”जय माता दी“ के जयकारों के साथ माता वैष्णव देवी के दर्शन करने आने वाले यात्रियों की धार्मिक भाव-भूमि के साथ आध्यात्मिक, तपस्वी-मनीषियों की भूमि को अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य से धरती का स्वर्ग कहा जाता है।
नवगठित जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित राज्य की भूमि को प्रकृति ने अपनी खूबसूरती से संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पर्वत श्रृंखलाओं की सौंन्दर्यपूर्ण अप्रतिम वादियां, नदियों और झीलों की झिलमिलाती आभा, अद्वितीय लुभावने उद्यानों की श्रृंखला, साहसिक खेल, फलों और मेवों के साथ केसर की महकती सुगन्ध एवं रंगबिरंगे फूलों की मनोरम घाटियां इस भूमि की अपनी ही विशेषताएं हैं। यह झेलम नदी के दोनों तटों पर बसा हुआ है।
जम्मू का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। हाल में अखनूर से प्राप्त हड़प्पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्रचीन स्वरूप पर नया प्रकाश पड़ा है। राजतरंगिणी तथा नीलमत पुराण नामक दो प्रामाणिक ग्रंथों में यह आख्यान मिलता है कि कश्मीर की घाटी कभी बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण खदियानयार, बारामुला में पहाड़ों के धसने से झील का पानी बहकर निकल गया और इस तरह पृथ्वी पर स्वर्ग कहलाने वाली कश्मीर घाटी अस्तित्व में आई। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार किया। बाद में कनिष्क ने इसकी जड़ें और गहरी कीं। छठी शताब्दी के आरंभ में कश्मीर पर हूणों का अधिकार हो गया। यद्यपि सन 530 में घाटी फिर स्वतंत्र हो गई लेकिन इसके तुरंत बाद इस पर उज्जैन साम्राज्य का नियंत्रण हो गया। विक्रमादित्य राजवंश के पतन के पश्चात कश्मीर पर स्थानीय शासक राज करने लगे। वहां हिंदू और बौद्ध संस्कृतियों का मिश्रित रूप विकसित हुआ। कश्मीर के हिंदू राज्यों मं ललितादित्य (सन 797 से सन738) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए जिनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। ललितादित्य ने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया कश्मीर में इस्लाम का आगमान 13वीं और 14वीं शताब्दी में हुआ मुस्लिम शासकों का जैन-उल-अब्दीन (1420-70) सबसे प्रसिद्ध शासक हुए जो कश्मीर में उस समय सत्ता में आए जब तातारों के हमले के बाद हिंदू राजा सिंहदेव भाग गए बाद में चक शासकों ने जैन-उल-अब्दीन के पुत्र हैदरशाह की सेना को खदेड़ दिया और सन 1586 तक कश्मीर पर राज किया सन 1586 में अकबर ने कश्मीर को जीत लिया। सन 1752 में तत्कालीन कमजोर मुगल शासक के हाथ से निकलकर आफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के हाथों में चला गया। 67 साल तक पठानों ने कश्मीर घाटी पर शासन किया। सन 1733 से 1782 तक राजा रंजीत देव ने जम्मू पर शासन किया। सन 1947 तक जम्मू पर डोगरा शासकों का शासन रहा इसके बाद महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को भारतीय संघ में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर किए।
केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को 5 अगस्त, 2019 समाप्त कर दिया। भारत की संसद के” जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019″ के द्वारा तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख में पुनर्गठित करने का प्रावधान किया था । राष्ट्र्पति द्वारा इसे 9 अगस्त 2019 को स्वीकृति प्रदान की गई। इस अधिनियम के प्रावधान 31 अक्टूबर 2019 को लागू कर दिए गए।
इन्हीं अद्भुत कल्पनाओं से सजा-संवरा राज्य ग्रेट हिमालियन रेंज एवं वीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के मध्य स्थित हैं। इस राज्य में जम्मू (पुंछ सहित), कश्मीर, लद्दाख, बल्तिस्तान एवं गिलगित के क्षेत्र सम्मिलित हैं। राज्य उत्तर-पश्चिम सीमा की ओर चीन गणराज्य से जुड़ा है तथा पूर्व की ओर पाकिस्तान की सीमा से तथा दक्षिण में हिमाचल व पंजाब राज्य की सीमा से जुड़ा हुआ है। अधिकांश जिला हिमालय पर्वत से ढका हुआ है। अब लद्दाख को पृथक संघीय राज्य बना दिया गया है। यहां प्रमुख रूप से सिंधु, झेलम एवं चिनाब नदियां बहती हैं। वूलर यहां मीठे पानी की भारत की सबसे विशालतम झील है। कश्मीर घाटी, चिनाब घाटी, तावी घाटी, पुंज घाटी, सिंघ घाटी तथा लीडर घाटी यहां की खुबसूरत वादियां हैं। राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 105 वर्ग किमी हैं। यहां कि जनसंख्या 12,541,402 तथा साक्षरता 67.16 प्रतिशत है। राज्य की स्थापना 26 जनवर 1950 को की गई। श्रीनगर को इस राज्य की राजधानी बनाया गया, जो राज्य का सबसे बड़ा नगर है।राज्य में वर्षभर मौसम खुशनुमा रहता है। पतझड़ में चिनार वृक्षों का सुनहरा सौन्दर्य, सर्दियों में बर्फ से ढ़की पहाड़ियां एवं गर्मी के मौसम में हरियाली लुभा लेते हैं।
राज्य के 20230 वर्ग किमी. क्षेत्र में वन हैं। यहां के वनों एवं घाटियों में चिनार, देवदार, पाइन के वृक्ष बहुतायत से देखने को मिलते हैं। कस्तूरी हिरण, काले और लाल भालू, हिम तेन्दूएं तथा विभिन्न प्रजातियों के 250 से अधिक पक्षी पाये जाते हैं।
कृषि, फल एवं सूखे मेवों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। चावल यहां की प्रमुख फसल है तथा मक्का, गेहूं, जौ एवं जई की खेती भी की जाती है। अखरोट, बादाम, नाशपाती, सेव, केसर तथा शहद का व्यापक पैमाने पर निर्यात होता है। कश्मीर केसर के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। जलीय उत्पादन मछली, हरी खाद, कमल, सिंघाडें, तथा तैरते हुए बगीचों से सब्जियों का उत्पादन मुख्य है। रेशम के कीड़े तथा भेड़-बकरी पालन भी यहां के मुख्य व्यवसाय हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य देश तथा विदेशों में अपने बागवानी उत्पादों फलों, मेवों एवं फूलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां सुंदर एवं औषधीय महत्व के फूलों की खेती की जाती है। सिराज बाग, श्रीनगर में ट्यूलिप गार्डन लगाना विभाग की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन है। इसमें मार्च के अंतिम सप्ताह से लेकर अप्रैल के अंतिम सप्ताह तक फूल खिले रहते हैं।
बहुमूल्य खनिजों में सोना व नीलम प्रमुख हैं। इनके साथ-साथ कोयला, तांबा, जस्ता, सीसा, बाॅक्साइड, सज्जी, चूना पत्थर, स्लेट, चीनी मिट्टी एवं खडिया पत्थर खनिज भी उत्पादित होते हैं। हस्तशिल्प में चांदी एवं लकड़ी पर नक्काशी का कार्य, अखरोट की लकड़ी के फर्नीचर पर सुन्दर नक्काशी, पेपर मेशी के सुन्दर सजावटी सामान कश्मीर की जामवर एवं पश्मीना शाॅल एवं ऊनी वस्त्र तथा कालीन प्रमुख हैं। लाल चौंक खरीददारी का महत्वपूर्ण केन्द्र है। सरकारी एम्पोरियमों में हस्तशिल्प की वस्तुएं खरीदना उपयुक्त रहता है।
उत्तरी, दक्षिणी एवं मध्यम एशियाई संस्कृति से प्रभावित कश्मीर की बहुसांस्कृतिक संस्कृति अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के साथ-साथ सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न है। यहां हिन्दू-मुस्लिम, सिख और बौद्ध मिलकर मानवतावादी एवं सहिष्णुता के मूल्यों पर आधारित समग्र संस्कृति का निर्माण करते हैं। यहां हिन्दी एवं अंग्रेजी के साथ कश्मीरी, डोगरी, उर्दू, लद्दाखी, पश्तो एवं गोजरी आदि भाषाएं बोली जाती हैं। सूफी परम्परा की ”सूफीयाना कलाम“ नामक संगीतकृतियों में लोक साहित्य के स्वर सुनाई देते हैं। लोक साहित्य में भक्तिसंगीत, संतवाणी, आध्यात्मिक गीत, प्रणय गीत, श्रम गीत, विवाह गीत एवं लड़ीशाह (हास्य-व्यंग) तथा लोक कथाओं का प्रचलन मुख्य रूप से देखने को मिलता है। यहां का अधिकांश साहित्य संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस दृष्टि से चरक, विष्णु शर्मा, नाग सेन, कालीदास, वाग्भट, आनन्दवर्धन, बिल्हण, कल्हण, जयदत्त, क्षीरस्वामी, पुष्पदन्त एवं रत्नाकर जैसे नाम विख्यात हैं। यहां लाल देद एवं शेख-उल-आलम जैसे महाकवि एवं सूफी संत हुए। लोक नृत्य और लोकगीत भी प्रसिद्ध हैं। जम्मू में मकर संक्रान्ति के अवसर पर विशेष रूप से छज्जा नृत्य किया जाता है। इस पर्व को यहां लोहड़ी के नाम से मनाया जाता है। फसल कटने के उत्सव के रूप में बैशाखी मनाई जाती है, इस अवसर पर भांगड़ा एवं महिलाओं द्वारा गिद्दा नृत्य किया जाता है। सिखों के दसवें गुरू गुरूगोविन्द सिंह ने इसी दिन 1699 में खासा की स्थापना की थी। इस दिन यहां लोग गुरूद्वारे में पूजा अर्चना, सबद-कीर्तिन कर लंगर में प्रसाद चखते हैं। नवरात्री पर राज्य सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा शारदीय नवरात्रा के नौ दिनों को वार्षिक आयोजन के रूप में मनाया जाता है। वर्ष में दो बार बाहुकिले के काली माता मंदिर में बहु मेला तथा जम्मू शहर से उत्तर में स्थित पुर मण्डल में चैत्र चैदस मेला तथा शिव रात्री के अवसर पर भगवान शिव का माँ पार्वती से विवाह समारोह का उत्सव आयोजित किया जाता है। जम्मू से 14 किमी दूर स्थानीय कृषक बाबा जीतू के सम्मान में झीरी मेला आयोजित किया जाता है। होली, दीवाली, दशहरा, ईद जैसे अन्य महत्वपूर्ण पर्व भी यहां आयोजित किये जाते हैं। बाजवान कश्मीरी भोजन का एक खास अंदाज है। इसमें कई कोर्स होते है जिनमें रोगन जोश, तबकमाज, मेथी, गुस्तान आदि डिश शामिल होती है। स्वीट डिश के रूप में फिरनी पेश की जाती है।
राज्य 400 किमी. लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 1ए द्वारा शेष देश से जुड़ा है। जम्मू रेल लाइन को ऊधमपुर तक बढ़ाया गया है (90 किमी.) ऊधमपुर-काजीगुंड रेल अभी तक काम चल रहा है तथा काजीगुंड और बारामुला रेल लाइन का काम पूरा हो गया है। कटरा तक रेल सेवा उपलब्ध करदी गई है। श्रीनगर में शेख-उल- आलम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है।
जम्मू कश्मीर की बर्फीली पहाड़ियों में भूतल से 3888 मीटर ऊंचाई पर स्थित पुरानी गुफा में अमरनाथ मंदिर जन-जन की आस्था का केन्द्र है। यह गुफा 5 हजार वर्ष पुरानी बताई जाती है। यहां आने के लिए श्रद्धालुओं को 40 मील की चढ़ाई पार करनी होती है, जिसमें कम से कम 5 दिन का समय लगता है। यह क्षेत्र वर्ष भर बर्फ से ढका रहता है, यहां की यात्रा केवल गर्मियों में की जाती है।हालांकि इस समय भी यह क्षेत्र काफी हद तक बर्फ से ढका रहता है। यहां की यात्रा के लिए पंजीकरण कराना होता है।
भारत में हिन्दुओं के पवित्र देवी धाम स्थलों में जम्मू के कटरा नामक स्थान पर त्रिकुटा पर्वत की चोटी पर 520 फीट की ऊँचाई पर वैष्णव देवी माता का मंदिर सर्वाधिक वंदनीय एवं लोकप्रिय है। मंदिर में माता के तीन पिण्ड एक गुफा में स्थापित है जो 30 मीटर लम्बी और 1.5 मीटर चैड़ी है। कथानक के अनुसार, वैष्णव देवी एक राक्षस का वध कर यहां आकर छिपी थी। माँ वैष्णव देवी दर्शन हेतु पहाड़ी चढ़ाई बाणगंगा से शुरू होती है। चौदह किलो मीटर की चढ़ाई कर माता के भवन तक पहुँचते हैं। मंदिर के गर्भ गृह में महालक्ष्मी, महाकाली एवं महासरस्वती की तीन पिण्डलियां विराजती हैं। मध्य की महाकाली पिण्डली को माता वैष्णव देवी नाम दिया गया है। भवन से 3 कि.मी. ऊँचाई पर भैरवनाथ का मंदिर बना है। आज कल चढ़ाई मार्ग में अर्द्धकुमारी से बैटरी कार भी शुरू की गई है। मंदिर की देखभाल की जिम्मेदारी वैष्णोंदेवी श्राइन बोर्ड द्वारा की जाती है। भारत के इस अमीर मंदिर में आन्ध्र प्रदेश के तिरूमल्ला मंदिर के बाद सबसे अधिक भक्तों द्वारा माता के दर्शन किये जाते हैं। आदि कुमारी माता के दर्शन कर श्रद्धालु 6500 फीट की चढ़ाई करते हैं जिसे हाथी मत्था कहा जाता है। अब कटरा तक रेल सुविधा उपलब्ध हो गई है तथा मन्दिर तक जाने के लिये कम दूरी वाला नया मार्ग भी बना दिया गया है।
रघुनाथ मंदिर
भगवान राम को समर्पित जम्मू का प्रमुख धार्मिक आकर्षण है रघुनाथ मंदिर, जिसका निर्माण 1822 से 1860 ई. के दौरान महाराजा रणजीत सिंह के आदेश से किया गया था। उत्तर भारत में यह सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर परिसर है, जहां 7 भव्य मंदिर बनाये गये हैं। मंदिरों के अन्दरूनी पैनल्स में जम्मू कला की पेटिंग के साथ-साथ रामायण, महाभारत, भगवत, गीता की प्रतिमाएं, गणेश, कृष्ण, शेषायी, विष्णु, विष्णु, सीता स्वयंवर आदि के चित्रण बहुतायत से देखने को मिलते हैं। सभी सात तीर्थ स्थलों में दीवारों पर सोना मड़वाया गया है।
अन्य दर्शनीय स्थल
जम्मू के अन्य दर्शनीय स्थलों में महाराजा रणवीर सिंह द्वारा 1883 में बनवाया गया भगवान शिव को समर्पित रणवीरेश्वर मंदिर दर्शनीय है। तवी नदी के तट पर राजा बाहुलोचन द्वारा करीब 3000 वर्ष पूर्व बनाया गया पहाड़ी पर स्थित पुराना बाहू किला मुख्य शहर से पाँच कि.मी. पर स्थित है। यहां काली मंदिर पर रविवार को विशेष रूप से भक्तों की भीड़ रहती हैं। किले की तलहटी में एक उद्यान बना है जहां लोग पिकनिक का आनन्द उठाते हैं। राजस्थानी, मुगल एवं गाॅथिक शैली का बना मुबारक मण्डी पैलेस ;पुराने सचिवालयद्ध में शीश महल तथा डोगरा कला संग्रहालय दर्शनीय है। संग्रहालय में जम्मू एवं बसोहली पहाड़ी की कला, लघु चित्र एवं बसोहली शैली के आभूषण संग्रहित हैं। तवी नदी के किनारे पर फ्रैंच महल के नमूने पर बना अमर महल संग्रहालय में शाही परिवार के चित्र, पहाड़ी चित्र कला के साथ-साथ एक पुस्तकालय देखने को मिलता है। जम्मू से 42 कि.मी. दूर सूरिसर झील तथा 56 कि.मी. पर मानसर झील भी दर्शनीय स्थलों में शामिल हैं। यहां पहुँचने के लिए जम्मू से सीधे बसें उपलब्ध हैं।
पटनी टाॅप
जम्मू से 108 कि.मी. की दूरी पर स्थित प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर पटनी टाॅप समुद्र तल से 6400 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहां लम्बे-लम्बे चीड़ और देवदार के वृक्षों से बर्फ के दिनों में फाहे हवा के झोंकों के साथ जब जमीन की ओर गिरते हैं तो लगता है जैसे बर्फ की बरसात हो रही है। यहां सफेद बर्फ से ढ़की हुई फ़िज़ा तथा सायं-सायं करती कंपा देने वाली शीतल हवा का दृश्य आकर्षक होता है। सर्दियों में कई फीट तक जमी बर्फ का आनन्द लेते हुए सैलानी स्कीइंग का मजा भी लुटते हैं।
उद्मपुर जिले में आने वाले इस खूबसूरत पर्यटन स्थल के साथ-साथ आस-पास के सुद्धमहादेव, मानतलाई, चिनैनी एवं सनासर स्थलों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए पटनी टाॅप विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है। इनके प्रयासों से पटनी टाॅप के पहाड़ी ढलानों पर स्कीइंग तथा मथा टाॅप व सनासर क्षेत्र में पैराग्लाइडिंग करने वालों की भीड़ लगी रहती है। जनवरी-फरवरी माह स्कीइंग तथा अक्टूबर माह पैराग्लाइडिंग के लिए अनुकूल रहता है। यहां स्कीइंग, पैराग्लाइडिंग, ट्रेकिंग एवं राॅक क्लाइबिंग के सप्ताह भर के कोर्स भी कराये जाते हैं। बर्फबारी एवं हिमस्खलन के कारण यातायात बाधित होने की समस्या के समाधान के लिए चेनानी-नैशरी टनल का निर्माण किया गया है जो 9.2 कि.मी. लम्बी है। बताया जाता है कि यह भारत की सबसे लम्बी सुरंग है।
शिवखोड़ी
भगवान शिव को समर्पित शिवखोड़ी नामक धार्मिक एवं प्राकृतिक दर्शनीय स्थल जम्मू से करीब 100 कि.मी. दूर रियासी तहसील के अन्तर्गत पौनी क्षेत्र के रणसू नामक स्थान पर स्थित है। यहां पहुँचने के लिए जम्मू से बसें उपलब्ध हैं। कटरा से भी लोग रियासी, अखनूर एवं कालाकोट होते हुए बस द्वारा रणसू पहुँचते हैं। शिवखोड़ी दर्शनीय स्थल रणसू से 6 कि.मी. दूरी पर स्थित है। शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं में अनेक प्राकृतिक गुफाये हैं, जिनमें देवी-देवताओं के नाम की प्रतिमाएं या पिण्डलियां बनाई गई हैं, जिससे ये पवित्र मानी जाती हैं। रणसू के जल कुण्डों में स्नान कर यात्री सड़क को छोड़कर पगडंडी की पर्वतीय यात्रा पर पैदल शिवखोड़ी के लिए रवाना होते हैं। यह मार्ग जल स्त्रोतों, छायादार वृक्षों, बहुरंगी पक्षियों के कारण रमणिक लगता है। करीब 4 कि.मी. टेडी-मेडी पगडंडी पार कर दर्शक पहुँचते हैं शिवखोड़ी गुफा के सामने, गुफा का बाहरी भाग काफी बड़ा है।
गुफा का आकार भगवान शंकर के डमरू की तरह है, अन्दर जैसे-जैसे प्रवेश करते हैं मार्ग सकरा हो जाता है। यात्रियों को सरक-सरक कर तथा कभी-कभी घुटनों के बल चलकर जाना पड़ता है। गुफा के भीतर भी गुफाएं हैं। अच्छा हो किसी पथ प्रदर्शक के साथ प्रवेश करें। गुफा के भीतर दिन में भी अंधेरा रहता है अतः यात्री टाॅर्च या मोमबत्ती लेकर जाते हैं। गुफा के भीतर सीढ़ियां चढ़ने पर शिवलिंग के दर्शन होते हैं। करीब 4 फ़ीट ऊंचा शिवलिंग प्राकृतिक रूप से गुफा की दीवार के साथ बना है। शिवलिंग के दांई ओर ध्यान मुद्रा में माता पार्वती के साथ गौरी कुण्ड बना है। शिवलिंग के बांई ओर कार्तिकेय की प्रतिमा के ऊपर भगवान गणेश की पंचमुखी प्रतिमा है। शिवलिंग के पास ही रामदरबार बना है। गुफा के अन्दर हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृतियां बनी हुई हैं। गुफा के ऊपर छह मुखी शेषनाग, त्रिशूल एवं सुदर्शन चक्र आदि की आकृति बनी हुई हैं। गुफा से टपकने वाला छत का पानी दूधिया रंग का होता है, गुफा की छत पर एक स्थान पर गाय के स्तन जैसी रचनाएं बनी हैं, जिनसे दूधिया पानी टपक कर शिव लिंग पर गिरता है। गुफा का प्रवेश करीब 100 मीटर चैड़ा है और अन्दर जाने पर यह सकरा होता जाता है।
श्रीनगर
कश्मीर में स्थित डल झील और उसके किनारे सजे रंग-बिरंगे शिकारे का दृश्य अत्यन्त मनोरम होता है। सैलानी पर्यटक शिकारों में बैठकर जब डल झील पर नौकायन का आनन्द लेते हैं। खूबसूरत वादियां डल झील का सौन्दर्य कई गुना बढ़ा देती हैं। मुगल शैली का आभास देते शिकारे में छः लोगों तक बैठने की व्यवस्था होती है। शिकारे का उपयोग सैलानियों के लिए ही नहीं वरन् फल-सब्जियों और फूलों के वेंडिंग के साथ-साथ मछली पकड़ने और वनस्पतियों की कटाई के लिए भी किया जाता है। झेलम नदी के किनारे क्रूज से पीर पंजाल पहाड़ों के सुन्दर दृश्य देखे जा सकते हैं।
निशात बाग
डल झील के एक किनारे अत्यन्त रमणिक एवं सुन्दर मुगल गार्डन तथा दूसरे किनारे पर शालीमार बाग स्थित है। निशात गार्डन के पीछे जबरवान पहाड़ों पर बर्फ से ढ़के पीर पंजाल पर्वत श्रंखला के दृश्य अत्यन्त रोमानी होते हैं। इस गार्डन का डिजाईन नूरजहां के बड़े भाई आसिफ खान ने 1633 ई. में करवाया था। निशात बाग की बारह छतों पर की गई जल व्यवस्था और समूह के रूप में बनाये गये फव्वारे देखते ही बनते हैं। निशात बाग में चिनार और सरू पेड़ों के रास्ते के साथ एक खूबसूरत झरना बहता है। यह दोनों ही बाग मुगल उद्यान शैली के सुन्दरतम् नमूने हैं।
शालीमार बाग
शालीमार बाग डल झील के उत्तर-पूर्व में एक चैनल के माध्यम से जुड़ा हुआ है। यहां बगीचे में दीवान-ए-आम हाॅल में एक झरना और छोटा सा काले संगमरमर से बना सिंहासन बनाया गया है। यह वास्तुकला का एक सुन्दर नमूना है। नक्काशीदार पत्थरों व फव्वारों से घिरे इस हाॅल का दृश्य भी देखते ही बनता है, जो चिनार पेड़ों से घिरा हुआ है। यहां पत्थर की कुर्सी पर कश्मीरी शैली में दो छोटे-छोटे मण्डप बनाये गये हैं। बारहदरी से बर्फ के पहाड़ों का दृश्य लुभावना लगता है। यहां प्रसिद्ध चिनार के पेड़ों की पत्तियों में रंग बदलने के कारण शरद एवं बसन्त ऋतु के दौरान बगीचा अत्यन्त सुन्दर नजर आता है।
गुलमर्ग
अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के कारण गुलमर्ग दुनिया के अद्वितीय पर्यटन स्थलों में गिना जाता है। यहां की स्वच्छ ताजा हवा के साथ प्राकृतिक सुन्दरता इसके आकर्षण को बढ़ती है। गुलमर्ग घने जंगलों से घिरा हुआ है। यहां सैलानी स्कीइंग करते हुए देखे जा सकते हैं। गुलमर्ग की स्थापना 1927 ई. में अंग्रेजों ने की थी। यह स्थल समुद्री तल से 2730 मीटर की ऊँचाई पर बारामूला जिले में स्थित है। यहां विश्व का सबसे बड़ा गोल्फ कोर्स एवं देश का प्रमुख स्कीइंग रिजॉर्ट है। गोल्फ कोर्स रिजार्ट की देखभाल अब कश्मीर पर्यटन विकास प्राधिकरण द्वारा की जाती है। इसकी गिनती विश्व के सर्वोत्तम स्कीइंग रिजॉर्ट में होती है। दिसम्बर में बर्फ गिरने पर यहां बड़ी संख्या में सैलानी आकर स्कीइंग का आनन्द लेते हैं। यहां स्कीइंग की अच्छी सुविधाएं एवं प्रशिक्षक उपलब्ध हैं। गुलमर्ग के अंचल में खिलनमर्ग एक खूबसूरत हरे-भरे मैदानों व जंगली फूलों से सजी घाटी है जिसका नजारा देखते ही बनता है। यहां पर चीड और देवदार के पेड़ों से घिरी अलपाथर झील तथा गुलमर्ग से 8 कि.मी. पर आराफात चोटी से पिघली बर्फ एवं निंगली नल्लाह धारा को देखना भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है।
सोनमर्ग
कश्मीर घाटी में प्रकृति का आश्चर्य सोनमर्ग समुद्र तल से 2730 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहां बर्फ से ढ़के पहाड़ों का सौन्दर्य देखते ही बनता है। सोनमर्ग श्रीनगर से 87 कि.मी. उत्तर पूर्व में गान्दरबल जिले में सिन्द नाले नामक नदी घाटी पर स्थित हैै। सोनमर्ग से आगे मुख्य पर्वत एवं कई प्रसिद्ध ग्लेशियर स्थित है। यहां से पूर्व लद्दाख का रास्ता भी निकलता है। अप्रैल के अन्त में जब सोनमर्ग सड़क परिवहन के लिए खुलता है तब यहां सफेद कालीन की तरह बर्फ जमी रहती है। यहां का मुख्य आकर्षण थाजिव्स ग्लेशियर है। यहां तक पहुँचने के लिए कार एवं टट्टू किराये पर मिलती है। जब आप कार किराये पर लें तो उससे तीन स्थान थिजिवा ग्लेशियर, मछली तालाब एवं सर्बल पार्क देखने के लिए पहले से ही तय कर लें। यहां बर्फ पर चलने के लिए गम बूट एवं स्लेज गाड़ी किराये पर उपलब्ध हो जाती है। यहां निजी कार नहीं जा पाती है। सोनमर्ग में पर्यटन विभाग वार्षिक राॅफ्टिंग प्रतियोगिता आयोजित करता है जिसमें विदेशी पर्यटकों की टीमें भी भाग लेती हैं। सोनमर्ग की खूबसूरती का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां बड़ी संख्या में फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों की शूटिंग की है। सोनमर्ग से ट्रेकिंग मार्गों में कृष्णासर झील, गदसर झील, विश्वसर झील, गंगाबैले झील, स्नो ट्राउट एवं ब्राउन ट्राउट तथा सत्सदर के ग्लेशियर अल्पाईन के किनारे फूलों से घिरे हुए हैं।
पहलगाम
श्रीनगर से 96 कि.मी. दूरी पर पहलगाम लिद्दर एवं शेषनांग नदियों के संगम पर स्थित एक खूबसूरत पर्यटक स्थल है। लिद्दर घाटी में अनेक जल प्रपात तथा जंगली फूलों की छंटा देखने को मिलती है। यहां अनुमति प्राप्त कर ट्राउट मछली का शिकार किया जा सकता है तथा फिशिंग लाॅज किराये पर मिलती है। यहां नदी का शांत जल, ताजी व स्वच्छ हवा तथा प्रकृति का सौन्दर्य देखते ही बनता है। नदी के किनारे दूर तक पैदल घूमने का अपना ही मजा है। यहां भी गोल्फ खेल का मैदान बना हुआ है। पहलगाम के निकट अच्छबल मुगल गार्डन भी दर्शनीय स्थल है। यहीं से एक रास्ता अमरनाथ यात्रा के लिए निकलता है।
चश्मे शाही उद्यान
श्रीनगर के मुगल बागों में चश्मे शाही सबसे छोटा उद्यान है जो अपने औषधीय गुणों के लिए पहचाना जाता है। इसमें तीन छतें एक जल संग्रहण रचना, झरने एवं फव्वारे बने हैं। बताया जाता है कि मर्दन खान ने 1635 ई. में इस उद्यान का निर्माण करवाया था।
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लेखक एवं पत्रकार,कोटा
पूर्व जॉइंट डायरेक्टर,जनसम्पर्क विभाग,राजस्थान।
9928076040
9413350242
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