अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में मैं ऐसे हजारों लोगों के संपर्क में आया हूं जिन्हें नव तीर्थ और नव-देव की संज्ञा दी जा सकती है। इन हजारों लोगों में से किसका नाम लेकर इस शृंखला की शुरूआत करूं, यह मेरे लिए बड़ी चुनौती थी। बहुत सोचने के बाद मुझे लगा कि इसके लिए #हरीश_चन्द्र_वर्मा सर्वथा उपयुक्त हैं।
हरीश चन्द्र वर्मा को लोग एच.सी. वर्मा के नाम से जानते हैं। इनकी पहचान एक किताब से भी होती है जिसका नाम है- कान्सेप्ट आफ फिजिक्स। यह किताब भौतिकी के निर्गुण सिद्धांतो को सगुण भक्ति जैसी सरस और मधुर बना देती है। यह किताब भारतीय विद्यार्थियों को भौतिकी के साथ-साथ भारत और भारत की संस्कृति से भी जोड़ती है।
मूलतः दरभंगा, बिहार के रहने वाले वर्मा जी ने पटना साइंस कालेज और आई.आई.टी. कानपुर से पढ़ाई की। आई.आई.टी. से एम.एससी और पीएच.डी. करने के बाद आपने देश में ही रहकर शिक्षक बनना तय किया। पहले पटना साइंस कालेज में पढ़ाया और उसके बाद आई.आई.टी. कानपुर में अध्यापन का कार्य किया।
बच्चों को भौतिकी और गणित पढ़ाने का अच्छे से अच्छा तरीका क्या हो सकता है, इस खोज में आप इतने तल्लीन हो गए कि धीरे-धीरे शेष सब कुछ गौण हो गया। एच.सी. वर्मा को बहुत जल्दी समझ में आ गया था कि विज्ञान और गणित की पढ़ाई केवल पटना या कानपुर के बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे भारत के बच्चों के लिए एक समस्या है। यह समस्या बच्चों के कारण नहीं बल्कि पढ़ाने के तौर-तरीकों के कारण है। इस समझ के साथ आपने 2002 में इंडियन एसोसिएशन आफ फिजिक्स टीचर्स (IAPT) से बातचीत शुरू की।
वर्मा जी ने अपनी बात को समझाने के लिए 1000 से अधिक छोटे-छोटे माडल बनाए हैं जो गणित और भौतिकी के सिद्धांतो को बच्चों की रोजमर्रा की जिंदगी से जोड़ते हैं। इन माडल्स के साथ कानपुर में उनकी एक प्रयोगशाला है जिसे उन्होंने नाम दिया है- #अन्वेषिका। अपने अनूठे माडल्स के साथ गणित और भौतिकी पढ़ाने की विशेष शैली को वर्माजी अब तक 8000 से अधिक शिक्षकों को सिखा चुके हैं। इनमें से 26 शिक्षकों ने देश के अलग-अलग शहरों में उन्हीं की तरह अपनी-अपनी प्रयोगशालाएं बना ली हैं। इस तरह कह सकते हैं कि देश भर में इस समय 30 अन्वेषिकाएं काम कर रही हैं।
देश भर में फैली इन अन्वेषिकाओं के बीच तालमेल हो और वे एक-दूसरे से सीखती चलें, इसके लिए वर्माजी ने 2011 में एक विशेष प्रकल्प शुरू किया जिसका नाम है- नेशनल अन्वेषिका नेटवर्क आफ इंडिया – NANI अर्थात ‘नानी’। इन सभी अन्वेषिकाओं को प्रायः स्कूल शिक्षक संचालित करते हैं। इनके पीछे कोई व्यवसायिक उद्देश्य नहीं, बल्कि समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार ही सबकी मूल प्रेरणा है।
इस समय वर्मा जी 72 वर्ष के हो चुके हैं। वर्ष 2017 में आई.आई.टी. कानपुर से रिटायर होने के बाद भी आपका सीखने और सिखाने का क्रम अनवरत जारी है। सच कहें तो वह अब पहले से भी अधिक सक्रिय हो गए हैं। देश भर के लाखों विद्यार्थी इस समय आनलाइन माध्यम से उनसे गणित और भौतिकी सीख रहे हैं। इसी के साथ आपने कानपुर आई.आई.टी कैंपस के आस-पास के ग्रामीण स्कूलों पर भी काम शुरू किया है। आई.आई.टी. कानपुर के विद्यार्थियों के सहयोग से चल रहे इस प्रकल्प का नाम है- #शिक्षा_सोपान। इस प्रकल्प के अंतर्गत ग्रामीण विद्यार्थियों को न केवल निःशुल्क पढ़ाया जाता है, बल्कि उनकी कुछ आर्थिक मदद भी की जाती है ताकि वे जरूरी किताबें आदि खरीद सकें।
वर्मा जी चाहते तो विदेशों में अच्छी से अच्छी नौकरी कर सकते थे। अगर वे चाहते तो देश में ही रहकर करोड़ों की संपत्ति सहज ही अर्जित कर सकते थे। लेकिन आपने ऐसा कुछ नहीं किया। और तो और आपने अपना खुद का घर भी नहीं बसाया। आजीवन आप विद्यार्थियों के हित को ही अपना हित मानते रहे। आपका पूरा जीवन वास्तव में एक प्रकाश स्तंभ के समान है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आप पूर्णतः स्वस्थ रहते हुए लंबे समय तक समाज में इसी तरह सकारात्मकता की रोशनी फैलाते रहें।
(केएन गोविंदाचार्य भारत विकास संगम, इटरनल हिंदू फाउंडेशन और राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक हैं और देश भर में लाखों कार्यकर्ताओं के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन की दिशा में सक्रियता से कार्य कर रहे हैं)