Saturday, November 23, 2024
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शिकागो में काव्यांजलि ने मनाया अपना जन्मदिवस

शिकागो, (अमरीका)। 13 नवम्बर 2022 को शिकागो में रूट्स टू हिन्दी की प्रस्तुति “काव्यांजलि” ने अपने एक वर्ष पूरे किये। काव्यांजलि की यह ऑनलाइन सातवीं काव्य गोष्ठी थी जिनमे भारत से सुनीता माहेश्वरी जी,हर्ष पाण्डेय जी और बीरेन्द्र यादव जी, कैलिफ़ोर्निया से डॉ दुर्गा सिन्हा जी, रचना श्रीवास्तव जी, शिकागो से अयाति, डॉ संगीता सिंह जी, शिखा मेहता जी और शुभ्रा ओझा जी, वर्जीनिया से आस्था नवल जी और आयोवा से श्वेता सिन्हा जी शामिल हुई।
इस गोष्ठी का संचालन रचना श्रीवास्तव जी और शुभ्रा ओझा जी द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि कैलिफ़ोर्निया से डॉ दुर्गा सिन्हा जी रही।
गोष्ठी की शुरुआत नन्ही बिटिया अयाति की सरस्वती वंदना से हुई। अयाति ने अपनी वंदना से आश्वस्त कर दिया कि भारत का भविष्य ऐसे कर्मठ व योगनिष्ठ बच्चों के हाथों में पूर्णतः सुरक्षित हैं। हमें चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं। पूरी तन्मयता व भाव से शुद्ध उच्चारण के साथ अयाति ने लयबद्ध सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।

सुनीता जी की गरिमामय उपस्थिति से कार्यक्रम की शोभा द्विगुणित हो उठी। सुनीता जी तो हर छंद की माहिर रचनाकार हैं।सशक्त आवाज़ की धनी भी हैं, उनके छंदो के द्वारा गोष्ठी प्रारंभ हुई।
केमिस्ट्री के अध्यापक बीरेन्द्र जी ने तो “ मैं शून्य था “ से शुरू कर मानस् की केमिस्ट्री ही बदल दी सारे अभाव समाप्त और गोष्ठी में बैठे सभी लोग समृद्ध हो गए। बीरेन्द्र जी की कविता में माता-पिता के प्रति बहुत समर्पण भाव था जो कि आज के भावी पीढ़ी को समझना चाहिये।

शिखा जी की कविता माँ के याद पर आधारित थी, इस कविता के साथ उन्होंने अपनी एक और कविता सुनाई जो बहुत ही गहरे अर्थ लिए और अर्थ का अनर्थ होते देखने की पीड़ा को परिलक्षित करती हुई थी।जब उन्होंने कहा कि- “संतति और विरासत दोनों गँवाए जा रहे हैं हम” आस्था जी ने पिता के सबल हाथों और कंधों का ज़िक्र अपनी कविता में बखूबी किया। यह सच ही तो है पिता पूरे परिवार का सबल संबल होते हैं।
डॉ संगीता जी ने मधुर आवाज़ में, सारे सिद्धांतों को कह डाला जो कि बचपन में अपने माता-पिता से सुनते हुए वे बड़ी हुई हैं। संगीता जी मधुर आवाज़ की धनी हैं उनके मुख से कुछ भी सुनना सभी को बहुत अच्छा लगता है।
हर्ष जी ने तो माता-पिता को अपनी कविता के द्वारा एक नई परिभाषा में बॉंध दिया। सभी को यह परिभाषा सुन कर अच्छा लगा। “पिता मॉं का पर्याय,पिता सख़्त मॉं हैं” सच कहा हर्ष ने और उनके बहुत सुन्दर भाव,विचार रहे।
श्वेता जी ने तो सशक्त स्वर में नारी जगत का सार्थक इतिहास ही खोल कर सभी के समक्ष रख दिया वह भी बहुत ही रोचक तरीक़े से। “जगजननी जगपालक है मॉं । बहन, सखी सब है। क्या  नहीं है। फिर भी कोमल कमलनयनी है।” कितनी सुंदर पंक्तियाँ सुनाई उन्होंने। सदैव सभी के मन पर अंकित रहेगा।

रचना जी का मंच संचालन अद्भुत, सधी हुई आवाज़ नपे-तुले पर्याप्त शब्दों से साग्रह आमंत्रित करना सब कुछ क़ाबिले तारीफ़ था।उनकी जितनी प्रशंसा की जाये कम है।रचना जी की कविताओं में हमनें जाना
कि उम्र के एक पड़ाव पर हर लड़की मॉं बनने के बाद अपनी मॉं के रूप में रूपांतरित हो जाती है।काव्यांजलि कार्यक्रम के आनंद की सूत्रधार शुभ्रा जी ने तो सभी के हृदय में आनंद का स्रोत बहा दिया। माता- पिता का सामीप्य, सान्निध्य हमें बचपन में जितना सुख देता है उसे हम जीवन पर्यंत नहीं भूल सकते, यह बात उनकी कविता में दिखी।शुभ्रा जी की कविता की यह पंक्ति “मॉं को रोना नहीं पसंद था , इसलिए नहीं रोती हूँ “ सभी के दिल को छू गई।

सभी की कविताएँ सुनने के बाद कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ दुर्गा सिन्हा जी ने कार्यक्रम के विषय में कहा कि “बहुत ही सुन्दर, सुनियोजित, सुगठित गोष्ठी का आयोजन किया गया।यह गोष्ठी हमेशा याद रहने वाली गोष्ठी बन गई है। मैं आप सभी को बहुत-बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ देती हूँ।”
इन शब्दों के साथ उन्होंने भी अपनी सुंदर पंक्तियाँ लोगों के समक्ष रखी –
“सिखाती सभ्यता संस्कृति और देश के दुश्मन को भी दहलाती है,माँ ऐसी होती है।
पिता पर्वत है, सागर है तो, मॉं सीता है गायत्री है, क्या नहीं है ?”सभी कवियों संग काव्यांजलि गोष्ठी सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई।
काव्यांजलि की यह गोष्ठी आप सभी यहाँ देख सकते हैं – https://youtu.be/qDN6dDpTyTc

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