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नदियों का संरक्षण

पुराणों में मां गंगाजी के महत्त्व का वर्णन किया गया है कि दिव्य तरंगवाली गंगा सब लोकों का  उद्धार  करने वाली है। मां गंगा के दर्शन से, स्नान करने से, छू लेने से, जल पीने से, तीर में बसने से,कल्पवास करने से एवं तीर पर शरीर छोड़ने से और अस्थि (फूला) गंगा जी में अर्पित करने से पापीजन भी मुक्त हो जाते हैं। लाखों किलोमीटर की दूरी से जो व्यक्ति मां गंगा-मां गंगा जी कहता है वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। मां गंगा तीनों लोकों को पवित्र करती हैं, इसलिए इन्हें “त्रिपथगा “कहते हैं। दूर-दराज एवं विदेशों में भी जो मां गंगाजी का कथा सुनता है, अपने शरीर पर गंगाजल का छिड़काव करता है और जलपान करने से लोग पाप मुक्त और पवित्र हो जाते हैं।

भारत के प्रत्येक व्यक्ति के मन में मां गंगा के समकालीन स्वरूप के लिए पीड़ा है और प्रत्येक  भारतीय मौलिक कर्तव्य का पालन भी करना चाहता है। सामान्य व्यक्ति गंगा और सभी नदियों के प्रति सामान्य पहल कर सकता है जिससे नदियां अविरल व निर्मल होकर निरंतर बहती रहे। हिंदुओं के मन में मां गंगा और अन्य नदियों के प्रति परंपरागत आस्था बलवती हैं। गंगा समग्र के कार्यकर्ताओं के भागीरथी प्रयास से नदियों की अविरलता और निर्मलता पर फलात्मक प्रभाव दिखाई दे रहा है।

गोमती नदी को “आदि गंगा” कहा गया है। गोमती के जल में तप,त्याग और करुणा की भावना है। इसके मनोरम तट पर आदि पुरुष मनु और सतरूपा ने ईश्वर आराधना करके पुत्र रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के लिए वरदान मांगा था,जो ईश्वरी आराधना से पूर्ण हुआ। कालांतर में श्री राम जी ने गोमती जल में स्नान करके मर्यादा और धर्म के प्रतीक भरत जी के साथ श्री राम जी ने पवित्र स्नान करके बंधुता और राष्ट्र धर्म/राज धर्म का आदर्श स्थापित किया था। देवताओं के शिरोधार्य इंद्र जी ने शापमुक्ति हेतु गोमती तट पर शिवलिंगों को स्थापित करके शिव मंदिरों के निर्माण की श्रृंखलाओं का उन्नयन किया था। गोमती नदी गौ रूपी धरती की कोख (भूगर्भ नदी) से उद्भव की है, इसके प्राण भूजल स्रोतों में निहित है। मां गंगा जी को भूलोक पर भागीरथ जी के अथक प्रयास से पदार्पण किया गया था,जिसके संरक्षण का नैतिक दायित्व नागरिक समाज का है ।नदियों की व्यापक उपादेयता है। इन्हीं पवित्र नदियों के तट पर महर्षि दधीच जी द्वारा देवत्व की रक्षा हेतु अपना अस्थिदान अर्पण किया गया था। चौरासी कोस परिक्रमा पथ पर संपूर्ण भारत के पवित्र तीर्थ की स्थापना तथा अठासी हजार मुनियों को सामाजिक एवं वैदिक सनातन तत्वबोध प्राप्त हुआ था।

नदियों की संरक्षा, सुरक्षा एवं रख-रखाव के लिए “गंगा समग्र” संगठन की स्थापना किया गया। गंगा समग्र के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीमान रामाशीष जी का व्यक्तित्व संत समान है, उनके संतत्व  व्यक्तित्व के कारण गंगा समग्र के कार्यकर्ता ऊर्जावान होकर नदियों की स्वच्छता, अविरलता एवं संरक्षण के लिए कार्यरत है। इन कार्यकर्ताओं का नदियों के प्रति लगाव एवं मनोयोग “नदी मित्र” की भूमिका में है। नदियों के संरक्षण के लिए चेक डैम का निर्माण हुआ है। उद्योगों द्वारा प्रदूषण पर रोक के लिए प्रयास करना, संगठन के द्वारा घाटों और तटों को स्वच्छता अभियान से निरंतर जोड़े रहना नदियों के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण योग है। नदियां हमारे प्राकृतिक धरोहर हैं। संसार के सभी सभ्यताओं का विकास नदियों के तटों पर हुआ है और नदियों के जल का प्रभाव नदियों के किनारे रह रहे जनजीवन पर अत्यधिक पड़ता है। नदियां अपनी वत्सलता के साथ खेतों को जल, धरती को हरियाली एवं समृद्धि प्रदान करके बहती हैं। नदियों का जल मलयुक्त नालों, उद्योगों के कचरा एवं हानिकारक अवशिष्ट तरल रसायनों से नदियों के जल प्रदूषित हो रहे हैं। नदियों के तट क्षेत्र में बस्तियों का बढ़ना और अनियोजित तीर्थ विकास एवं अतिक्रमण के कारण जीव और जंगल समाप्त हो रहे हैं।

गंगा समग्र के प्रयास से राष्ट्रीय एवं प्रांतीय स्तर पर क्रमशः गुजरात, उत्तराखंड, अवध, ब्रज एवं गोरक्ष प्रांत में “कार्यकर्ता अभ्यास वर्ग” के द्वारा जल स्रोत संरक्षण,नदियों के निर्मलता और अविरलता पर कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं, जिसका मौलिक उद्देश्य कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण, उनमें नदियों के प्रति जागरूकता और दायित्व बोध करना है। राष्ट्रीय संगठन मंत्री आदरणीय रामाशीष जी ने बताया कि अनियोजित विकास, विकृत आस्था एवं अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि नदियों का प्रबल प्रदूषक है। नदियों की अविरलता को बनाए रखने के लिए शून्य लागत प्राकृतिक खेती को बढ़ाया जाए, कम पानी की फसलों का रोपण किया जाए,कूड़ा, कचरा,प्लास्टिक और न गलने वाली सामग्री के निस्तारण की उचित व्यवस्था करके और जागरूकता कार्यक्रम से पहल किया जा सकता है।

(लेखक गंगा समग्र,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचार प्रमुख हैं)

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