Wednesday, December 25, 2024
spot_img
Homeआपकी बातजम्मू कश्मीर के विस्थापित: क्या भाजपा किसी जाल में फँस रही है?

जम्मू कश्मीर के विस्थापित: क्या भाजपा किसी जाल में फँस रही है?

दिल्ली में सत्ता परिवर्तन हुए एक साल गुजर गया है. बीजेपी ने एक तरह से 26 मई साल २०१४ में सत्ता के आसन पर आसीन हुई मोदी जी के नेत्रित्व बाली सरकार की उपलब्धियां गिना कर पहली वर्षगांठ मनाई है . कुछ टीवी चैनल्स ने पक्ष-विपक्ष बाद्विवाद प्रतियिगिता की तरह बीजेपी के नेताओं के साथ कांग्रेस और अन्य दलों के नेताओं को भी बात करने का अवसर दिया. सरकार के मंत्री टीवी चैनल्स पर सरकारी आंकड़े रखते दिखे. यहाँ तक  भारत के जम्मू कश्मीर राज्य का संबंध है बीजेपी के नेता बिना इस के कि बीजेपी ने बिपरीत सोच बाले दल के साथ मिल कर जम्मू कश्मीर में सरकार बना ली है और किसी उपलब्धि का जिकर नहीं कर सके हैं. बीजेपी के पूर्ण सत्ता में आने के बाद भी अगर कोई यह कहे कि जम्मू रीजन को कश्मीर घाटी  के पीछे चलना है या जो कश्मीर घाटी को मिले बे जम्मू को भी मिलना चाहिए या जम्मू को कुछ भी देने से पहले कश्मीर घाटी को देना ही होगा जैसी २०१४ से  पहले की सरकारों की नीति और आज की बीजेपी की पूर्ण बहुमत बाली केन्द्र सरकार की नीति में कोई अंतर नहीं दिख रहा है तो गलत नहीं होगा. लदाख के प्रतिस्पर्धा में होने के लक्षण तो दीखते ही नहीं.
 
 
कोई कह सकता है कि केंद्र में आई नई सरकार को कुछ समय देना चाहिए क्यों की सरकार ने एक बुरी तरह से विगड़ चुकी आर्थिक और  राजनीतिक स्थिति में सत्ता पाई थी. पर जब बीजेपी नें एक साल बाद खुद ही अपनी उपलब्धिया गिनाने का अभियान हाथ में लिया है तो फिर जनता को भी जहाँ तक हो सके सरकार के बारे में अपनी राय सामने रखने का अधिकार है.
 
उदहारण के लिए कहा जा सकता है कि कश्मीर घाटी के विस्थपितों ( खास कर कश्मीरी पंडितों ) की बापसी के बारे में बीजेपी सिर्फ ‘अधिक चिंतित’ दिखने की कोशिश करती दिखती है न कि इस पर गंभीरता से विचार और चिंतन  करती कि उन की बापसी २५ साल बाद भी सिर्फ १ परिवार तक ही सिमित क्यों रही है ?. यहाँ तक पाकिस्तान द्वारा  १९४७, १९६५ और १९७१ में  कब्ज़ा किए जम्मू कश्मीर के मीरपुर, मुज्ज़फराद ,छम्ब, गिलगित बल्तिस्तान जैसे इलाकों के  बिस्थापितों  के साथ साथ जम्मू रीजन के आतंकबाद पीड़ित राजौरी, पूँछ, रियासी, उधमपुर  जेसे इलाकों के लोगों के साथ साथ कश्मीर घाटी के नॉन स्टेट सब्जेक्ट विस्थापित की मांगों का सवाल है उन की दूर दूर तक कोई सार्थक चर्चा नहीं हुई है. अगर कोई इन बातों को राज्य स्तर की समस्या कह कर पल्ला झाड़ना चाहेगा  तो यह उस की नासमझी ही होगी क्यों कि जम्मू कश्मीर में सर निकाल चुके प्रिथिक्ताबादी तत्व आज भारत के लिए एक ऐसा  राष्ट्रीय मुद्दा हैं जिस का अन्तर्रष्ट्रीय सत्र पर प्रभाव दीखता है और भारत के इस राज्य के लोगों के बीच क्षेत्र बाद और के नाम पर लकीरें खींचने बाले भी सक्रिय हैं.
 
सरकार के लिए उपलब्धियां जनता के सामने रखना बुरी बात नहीं है पर इस के साथ साथ सरकार को यह भी देखने की कोशिश करनी चाहिए की जमीनी सतह पर आम नागरिक क्या सोच रहा है. यदि सरकार ऐसा  नहीं करेगी  तो फिर कभी कभी अच्छी नीयत के बाबजूद भी कोई भी सरकार अपना अस्तित्व खो सकती है और कुछ ऐसा ही अटल बिहारी वाजपई जी की  सरकार के साथ २००४ में हुआ था.
 
जम्मू कश्मीर में पीडीपी और बीजेपी गठ्बंदन की सरकार है जिस को एक खास प्रकार के राजनीतिक आन्दोलन की तरह देखा जा सकता है . यदि इस सरकार को बने अभी 3 – ४ महीने ही हुए हैं फिर भी विश्लेषण करने बाले कहते हैं कि जम्मू कश्मीर में राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति का आकलन इस बात को ध्यान में रख कर करना होगा कि दिल्ली में मई २०१४ में ही एक बड़ा बैचारिक परिवर्तन हो गया था.
 
यहाँ तक विदेश में मोदी जी ने भारत की सांस्कृतिक सम्पदा को दुनिया के सामने पिछले एक साल में रखा है बे सराहनीये है क्यों कि इस से हर भारतीय को गर्व करने के अवसर मिले हैं. विदेश निति एक बड़ा ही जटिल  विषय है इस लिए आने बाले समय में कहाँ तक भारत को आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर अमेरिका, ब्रिटेन, चीन , जर्मनी , ऑस्ट्रेलिया , मंगोलिया, पाकिस्तान,बांग्लादेश   जेसे देशों का साथ मिलेगा इस पर अभी से कोई अति सुखद आशा करना या इस को नकार देना उचित नहीं है क्यों की हर देश को पहले अपने स्बार्थ देखने होते हैं. यहाँ पर इसलिए उन विषय पर ही बात करते हैं जिन को आम जनता आसानी से समझ सकती है और अगर कोई सुधार हुआ है तो उस को  महसूस कर सकती है .
 
यहाँ तक सामान्य  कानून व्यबस्था का सम्बन्ध है एक साल बीत जाने के बाद भी भारत के अन्य राज्य और जम्मू कश्मीर राज्य के आम नागरिक को कोई बताने योग्य सकून मिला हो यह नहीं कहा जा सकता. आज के दिन हम जिस को आम आदमी कह सकते हैं बे हर बह भारत का  नागरिक है जो आज की स्थानीय प्रशानिक और स्थानीय कानून व्यबस्था से निराश है.
 
मोदी जी के मंत्री जब अपनी उप्लाव्धियाँ गिनाते दिखे तो आम आदमी की सामाजिक, आर्थिक  और व्यक्तिगत सुरक्षा में हुए सुधार की कोई जमीनी उपलब्धि किसी मंत्री ने नहीं गिनाई. अरुण जेटली जी ने कहा कि एक साल में मोदी की सरकार ने पूर्ण भरष्टाचार रहित बातावरण देश में दिया है. समाचार पत्रों ने भी इस दाबे को प्रमुख स्थान दिया. जमीनी स्तर पर जेटली जी को कुछ कदम चल कर ही पूर्ण रूप से भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने का दाबा करना चाहिए था क्यों की आज के दिन भी एक पीड़ित नागरिक अपनी शिकायत करने पुलिस स्टेशन जाते डरता है. जम्मू कश्मीर राज्य में जो एक टूरिस्ट और धार्मिक श्रध्दा से भरे यात्रिओं का आकर्षण है आज के दिन आप को एक भी स्कूटर टैक्सी ऐसी नहीं मिलेगी जो सरकार द्वारा तह किए किराये पर चलती हो और जिस का मीटर चलता हो. कोई कहेगा यह केन्द्र का विषय नहीं है. पर क्या केंद्र सरकार यह नहीं जानती की जम्मू कश्मीर की उच्च स्तर पर बैठे अधिकारी भारतीय प्रशासनिक या भारतीय पुलिस सेवा से आते हैं. सड़कों पर मिटी के तेल को डीजल में मिला कर काले धुएं के बादल उड़ाते वाहन सडकों पर जम्मू कश्मीर के साथ साथ पंजाब में हर और दिख जाते हैं और दोनों जगह बीजेपी सत्ता में है.
 
सत्ता में आने के पहले बीजेपी के लिए कश्मीरी विस्थापितों की घर बापसी  एक मूल मुद्दा रहा है पर सरकार ने अपनी एक साल की उप्लाब्दियों में इस बारे कोई ठोस और सीधी बात नहीं की  और इस के विपरीत विस्थपितों को दि जाने बाली राशि को ६५०० रूपए  माह से बड़ा कर १०००० रूपए कर के यह संकेत दिए हैं कि आने बाले निकट समय में सरकार को इन की बापसी की कोई सम्भाबना नहीं दिखित है.
 
कुछ मोदी जी के प्रशंसक कहते हैं कि जम्मू कश्मीर के हालात पिछले ६० साल में इतने बिगाड़ दिए गये हैं कि आज लोगों में ( ख़ास कर के कश्मीर घाटी ) भारत राष्ट्र के प्रति  पूर्ण विश्वास और निष्ठा का संचार फिर से करने के लिए कुछ देर तक अल्गाब्बादी दिखने बाले लोगों के प्रति भी कुछ नर्म रुख अपनाने की जरूरत है. हो सकता है ऐसे सोचना कुछ हद तक ठीक हो पर इस के साथ साथ बीजेपी को इस बात का भी ध्यान रखना होगा की बे लोग जो भारत के प्रति पूरी निष्ठा रखते आए हैं और बीजेपी को कांग्रेस से कुछ अलग समझते रहे हैं कहीं बे अपना धेर्य न खो बैठें  और उन के मन में भी जम्मू कश्मीर के एक विवाद या समस्या होने की बात अपना घर न करने लग जाए.
 
सिर्फ प्रशंसा करने बाले और सही समय पर बास्तुस्थिति को अपने ‘प्रिये’ के सामने न रखने बाले सहयोंगी शुभचिंतक नहीं कहे जा सकते. यह एक ईमानदारी से की गई टिपण्णी है.
 
 ( * Daya Sagar is a Sr Journalist and a social activist  dayasagr45@yahoo.com  09419796096).

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार