बीसवीं सदी ने मनुष्य जाति को बहुत कुछ दिया है-अच्छा भी, बुरा भी। इनमें से उसकी एक देन है-तनाव। खासकर तनाव आधुनिक जीवन का एक अविभाज्य अंग है। आधुनिक मनुष्यों के जीवन की रफ्तार इतनी तेज है कि वे कभी रुककर स्वयं से पूछते भी नहीं कि हम जीवन के नाम पर क्या कर रहे हैं ? वे सारे तनाव अचेतन में दबाते जाते हैं और बाहर चुस्ती और फुर्ती का मुखौटा ओढ़े रहते हंै। लेकिन यह दमित तनाव उनके शारीरिक संस्थान को कमजोर करते रहते हैं और वे कई प्रकार की शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक बीमारियों में प्रगट होते हैं। तनावों से मुक्त होने का सबसे अच्छा तरीका है उन्हें सजगता से जीना। इस प्रकार से जीने से आपके मन का ढाँचा बदलता है।
जीवन गत्यात्मकता है। वह एक अनवरत लय है-काम और विश्राम, तनाव और शिथिलता, उत्तेजना और शांति, सुख और दुःख। यह लय यदि बनी रहे तो जीवन संतुलित होता है। इसका मतलब हुआ, आप जितना काम करते हैं, आपको उतना ही विश्राम करना चाहिए। जितने शिखर पर चढते हैं उतना ही तलहटी में भी आना चाहिए। यही ऊर्जा का नियम है। इसे नहीं समझा तो हम थकान इकट्ठी करते रहते हैं, बुद्धि क्षीण होती जाती है, संवेदनशीलता कम होती है। जीवन ऊब से भर जाता है।
सुबह जल्दी उठकर आकाश में तारे देखना अच्छा होता है।
मकरासन, दंडासन व ईश्वर का स्मरण करने के बाद हाथ देखें। माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती और परमात्मा को याद कर चेहरे पर हाथ फेरें। अपनी सांसों की लय पर ध्यान दें, जिस तरफ की सांस चल रही हो, वही पैर पहले जमीन पर रखें। भूमि का स्पर्श कर मस्तक पर लगाएँ। सभी मित्रों को शुभ संदेश भेजें। इससे न केवल मन पर अच्छा असर होता है, शरीर के हार्मोन और मज्जा-मांसपेशियों की विद्युत तरंगों में भी जीवन की नई सुगबुगाहट पैदा होती है। यही स्वास्थ्य का राज है। स्वास्थ्य कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो हमें जन्मजात मिली हुई हो। स्वास्थ्य है जीवन के लय का संतुलन बनाने की अक्षुण्ण प्रक्रिया। हर रोज, हर घड़ी हमें स्वास्थ्य को पैदा करना पड़ता है। जो शरीर अपने भीतर तनाव इकट्ठे करने का आदी होता है उसके अवयव भी उनसे ग्रसित हो जाते हैं। यह तो सर्वविदित है कि शरीर और मन इतनी घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं कि एक का असर दूसरे पर होता है।
जीवन में योग का अपना एक खास महत्त्व है। यह शरीर को पूरी तरह से चुस्त-दुरुस्त रखने के साथ-साथ निरोगी भी बनाता है। योग में सिर्फ आसनों का महत्त्व नहीं होता, बल्कि इससे जुड़े नियमों का भी पालन जरूरी होता है। आइए, जानें योग से जुड़े कुछ नियमों को-
उषा पान: तांबे के बर्तन में रात का रखा हुआ पानी सुबह उठकर पिएँ।
पंजा चाल: पानी पीकर पंजे के बल चलें। साथ ही 108 बार प्रभु के नाम का जाप करें।
मल त्याग: शौच के समय सीधे बैठें व दाँत भींचे। यह विचार करें कि साथ क्या जाएगा। मल-मूत्र द्वार ऊपर खींचे और छोड़ें।
लघुशंका: बैठकर करें। पंजों के बल बैठें और दाँत भींचें। स्नान से पूर्व और भोजन के बाद भी अवश्य लघुशंका करें।
मुखशोधन: दाँतों की सफाई के लिए बीच की उंगली से मंजन करें। मंजन के रूप में कभी तेल-नमक और कभी आम के पत्तों का भी इस्तेमाल करें।
दंत मूल शोधन: दो उंगलियों से मसूड़ों की मालिश करें।
जिह्वा शोधन: भोजन के बाद अंगूठे से आधी जीभ को मलें।
जिह्वा मूल शोधनः शौच के बाद तीन उंगलियों से पूरी जीभ को मलें।
तालूशोधनः सुबह उठने के बाद अंगूठे से मुँह के ऊपरी भाग को मलें।
कर्ण शोधन: सुबह उठकर कान के छेद में तेल डालकर मलें।
मर्ण मूल शोधन: कान के पीछे की हड्डी के जोड़ को मलें।
कपाल रंध्रा शोधन: दोनों भौंहों के बीच के भाग को अंगूठे से गोलाई में मलें।
गरारा: मुँह में पानी लेकर ऊपर मुँह कर गरारे करें।
कुल्ला: गाल फुलाकर पानी को मुँह में हिलाएँ और पिफर धर से कुल्ला करें।
स्नान: अच्छी तरह से शरीर को रगड़कर नहाएँ। सूती तौलिए या अंगोछे से बदन को पोंछें। यदि गर्म पानी से नहाएँ, तो पानी पहले पैर पर डालें। ठंडे पानी से नहाने पर सिर से स्नान करना शुरू करें।
भोजन: अन्न का सेवन कम करें और फल व सब्जी भरपूर खाएँ। भोजन के साथ सिर्फ दो घूँट ही पानी पीएँ।
सोहम: आराम करने के भी नियम हैं। पहले सीधे लेट जाएँ। अब बायीं ओर से 16 बार और दायीं ओर से 32 बार सांस लें।
शयन: अपने इष्ट के नाम का जप करें। सोने से पहले पूरी दिनचर्या का स्मरण करें। अपनी गलतियां को स्वीकारें और उनकी पुनरावृत्ति न हो, इसका संकल्प ले।
नेत्र स्नान: इसे करने के लिए पहले मुँह में पानी भरें, गाल फुलाकर रखें। फिर आँखों में ठंडे पानी की छींटे मारें। यह कार्य आप सुबह बिना कुुछ खाए-पीए और रात में भोजन करने के बाद करें।
नियमित रूप से निम्न उपक्रम करेंः सुबह नंगे पैर मिट्टी पर चलें। प्यास लगने पर तांबे या मिट्टी के घड़े का पानी पीएँ। फ्रीज के पानी का उपयोग न करें। सूर्य की किरणों को अपनी पीठ पर पड़ने दें। सूर्योदय से पहले वायु का सेवन करें। सुबह उठकर चांद, तारे और आसमान को देखें।
गीले पैर भोजन करें और पैर सुखाकर सोएँ।
पेट भारी रहने से आंत और सिर भारी हो जाते हैं।
पैर गर्म रखें, पेट नरम रखें और सिर ठंडा रखें।
तालू, हथेली और तलवों को साफ रखें।
भोजन के बाद गीले हाथ आँखों पर रखें और हाथ से पेट को दाएँ से बाएँ मलें।
सत-कार्य, मौन, ध्यान और अच्छी पुस्तकों के पाठन जैसे अच्छे कार्यों को करें।
सुंदर कार्य: अपना काम स्वयं करें। परोपकार और सेवा के कार्य करें। बड़ों का आशीर्वाद लें। अपनी गलती को स्वीकार कर उसे सुधारने का प्रयत्न करें। इस तरह की जीवनशैली अपनाकर आप अपने तन और मन को स्वस्थ रख सकते हैं। पहली रोटी गाय की निकालें। रोज तुलसी को जल दें और दान करें।
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(ललित गर्ग)
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