Tuesday, December 24, 2024
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क्या भारत लोकतंत्र की जननी है?

वर्तमान में समाज विज्ञान के अकादमिक अध्येता और परंपरागत विशेषज्ञों के बीच यह विचार- विमर्श/ एकेडमिक बहस का मुद्दा है कि क्या भारत लोकतंत्र की जननी है?

प्राचीन काल से ही माना जाता है कि ग्रेट ब्रिटेन/ संयुक्त राज्य(60 के दशक के पश्चात इंग्लैंड) संसदीय लोकतंत्र की जननी है और 1688 के गौरवशाली/गौरवी क्रांति के पश्चात सभी ने माना कि ग्रेट ब्रिटेन/ संयुक्त राज्य/ इंग्लैंड संवैधानिक राजतंत्र/ संवैधानिक जनतंत्र की जननी है, लेकिन इस धारणा को सदियों के अनैतिक, उत्पीड़क, और अवैध साम्राज्यवादी शासन और औपनिवेशिक शासकीय प्रणाली को सही सिद्ध करने के पाश्चात्य विद्वानों, जिनके शोध और अध्ययन वातानुकूलित कांच का पुस्तकालय है, उनके द्वारा लिखे साहित्य, लेख और शोधपत्र में इंग्लैंड को ही लोकशाही का जननी माना जाता है।

सुशासन के प्रतीक, प्रशासकीय कौशल से युक्त और शिक्षा में मातृभाषा को प्रोत्साहित करने वाले आदरणीय नरेंद्र मोदी के पहले के शासकीय व्यवस्थाओं में अंग्रेजी बोलने वालों को विद्वान और गोरी चमड़ी वाले व्यक्तियों को अभिजात्य /कुलीन मानने का मिथक था। वर्तमान में भी यह मिथक है कि अल्पज्ञ अंग्रेजी ज्यादा बोलता है, जबकि विषय का व्यावहारिक पक्ष अल्पज्ञ जैसी होती है। समकालीन में भारत के शासकाध्यक्ष, साहित्य, संगठनों और वैचारिक चिंतक भारत को लोकतंत्र की जननी कह रहे हैं।

भारत के कथन की संवैधानिक मान्यता और टिकाऊ होता है जब हम लोकतंत्र के व्यापक आशय को अपनाते हैं। लोकतंत्र शासन का एक रूप ही नहीं ,बल्कि जीवन का एक सरल तरीका है। भारतवर्ष ने अपने वैचारिक मूल्यों और व्यवहार में प्रदर्शित किया है कि प्राचीन भारतीय वैश्विक दृष्टिकोण लोकतांत्रिक मूल्यों, सहिष्णुता, विविधता के लिए लोक सम्मान, शांति, अहिंसा में विश्वास, आस्था, सद्भाव और कर्तव्य आधारित राजनीतिक शासकीय प्रणाली पर आधारित है। भारत ने वैश्विक स्तर पर इन मूल्यों और आदर्शों को विस्तृत स्वरूप प्रदान किया है। इन लोकतांत्रिक मूल्यों, आदर्शों और परंपराओं ने भारत को लोकतंत्र का सफल साधन और साध्य सिद्ध किया है, बल्कि लोकतंत्र की जननी भी बनाया है।

लोकतांत्रिक ज्ञान परंपरा का एक अति आवश्यक एवं महत्वपूर्ण पहलू प्राचीन भारत में राजनीतिक प्रतत्यों और शासकीय प्रकृति का वैकासिक अवयव है। प्राचीन भारतीय राजनीतिक विचारों और परंपराओं में लोकतांत्रिक तत्वों की उपादेयता है। भारत वैश्विक स्तर पर वृहद लोकतंत्र है, बल्कि वैश्विक स्तर पर सबसे प्राचीन लोकतंत्र है।

भारत के प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में सत्र में अपने संबोधन में भारत को लोकतंत्र की जननी के विषय को रेखांकित किया था।उन्होंने जोर देकर कहा, “मैं एक ऐसे राष्ट्र-राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं जिसे लोकतंत्र की जननी के रूप में नामित होने का गौरव प्राप्त है।” भारत में वर्षों से लोकतांत्रिक मूल्यों और आदर्शों की एक आदर्श परंपरा है। भारत के राष्ट्रध्यक्ष, शासकाध्यक्ष और वैदेशिक क्षेत्र के कैबिनेट मंत्री ने विभिन्न अवसर पर भारत को लोकतंत्र की जननी होने का उल्लेख किया है।

विश्व लोकतंत्र शिखर सम्मेलन 2022 में प्रधानमंत्री जी का संबोधन, 2022 का स्वतंत्रता दिवस संबोधन, 2023 का स्वतंत्रता दिवस का संबोधन, राष्ट्रपति महोदया का 2023 का गणतंत्र दिवस संबोधन, मई महीने में भारत के सर्वोच्च पंचायत निकाय अर्थात सांसद के नवीन भवन का उद्घाटन शामिल है। जी-20 की अध्यक्षता के दौरान प्राचीन काल से समकालीन समय तक भारत में लोकतंत्र के विकास को प्रदर्शित करने के लिए एक स्वतंत्र “मंडप” का प्रदर्शन, भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) के प्रदर्शनी में लोकतंत्र की जननी, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के द्वादश महासम्मेलन, सासाराम में केंद्रीय शिक्षा मंत्री द्वारा संबोधित करना आदि संवैधानिक, गैर-संवैधानिक और स्वतंत्र स्वशासी निकायों और सामाजिक संगठनों के सम्मेलन में लोकतंत्र की जननी का संबोधन,शोध के द्वारा, तुलनात्मक अध्ययन और अन्य मूल्य के द्वारा प्रदान किया गया है। वैश्विक स्तर पर एक गतिशील वैश्विक परिदृश्य में डिजिटल, आपूर्ति श्रृंखला, हरित ऊर्जा और जनसंख्या (डेमोग्राफी) आंकड़ों में भारत अग्रणी देश है।

भारत वैश्विक स्तर पर एक उभरती शक्ति केंद्र के स्तर पर हजारों वर्षों के पुरानी भारतीय संस्कृति और सभ्यता के मौलिक परिवर्त को उजागर करते हुए नम्र शक्ति (Soft power), नरम कूटनीति और रक्षात्मक विदेश नीति को प्रस्तुत कर रहा है। सन 1688 की क्रांति को उदारवाद की पृष्ठभूमि और अंग्रेज विचारक जॉन लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है। जान स्टुअर्ट मिल की पुस्तक’ ऑन लिबर्टी’ को लोकतंत्र और स्वतंत्रता का मसीहा माना जाता है।

बेंथम को प्रतिनिधि संस्थाओं और कारागार का सुधारक माना जाता है। रूसो के “सामान्य इच्छा के सिद्धांत” को स्वतंत्रता का गीता कहा जाता है, जबकि मोंटेकियू की पुस्तकसी’ स्प्रिट ऑफ लॉज’ में मानवीय स्वतंत्रता का कालजई ग्रंथ माना जाता है। वैश्विक स्तर पर घटित क्रांतियां (बलात परिवर्तन) को भी लोकतंत्र के विकास का परिचायक माना जाता है। 14 जून, 1215 के महान घोषणा पत्र, 1688 की गौरवशाली क्रांति, 1789 की फ्रांसीसी क्रांति जिसका आदर्श तत्व समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व/ भातृत्त्व का सार था, जबकि 1776 की अमेरिकी क्रांति जिसका उद्देश्य था कि “ईश्वर ने सभी को समान बनाया है”। इन सभी क्रांतियों को गंभीरता से साहित्यिक चिकित्सा परीक्षण किया जाए तो हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के आदर्श नेतृत्व श्री गोपाल कृष्ण गोखले, श्री बाल गंगाधर तिलक, श्री शिवाजी, श्री अरविंदो, श्री विनायक दामोदर सावरकर, डॉक्टर हेडगेवार, श्री एमएस गोलवलकर के लिए 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को समाप्त करने का साहित्यिक प्रेरणापुंज थी, जो इन सिद्धांत वादी नेताओं को आंदोलित करने में सहयोग प्रदान करती थी।

प्राचीन भारत में शासकीय स्वरूप की प्रकृति के उन्नयन में केपी जायसवाल की पुस्तक’ हिंदू पालिटी’ 1919 और 1936, आर सी मजूमदार की पुस्तक’ प्राचीन भारत में निगमित जीवन’ 1919, श्री वीके सरकार की पुस्तक’ हिंदुओं के राजनीतिक संस्थान और सिद्धांत’ जैसे भारतीय मूर्धन्य विद्वानों के द्वारा किए गए शोध और वैज्ञानिक तथ्यों से सामंजस्य स्थापित किया गया था। एनसी बंदोपाध्याय, ए. एस अलतेकर और यू. घोषाल आदि विचारकों के वैचारिकी में भारत को लोकतंत्र की जननी प्रमाणित किया गया है। श्री ए. एस अल्टेकर महोदय ने तथ्यात्मक और वैज्ञानिक शोध से इस विचार का समर्थन करते हैं कि प्राचीन भारत में स्थानीय सरकारी संस्थाएं अपने कार्य प्रणाली में स्वतन्त्र और लोकतांत्रिक थी। उनका शोधात्मक तथ्य था कि सरकार का गणतांत्रिक रूप (गण द्वारा निर्वाचित) सरकार का सामूहिक रूप था।

लोकतंत्र शब्द के औपचारिक रूप से दो आयम है, अर्थात लोगों द्वारा निर्वाचित की गई सरकार और अपने शासकीय कार्यों के लिए लोगों के प्रति जिम्मेदार और जबावदेह। आधुनिक युग में लोकतंत्र ‘जीवन का तरीका’ है जो सामंजस्य के तत्वों से प्रेरित है। आम सहमति, सामूहिक नेतृत्व, विचार-विमर्श, सामूहिक निर्णय लेने, विकेंद्रीकरण और विभिन्न स्तरों पर शासन संरचना की सहायता के लिए शांतिपूर्ण साधनों में विश्वास करना है। इस तरह, लोकतंत्र शासन का रूप के अतिरिक्त जीवन का तरीका या सामाजिक पारिस्थितिकी तंत्र है।

लोकतंत्र को जीवन का साधन अपना कर एक सभ्य सरकार अपने कार्य और शक्तियों के अनुप्रयोग में उत्तरदाई एवं जवाबदेह हो सकती है। लोकतांत्रिक आदर्श, परंपराओं और मूल्यों का उन्नयन लॉक, रूसो, बेंथम, जेएस मिल और पाश्चात्य राजनीतिक चिंतकों के राजनीतिक दर्शन में मजबूत हुआ एवं लोकतांत्रिक मूल्यों का उन्नयन हुआ था; लेकिन लोकतांत्रिक विचार-विमर्श की भावना के रूप में लोकतंत्र को मजबूती देने में भारतीय चिंतन दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। भारत का दावा मुख्य रूप से प्राचीन काल में जीवन के तरीके के रूप में लोकतंत्र के विकास पर निर्भर करता है। भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं का अस्तित्व पहले से था। भारत में 1500 ईशा पूर्व के आसपास ऋग्वेद के प्राचीन पाठ में उल्लिखित सभा और समिति प्राचीन लोकतांत्रिक संस्थाओं का प्रबलतम अस्तित्व था।

सभा के अंतर्गत परिवारों या कुलों के प्रमुख शामिल थे, जो राजा/नरेश के लिए सलाहकार निकाय थी। सभा राजा के अधिकारों पर नियंत्रण स्थापित करने वाली संस्था थी। समिति सभी लोगों की सभा की तरह एक बड़ा निकाय था। समिति संपूर्ण लोगों की राष्ट्रीय सभा थी और इसका कार्य राजन या राजा का चुनाव करना था। इसकी बैठकों में भाग लेना राजा का पुनीत कर्तव्य था। सभा और समिति राजा की मनमानी शक्तियों पर नियंत्रक के रूप में कार्य करती थी। 6वीं शताब्दी में ईसा पूर्व में 16 महाजनपदों के अस्तित्व प्राप्त होता है। इन महाजनपदों का प्रकृति गणतांत्रिक रूप था ।

प्राचीन भारत में गणराज्यों ने प्रशासन में उच्च स्तर की प्रशासकीय कला का अनुप्रयोग किया था। प्राचीन गणराज्य लोकतांत्रिक राज्य के प्रतीक हैं। 10वीं से 11वीं शताब्दी के दक्षिण भारत में चोल शासन के दौरान स्थानीय शासन का उल्लेख है, जो उतरवर्ती व्यवस्था में मूल शासकीय संरचना के लिए आवश्यक है। आधुनिक समय में लोकतंत्र का चुनाव 17 बार मत पेट्टियों (वैलेट पेपर) के माध्यम से संपन्न होना विकासशील राष्ट्र-राज्यों के लिए आवश्यक है। लोकतांत्रिक शासन की विश्वसनीयता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति में सहनशीलता की भावना, परिवर्तन के लिए शांतिपूर्ण साधनों में विश्वास, विचारों और परंपराओं की विविधता का सम्मान, व्यक्ति की गरिमा और नागरिकों में संतुलित संयम आवश्यक है।

उपर्युक्त लोकतांत्रिक आदर्श एवं मूल्यों के आधार पर हम कर सकते हैं कि भारत लोकतंत्र की जननी है। लोकतंत्र के व्यापक आशय में लोकतंत्र शासन का एक रूप ही नहीं, बल्कि जीवन का तरीका है। प्राचीन काल से भारत ने अपने विचार और व्यवहार में प्रदर्शित किया है। इन लोकतांत्रिक अवयवों ने भारत के लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करके भारत को लोकतंत्र की जननी सिद्ध किया है।

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