स्टीफन ग्रेलॉट ने कहा था – मैं बेशक इस दुनिया से होकर जाऊँगा, लेकिन एक ही बार। इसलिए, कोई अच्छा कार्य जो मैं कर सकता हूँ या कोई दयालुता इंसानों के प्रति दिखा सकता हूँ, उसे मैं अब करना चाहता हूँ। मुझे टालना नहीं चाहिए या उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मैं इस मार्ग से होकर फिर कभी नहीं जाऊँगा। मुझे लगता है स्टीफन जानते थे कि ज़िंदगी कितनी अनमोल चीज है। हम केवल तभी संपन्न होते हैं जब अपनी ही कैद के बाहर निकलकर दूसरों की आज़ादी के लिए काम करते हैं। मानवता पर विश्वास के योग्य बनते हैं। विश्वास के लिए जीते और मरते हैं। ऎसी विश्व मैत्री और ऎसी सेवा भावना सचमुच बड़ी दुर्लभ होती है, जिसे पूरी दुनिया को अपनी बाँहों में समेटे एक संगठन लायंस क्लब ने साकार कर दिखाया है।
लायन्स क्लब इंटरनेशनल एक गैर-राजनैतिक सेवा संगठन है। इसके 200 से अधिक देशों में 47 हज़ार से ज्यादा क्लब्स हैं जिनमें करीब 14 लाख सदस्य हैं। सदस्यों को लायन उपनाम से संबोधित किया जाता है। लायन्स क्लब मानवीय सेवाओं के साथ शिक्षा, चिकित्सा, पर्यावरण सुरक्षा व मैत्री पूर्ण समर्पण भाव के विकास के लिए काम करता रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा सेवाभावी संगठन है। लायंस क्लब की स्थापना जून 1917 में अमेरिका में शिकागो के एक व्यवसायी मेल्विन जोन्स के प्रयास से हुई थी। प्रथम विश्व युद्ध के परिवेश की चुनौतियों के बीच मानवता के पक्ष में खड़े होने की अदम्य इच्छाशक्ति ने लायंस क्लब को आगाज़ में ही शायद लम्बी उम्र की दुआ दे दी थी। लिहाज़ा, इस संस्था की उम्र 104 साल हो गयी है।
शक्ति, साहस और ओज
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मूलत: यह संस्था दूसरों की मदद के लिए सामुदायिक प्रयासों को बढ़ाने के लिए गठित हुई थी। धीरे-धीरे यह अंतरराष्ट्रीय संस्था बन गई। आज सही माने में यह ग्लोबल हो गयी है। इस संस्था का विश्व परिवार, पूरी दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम की भावना के साथ एकसूत्र में बांधकर रखने के नेक इरादे के साथ चलता है। शेर की शक्ति, साहस और ओज को ध्यान में रखकर इस संस्था का नामकरण लायंस क्लब किया गया था। उद्देश्य के आईने में देखें तो पता चलता है कि यह शक्ति मैत्री और सेवा की है। सक्षम नेतृत्व और टीम वर्क के दम पर यह उद्देश्य परवान चढ़ता है। लायंस क्लब लोगों की ज़िंदगी में बदलाव के लिए काम करता है। साझेदारियां सुनिश्चित कर आगे बढ़ने पर विश्वास इसकी खास पहचान है। लायनेस और लियोज़ की भागीदारी उसे नया बल और स्वतन्त्र पहचान भी प्रदान करती है। लायंस क्लब में अब तो महिलाएं भी लायन बन सकती हैं। अभेद का ऐसा उदाहरण वास्तव में दुर्लभ है।
यह संयोग मात्र नहीं अपितु लायंस संगठन के गौरव की प्रतिष्ठा है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने विगत माह वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से देश में मौजूद लायंस क्लब इंटरनेशनल के सदस्यों के साथ संवाद के दौरान कहा – मैं कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में लायंस क्लब के सदस्यों के विशेष रूप से पीएम केयर्स अंशदान, अस्पतालों के लिए उपकरणों, सैनिटाइजर्स, खाद्य पदार्थों, पीपीई किट और एन95 मास्कों आदि के माध्यम से सराहनीय योगदान की कद्र करता हूं। उन्होंने पोलियो, मोतियाबिंद आदि अभियानों में वर्षों से किए जा रहे उनके योगदान की सराहना की। साथ ही केन्द्रीय मंत्री ने कोविड-19 से लड़ाई में सरकार के प्रयासों में एक बार फिर सामूहिक सहयोग देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा – कोविड-19 को हराने में हम सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है, जो विश्व के 200 से ज्यादा देशों में फैल चुका है। उन्होंने करोड़ों लोगों को भोजन और कई लोगों को जरूरी चिकित्सा उपकरण तथा सुरक्षात्मक गियर उपलब्ध कराने के लिए भी उनकी सराहना की। लायंस क्लब ने इन कार्यों के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त दोहरायी।
अँधेरे के विरुद्ध धर्मयुद्ध
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गौरतलब है कि लायंस दुनिया के गुरुतर दायित्व हैं – लोगों के बीच समझ की भावना पैदा करना और बढ़ावा देना, अच्छी सरकार और अच्छी नागरिकता के सिद्धांतों को बढ़ावा देना और समुदाय के नागरिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक कल्याण में सक्रिय रुचि लेना। समरणीय है कि स्थापना के ठीक तीन साल बाद, लायंस इंटरनेशनल तब सही अर्थ में वैश्विक हो गया जब कनाडा के विंडसर में बॉर्डर सिटीज़ लायंस क्लब की स्थापना हुई। उस समय, लायंस 23 अमेरिकी राज्यों में सक्रिय था, जिसमें कुल 6,400 सदस्य थे। 1925 में हेलेन केलर ने अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में लायंस को संबोधित करती हैं। वह लायंस को अंधेरे के खिलाफ धर्मयुद्ध की चुनौती देती हैं और एक बड़े मिशन की शुरुआत होती है। असंख्य लोगों की ज़िंदगी में आँखों की रौशनी के लिए लायन दुनिया आगे आती है।
दृष्टि प्रथम
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1945 में लायंस इंटरनेशनल की दुनिया के लिए निश्चित और स्थायी शांति की रेखांकित होती है। 1957 जब लायंस क्लब की तरुणों और युवाओं की बिरादरी लियोज़ के रूप में स्वयं सेवा के माध्यम से व्यक्तिगत विकास के लिए सामने आती है। 1968 में लायंस क्लब्स इंटरनेशनल फाउंडेशन बनाया जाता है । प्रेरणा और प्रोत्साहन का नया दौर शुरू होता है। 1990 में साईट फर्स्ट यानी दृष्टि प्रथम अभियान अनोखा मोड़ साबित होता है। यह अंधत्व के विरुद्ध कारगर लड़ाई साबित होता है। अपार धन राशि इस कार्य को पूरा करने के लिए उपलब्ध कराई जाती है। 2017 में लायंस क्लब 100 साल पूरे करता है। और आज लॉकडाउन के माहौल में वह शतायु होने के बाद अपनी स्थापना की दूसरी सदी के पांचवें साल में प्रवेश कर चुका है।
लायंस क्लब का विश्वास है कि अकेले आप एक बगीचा लगा तो सकते हैं किन्तु जब आप पूरे समुदाय को जोड़ लेते हैं तब वह बगीचा आपके साथ और आपके बाद भी बना रहता है। लायंस क्लब समय के साथ और समय के पार भी देखता है। वह भावी पीढ़ियों की परवाह करता है। चिंता के समय सहानुभूति के हाथ बढ़ाता है। चिंतन के समय संभावनाओं का साथ निभाता है। बड़े सपनों को साकार करने के लिए बड़े कदम उठता है लेकिन छोटे छोटे प्रयासों को पूरा सम्मान भी देता है। जीते हुए दुनिया को फूल देना और जाने से पहले धरती को बीज देना लायनवाद का बुनियादी फलसफा है।
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लेखक लायंस क्लब राजनांदगांव सिटी के पूर्व अध्यक्ष हैं और संप्रति दिग्विजय कालेज राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ में प्रोफेसर हैं)