लोकतांत्रिक शासकीय प्रणाली समानता, स्वतंत्रता और न्याय के संप्रत्यय पर टिकी हैं । इन तीनों के संतुलित आयाम से ही सरकार के अंगों का संतुलन होता है। न्याय एक ऐसा संपर्त्य है जो लोकतंत्र में समानता और स्वतंत्रता के लक्ष्य की पूर्ति करता है। समय से न्याय मिलना लोकतांत्रिक मूल्यों और मौलिक अधिकारों के उन्नयन के लिए जिम्मेदार है। भारत में न्याय विलंब से मिलने का प्रमुख कारण न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या में कमी है। वृहद जनसंख्या की तुलना में न्यायाधीशों की संख्या कम है। भारत के पांच उच्च न्यायालयों क्रमशः इलाहाबाद उच्च न्यायालय, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ,गुजरात, मुंबई और कोलकाता उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या कम है। इनमें न्यायाधीशों की संख्या स्वीकृत पदों की तुलना में 52% कम है, जिससे न्याय में देरी होती है। भारत के 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 1114 है और 29.4 प्रतिशत पद रिक्त हैं। उच्च न्यायालय में लगभग 62 लाख मामले लंबित है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 217 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के नियुक्ति का प्रावधान है। न्यायाधीशों की नियुक्ति की ‘ कॉलेजियम प्रणाली’ के कारण नियुक्ति में देरी होती है। कॉलेजियम प्रणाली के कारण न्यायपालिका और कार्यपालिका में हितों का टकराहट होता है।कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य नाम और अन्य कारकों को लेकर राजनीतिक तनातनी चलती रहती है। भारत के उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों का वेतन एवं भत्ते विकसित देशों के न्यायालयों के न्यायाधीशों की तुलना में बहुत कम है।
इसी तरह उच्चतर न्यायपालिका में कानूनी पेशे में दक्ष वकीलों का आय न्यायाधीशों से बहुत ज्यादा है ।कानूनी पेशे के दक्ष वकील ,निजी न्यायिक फर्मों से जुड़े विशेषज्ञ न्यायालयों में न्यायाधीश बनने के अनिच्छुक होते हैं जिससे न्यायाधीशों की संख्या पर्याप्त नहीं हो पा रही है ।एक प्रतिवेदन से यह भी ज्ञात हुआ है कि योग्य ,ईमानदार एवं कर्तव्य निष्ठ व्यक्ति राजनीतिक लॉबिंग और न्यायिक लॉबिंग के प्रति तटस्थ रहते हैं।विकासशील देशों में उच्चतर पदों के लिए राजनीतिक लॉबिंग आवश्यक होता जा रहा है जिससे दक्ष व्यक्ति इन पदों की दौड़ से बहुत दूर हो जाते हैं।
स्वस्थ और गत्यात्मक न्यायिक व्यवस्था के उन्नयन के लिए न्यायाधीशों की संख्या अभीष्ट है। न्याय में देरी के संकट के निजात के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति, न्यायालय सुविधाओं की प्राप्ति, न्यायालय का डिजिटलीकरण,न्यायालय का आधुनिकीकरण और न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते में वृद्धि को पर्याप्त प्राथमिकता देकर न्याय में देरी को रोका जा सकता है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)