राज ,समाज एवं शिक्षा पर कार्यशाला
उदयपुर। आज के बच्चे ,किशोर, अभिभावक व समाज निन्यानवे के फेरे में है। निन्यानवे प्रतिशत लाना ही सफलता का सूचक बन गया है। ऐसा मान लिया गया है कि जो निन्यानवे से नीचे है वे असफल व कचरा मान लिए जाते है। यह स्थिति दुःखद है। शिक्षा वही है जो सहज हो एवं इंसान को सहज बनती हो। यह विचार प्रसिद्ध गांधीवादी अनुपम मिश्र ने शुक्रवार को विद्याभवन में राज,समाज एवं शिक्षा विषयक कार्यशाला में व्यक्त किये।
कार्यशाला का आयोजन डॉ मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट , झील संरक्षण समिति,शिक्षान्तर,पी एन चोयल आर्ट ट्रस्ट तथा टेक्नो एन जे आर इंस्टीटूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी द्वारा किया गया।
मिश्र ने शिक्षा,समाज , राज के परस्पर सम्बन्ध, संयोजन एवं अनुपातिक भूमिका का सारगर्भित विवेचन रोचक तरीके से प्रस्तुत किया। मिश्र ने कहा कि शिक्षण संस्थानों को काराग्रह सद्रश्य नहीं होकर सृजन एवं विसर्जन के केंद्र बनाना चाहिए जो प्रकृति , पानी ,जीव जंतुओं ,पेड़ पौधो से जुड़कर शिक्षा प्रदान करे।
अनुपम ने कहा कि शिक्षण संस्थान विद्यार्थी व अभिभावकों को पूर्ण नहीं मानते यही कारन है कि समाज भी शिक्षक को पूर्ण नहीं मानता। शिक्षा का वर्तमान ढांचा बोझिल है। इस ढांचे की परिणीति बच्चो व युवाओ की हताशा व आत्महत्याओं के रूप में सामने है। यह बोझिल ढांचा अपने भार से स्वयं गिर जायेगा।
मिश्र ने कहा कि समाज राज पर निर्भर नहीं रहते हुए सच्ची व सही शिक्षा का कार्य पवित्र भाव से अपने हाथ में ले। इससे राज संचालित शिक्षा का ढांचा भी स्वतः सुधर जायगा।
कार्यशाला के प्रारम्भ में ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा एवं उद्योगपति के पी सिंह ने मिश्र का स्वागत किया। संचालन डॉ अनिल मेहता व मनीष जैन किया। कार्यशाला किशोर संत , डॉ कुमुद ,एन सी बंसल,डॉ तेज़ राजदान , कोमल कोठारी सहित कई नागरिको ने विचार व्यक्त किये।