Saturday, November 23, 2024
spot_img
Homeजियो तो ऐसे जियोजब एक मृतक को हल्दी लगाते देखा तो जीवन बदल गया

जब एक मृतक को हल्दी लगाते देखा तो जीवन बदल गया

संजय पटेल एक ऐसा व्यक्तित्व हैं कि जब आप उनको सुनते हैं तो ऐसा लगता है देश के सुदुर गाँव में बसे वनवासियों का कोई इनसाईक्लोपीडिया वनवासियों के सहज-सरल और संघर्षमयी जीवन के उन रहस्यमयी पन्नों को खोल रहा है जिनकी एक एक परंपरा में, हर एक रीति-रिवाज में, जीवन शैली में संस्कार, धर्म, पर्यावरण संरक्षण, बंधुत्व और संतोषमयी जीवन का राज छुपा है।

ये भी पढ़िये

संजय पटेल को आप गूगल पर नहीं खोज सकते

बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते पता चला कि असली समस्या कुछ और है

5 हजार रुपये में विवाह देखकर दंग रह गए मुंबई वाले

वनवासी परिवारों में खुशियों की सौगात दी भागवत परिवार ने

मुंबई में संस्कृति, धर्म और अध्यात्म की लौ जगाने वाली संस्था श्री भागवत परिवार द्वारा 25 वनवासी जोड़ों के सामूहिक विवाह में आयोजित समारोह में जब श्री संजय पटेल बोल रहे थे तो वहाँ उपस्थित सभी लोग हैरानी से उन्हें सुन रहे थे। हर किसी को लग रहा था कि ये बातें मुंबई से मात्र 120 किलोमीटर दूर बसे हुए वनवासियों की नहीं बल्कि किसी और दुनिया की बात कर रहे हैं।

विगत 25 वर्षों में हजारों वनवासी जोडों का विवाह करवाकर उनका परिवार बसाने वाले संजय पटेल आज मुंबई के वनवासी जिले पालघर के ढाई लाख लोगों में बापूजी के नाम से विख्यात हैं। इस क्षेत्र के युवा हों या बुजुर्ग या महिला वे सबके लिए पूज्य बापूजी हैं।

श्री भागवत परिवार, लायंस क्लब ऑफ मुंबई वेस्टर्न, भारत विकास परिषद् कांदिवली शाखा द्वारा मुंबई के कांदिवली में स्थित ठाकुर विलेज की ताड़केश्वर गौ शाला में आयोजित इस विवाह समारोह में 25 जोडों का विवाह वैदिक रीति के साथ गरिमामयी ढंग से संपन्न हुआ। श्री शयामजी शास्त्री ने पारंपरिक ढंग से विवाह संपन्न करवाया।

विवाह के बाद सभी जोड़ों को पंगत में बिठाकर ससम्मान भेजन करवाया गया।

विवाह समारोह के लिए मुंबई के कई प्रमुख उद्योगपतियों ने दिल खोलकर सहयोग दिया और सभी जोड़ों को कपड़े, बरतन, जीवनोपयोगी आवश्यक सामान भेंट किया। विवाह समारोह के लिए श्री विश्वनाथ चौधरी,श्री सुरेश जी खंडेलिया, श्री विनोद जी लाठ, श्री विनोद भीमराजका, डॉ. निर्मला पेड़ीवाल, सौ. उषा प्रभु, श्री सुनील केजरीवाल, श्री मोहनलाल जी मित्तल, श्रीमती सेन्हलता सिंगड़ोदिया, श्रीमती शकुंतला टिबड़ेवाल, श्री नारायण गोयनका, श्री मुकेश पुरोपित, श्री ओमप्रकाश फलोद, श्रीमती निधि कपिल बाहेती, श्री सुरेन्द्र सुनीता सितानी, श्री नीलम महेश गोयल, श्रीमती अलका झुनझुनवाला, श्री शिवहरि जालान, श्रीमती गायत्री नटवर बंका, श्री प्रशांत अग्रवाल ने सहयोग देकर इसे सफल बनाया।

सभी लोग इस विवाह समारोह में बाराती और कन्या पक्ष के सदस्य के रुप में शामिल हुए और वर वधुओं को उपहार प्रदान किये।

अपने विवाह में खुद शामिल होने आए इन भोले भाले वनवासियों को आनंद और मस्ती के साथ देखना अपने आप में एक रोमांचक अनुभव था। जिनके घर में मुश्किल से दो बरतन और बिछाने ओढ़ने के नाम पर दो चादर हों, पहनने के लिए बमुश्किल दो जोड़ी कपड़े हों उनकी मस्ती और फक्कड़पन देखकर ऐसा लगता है जैसे इन्हें कुछ चाहिए ही नहीं।

समारोह में मागठाणे के एसीपी श्री संजय पाटिल, कल्याणमस्तु परिवार के श्री नीलेश भाई शाह, श्री संजय जोशी, श्री भागवत परिवार के श्री वीरेन्द्र याज्ञिक, श्री सुनील सिंघल, श्री सत्य प्रकाश गोयल, श्री सत्यनारायण पाराशर, दिनेश गग्गड़ आदि उपस्थित थे।

एसीपी श्री संजय पाटिल ने कहा कि ये लोग अभावों में भी सुखी हैं और हम साधन संपन्न होने के बाद भी दुखी हैं। हम लोगों को इनके अभावों को दूर करने में सहभागी होना चाहिए, श्री भागवत परिवार जो काम कर रहा है वह समाज के लिए एक उदाहरण है।

इस विवाह समारोह में आने वाले जोडों में हमेशा की तरह कई जोड़े ऐसे थे जिसमें माता-पिता और बेटा साथ में आए थे। कई जोड़े अपने छोटे बच्चों को लेकर आए थे। पढ़ने में आपको ये आश्चर्य लगेगा कि बच्चों के साथ माता-पिता विवाह कैसे करने आए।

संजय पटेल बताते हैं कि 25 साल पहले जब मैं पालघर के वनवासी क्षेत्र में गया तो एक जगह ये देखकर हैरान रह गया कि लोग एक मृत व्यक्ति को हल्दी लगा रहे हैं ताकि उसका विवाह हो सके। मैंने लोगों से पूछा कि जब इसकी मौत हो गई है तो इसका विवाह किसलिए और किससे कर रहे हो। जो जवाब मिला वह मेरे ह्रदय पटल पर घाव की तरह अंकित हो गया। लोगों ने बताया कि इसका विवाह नहीं हुआ है इसलिए मरने के बाद इसका विवाह कर रहे हैं। इस परंपरा को सूखा विवाह कहा जाता है। इस घटना के बाद मैने वनवासी क्षेत्र के लोगों की जीवन शैली को समझने का प्रयास किया और अपना सब कारोबार छोड़कर अपना पूरा समय इस क्षेत्र के लोगों के साथ काम करने में समर्पित कर दिया।

मैने देखा कि आज से 25 साल पहले ये वनवासी जिस मजबूरी और अभावों में जवन यापन कर रहे थे वो आज भी उसी हालत में हैं। 25 साल पहले भी ये वनवासी जिस झोपड़े में रहते थे आज भी उसी में रहते हैं तब भी इनके झोपड़े में कुछ नहीं था और आज भी कुछ नहीं है।

संजय पटेल बताते हैं कि ये लोग दीवाली के बाद पूरे परिवार के साथ ठेकेदारों के माध्यम से अलग अलग जगह ईंट भट्टों, रेती निकालने, मछली पकड़ने और खेतों में काम करने चले जाते हैं। ठेकेदार या साहूकार इनसे बंधुआ मजदूरों की तरह काम करवाता है और नाममात्र के पैसे देता है। ये अपनी जरुरतों के लिए फिर ठेकेदार या साहूकार से कर्ज लेते हैं और फिर उसके जाल में फँसे रहते हैं। जब ये वापस आते हैं तो इनको गाँव में चावल कि बुआई के लिए 500 रुपये और खाना मिलता है और सितंबर महीने तक इनके भूखों मरने की स्थिति आ जाती है। वर्ष 1994 में इन परिवारों की साल भर की आमदनी 5 से 6 हजार रुपये साल होती थी और आज भी यही हालत है।

संजय पटेल बताते हैं कि इस क्षेत्र के एक हजार गाँवों में रहने वाले 22 लाख लोगों की आमदनी आज बी मात्र 10 से 25 हजार रुपया साल है।

जो वनवासी विवाह कर लेते हैं, समाज उनके विवाह को तब तक मान्यता नहीं देता है जब तक वो पूरे गाँव को खाना ना खिला दे। आप कल्पना करिये जुसके खुद के एक समय के खाने का ठिकाना नहीं है वो पुरे गाँव को क्या खाना खिलाएगा। ऐसे में इसाई मिशनरियाँ आकर इनको गुमराह करती है और इनके गले में क्रॉस पहनाकर इनके विवाह को मान्यता देकर इनको इसाई बनाने का प्रयास करती है।

मिशनरियों के इस जाल को तोड़ने के लिए हम विगत 25 साल से ऐसे जोड़ों को सामूहिक विवाह में लाकर उनका वैदिक रीति से विवाह करवाते हैं जो विवाह करके साथ रह रहे हैं। अभी तक हजारों ऐसे जोड़ों का विवाह करवा चुके हैं। इस अभियान में श्री भागवत परिवार, मुंबई के कई सामाजिक संगठन, रोटरी क्लब व लायंस क्लब जैसी संस्थाएँ निरंतर सहयोग दे रही है।

श्री संजय पटेल बताते हैं संघ के कार्यकर्ता श्री माधवराव काणे ने कई सालों तक इस क्षेत्र में काम करके वनवासियों की इस स्थिति को समझा। उनके साथ रहकर मैने भी इन तमाम हालात को प्रत्यक्ष देखा और वनवासियों का दर्द अनुभव किया।

जब मैने एक शव के साथ विवाह की प्रक्रिया देखी तो मैने तय किया कि कम से कम 25 जोड़ों का सामूहिक विवाह करवाउंगा। जब यह बात लोगों से कही तो सबने कहा कि आप ऐसा करोगे तो खून खराबा हो जाएगा। इसके बाद इस क्षेत्र के एक कम्युनिस्ट के नेता के बेटे चिंतामण को हमने अपने साथ लिया और उसे पढ़ने भेजा तो सभी कम्युनिस्टों ने हमसे कसम ली कि ये पढ़ने के बाद भी कम्युनिस्ट ही रहेगा। चिंतामण को हमने वनवासी कल्याण आश्रम के छात्रावास में पढ़ाया, वो पढ़कर वकील बना और फिर 6 बार सांसद और विधायक रहा। हमने सबसे पहले जव्हार में 25 वनवासी जोड़ों का विवाह किया, फिर दहानु में 50 जोडों का विवाह करवाया फिर जव्हार में 75 जोड़ों का विवाह करवाया। तब एक जोड़े के विवाह का खर्च मात्र 800 से हजार रुपया आता था।

संजय पटेल बताते हैं कि मुंबई से मात्र 120 किलोमीटर दूर बसे इन वनवासियों की महिलाओं को एक घड़ा पानी भरने के लिए आज भी चार से छः घंटे लगते हैं। सुबह अंधेरे में उठकर वो नदी किनारे जाती है और वहाँ गढ्ढा खोदकर पानी आने का इंतजार करती है फिर रिस रिस कर पानी आता है और एक से दो घंटे में घड़ा भरता है। उसे लेकर वो दो से चार किलोमीटर वापस चलकर अपने घर पहुँचती है। जव्हार तहसील के 109 गाँवों में 25 हजार की आबादी वाली 26 बस्तियों में सैकड़ों सालों से ये हालात हैं।

इस विवाह समारोह में वर-वधुओं के परिजनों और गाँव के लोगों ने भी भागीदारी कर नवविवाहित जोड़ों को आशीर्वाद दिया।

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार