चार…………..एक ऐसा माध्यम जिसके जरिये हर कोई आसानी से सुर्खियों में रहता है। इसे प्रचार और आत्म प्रचार का जुग कहा जा सकता है। अपना माल (उत्पाद) बेंचना हो तो प्रचार काफी कारगरसिद्ध होता है। वैसे इण्डिया में नामचीन हस्तियों/सेलीब्रिटीज को ब्राण्ड एम्बेस्डर नियुक्त कर छोटे से बड़ा उत्पाद आसानी से लोक प्रिय बनाकर बेंचा जा रहा है। यही नहीं मूत्रालय/शौचालय, स्नानगृह आदि के आवश्यक निर्माण हेतु ये ब्राण्ड एम्बेस्डर प्रिण्ट, वेब, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से अपने-अपने ढंग से जनजागरण रूपी प्रचार करते देखे जा रहे हैं। इन सेलीब्रिटीज के मुँह से निकला प्रचार का हर शब्द वाक्य लोगों के जेहन में आसानी से घुस जाता है और लोग उस पर अमल भी करते हैं। मसलन- जब अमिताभ बच्चन हमें हगने-मूतने के लिए उपयुक्त स्थान यानि शौचालय निर्माण कराने के बावत नसीहत देंगे तब भला हम घरों से बाहर निकलकर खुले मैदान, खेतों की मेड़, बाग-बगीचों, नदी-नालों के किनारे थोड़ा सा आड़ लेकर शरीर का मल-मूत्र त्यागकर गन्दगी क्यों फैलाएँ।
एक ठू मास्टर साहेब हैं। गाँव में माध्यमिक स्तर पर कथित विद्यालय के प्रधानाचार्य हैं। उनसे जब शौचालय निर्माण की बात कही गई तो उन्होंने स्पष्ट जवाब दिया कि- हमारे पुरखे, बाप, दादा लोटा लेकर खेतों एवं पेड़ों के नीचे बेखौफ बैठकर शौच किया करते थे तब हम शौचालय बनवाकर बेवकूफी क्यों करें………हमारे दादा, परदादा के समय भी परिवार के हर महिला-पुरूष सदस्य खुले में ही शौच किया करते थे। भइया जी 21वीं सदी चल रही है, आप भी पढ़े-लिखे हो, थोड़ा तो शरम करो और एक शौचालय तो बनवा लो…….। चलो अपना काम करो, आये बड़ा नसीहत देने वाले………पैसा लगता है ऐसा करना कोई मजाक नहीं। रही महिलाओ की बात तो ये औरतें क्या हमारे दादी-परदादी से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। रही अमिताभ बच्चन की बात तो वह एक डायलॉग का लाखों रूपया लेते हैं, यह न समझो कि फ्री-फोकट में ब्राण्ड अम्बेस्डर बने इण्डिया के लोगों में शौचालय निर्माण के प्रति जागरूकता फैला रहे हैं।
भइया जी नाराज न हों……….विद्या बालन, अनुष्का शर्मा और अक्षय कुमार ने भी शौचालय निर्माण और उपयोगिता व इसके लाभ के लिए प्रचार के माध्यम से जगरूकता फैलाई है। कम से कम अमिताभ बच्चन न सही तो इन्हीं लोगों के प्रचार पर नजर डालो। रहम करो महिलाओं पर………..तुम दादा, परदादा की नकल करो। मालूम है कि तुम्हें सबसे प्यारा पैसा है। तुम्हें भ्रम है कि तुमसे बड़ा अक्लमन्द भी कोई नहीं है।
पाठकों! प्रिंसपल सर की परसनैलिटी ध्यान में आते ही हमारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई। हमें दिमाग का फालिज मार दिया, इसलिए इस आलेख के मूल विषय-वस्तु से भटकने लगे। माफ करियेगा………अब आते हैं प्रचार पर……….
प्रचार…………इसमें मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान होता है, और सतयुग से लेकर इस घोर कलयुग में ऐसे मीडिया परसन्स जो मुख्यतः प्रचार ही किया करते थे, याद आने लगे। हमें तो वे भी याद आ रहे हैं जिन्होंने मीडिया को अपने तरीके से मैनेज कर रखा था। पौराणिक काल में नारद द ग्रेट नाम के ब्रमाण्ड स्तरीय मीडिया परसन हुआ करते थे, जिनको तीनों लोकों में वास करने वाले लोग अपने-अपने तरीके से मैनेज किये रहते थे। देवी, देवता, सुर-असुर, नर-मुनि सभी प्रकार के प्राणी अपने-अपने तरीके से नारद जी को ‘खुश’ किये रहते थे। मीडिया की स्वतंत्रता की बात की जाए तो वैदिक और पौराणिक युग में यह कुछ नहीं अपितु बहुत कुछ अधिक थी। यदि ऐसा न होता तो ब्रम्हाण्ड स्तरीय मीडिया परसन नारद जी तीनों लोकों में हर जगह बेरोक-टोक घुस न पाते।
यह तो रही नारद जी के यत्र-तत्र-सर्वत्र बिन बुलाये पहुँच जाने की बात……….इसके अलावा इनके द्वारा दिए गए कल्याणकारी सुझाव की बड़ी कदर हुआ करती थी। यह बात दीगर है कि उनके सुझाव पर कुछ कम ही अमल होता था। जो इनके सुझाव से सहमत होता था, उसे उसके कार्यों में मुनाफा भी होता था। लाभ/हानि का चक्कर अब तो अपने चरम पर है। इसके बावत कुछ भी लिखना, कहना सूरज को दीपक दिखाने जैसा होगा (आप जैसे विद्यावानों के संदर्भ में)।
अभिनय सम्राट, ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार साहब ने अभी तक किसी भी उत्पाद का प्रचार नहीं किया है और न ही वह ब्राण्ड एम्बेसडर ही बने। शतायु होने के करीब पहुँचने वाले यूसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार साहेब अब भी भारतीय फिल्म उद्योग के लिए मील का पत्थर बने हुए हैं। वहीं बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन (मेगा स्टार) अपनी वर्सेटाइल ऐक्टिंग टैलेन्ट के चलते हिजड़ा से लेकर शहंशाह तक का किरदार निभा चुके हैं। यही कारण है कि उम्र के 80वें वर्ष में पहुँचने के करीब बिग बी अब भी हर तरह का प्रचार करके अकूत धन कमा रहे हैं। दिलीप साहब की तरह गुमनाम जिन्दगी नहीं जी रहे हैं। काश! दिलीप साहेब भी प्रचार करते, ब्राण्ड एम्बेसडर बनके हमको जीने, खाने और रहने का सलीका बताते।
आज कल सबसे बुरा हाल लेखकों/रचनाकारों का है। ये लोग गाँव वाले मेरे लंगोटिया यार सुलेमान मियाँ के चचा जान मियाँ अल्लारक्खां की तरह होकर रह गये हैं। जान लें कि मियाँ अल्लारक्खां के साथ कैसी बीतती थी। जब उनसे कोई उनकी खैरियत पूछता था तो कहा करते थे- बेटा क्या करूँ मेरी हालत हो वैसी है जैसे अकेले मियाँ कबर खोंदें या उसमें दफ्न हों………। सोशल मीडिया के इस जुग में कलमकारों की दशा देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि उनके हालात अच्छे हैं या बुरे………मसलन- कलमकार लिखता है, प्रकाशन हेतु भेजता है और जब उसका आलेख मीडिया में स्थान पाकर प्रकाशित हो जाता है तब बेचारा लेखक उसको फेसबुक एवं अन्य सोशल मीडिया पर अपलोड करके अपने कथित/तथाकथित शुभचिन्तकों, मित्रों को शेयर करता है, लाइक्स एवं कमेण्ट्स की तो बात दूसरी है।
एक वयोवृद्ध कलमकार से जब ऐसा करने की वजह पूछी गई, तो उत्तर मिला कि- आजकल का जुग प्रचार का जुग है, जो भी व्यक्ति ऐसा करने से चूक गया वह एक तरह से मृत ही माना जाएगा। मैं तो सोशल मीडिया पर सक्रिय होता हूँ ताकि लोग यह जान सकें कि मैं भी जिन्दा हूँ। कुल मिलाकर लेखकों की इस स्थिति को इनकी बेचारगी कही जाए या आधुनिक प्रचार शैली………? ना बाबा….. ना बाबा……..लेखक, रचनाकारों के बारे में कुछ नहीं कहेंगे, क्योंकि खुद मियाँ फजीहत, दीगरे नसीहत वाली हालत मेरी भी है। बल्कि यह कहें कि मेरी हालत तो इन लोगों से काफी बद्तर है। इनके यहाँ श्रवण कुमार हो सकता है………अपने यहाँ तो कंस, दुर्योधन और औरंगजेबों की भरमार है।
मैं कलमघसीट इतना ही लिख पाया था कि मेरे दाहिने हाथ में सप्ताह भर से हो रहा दर्द एकाएक बढ़ गया, तीव्र वेदना होने लगी। इस लिए लेखन कार्य को विराम देना पड़ा। मित्रों यह मत पूछना की दाहिने हाथ में दर्द क्यों हो रहा था। ऐसा क्यों है तो जान लें कि बीते दिनों आक्रान्ता औरंगजेब ने शाहजहाँ पर हमला बोल दिया था। अब औरंगजेब और शाहजहाँ कौन है कृपा कर इस बावत कुछ न पूंछे…………। मेरे हाथ का दर्द बढ़ रहा है, सामान्य जल से दर्द निवारक टैबलेट खाना चाहता हूँ। चाय, कॉफी आपको मुबारक हो……..हमें तो दो जून की रोटी ही मयस्सर हो जाये……….अल्लाह ताला से यही दुआँ करो। बस थोड़ा आराम करते हुए बेगम मुमताज महल के साथ बिताये गए लम्हों को याद कर हाथ के दर्द को भूलने का प्रयास करूँगा। यह प्रचार नहीं, मेरा स्पष्टीकरण भी नहीं बस प्रसंगवश लिख दिया।
भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
9125977768, 9454908400