किसी भी देश( राज्य) के लिए आवश्यक अवयव चार होते हैं अर्थात जनसंख्या, भू- भाग, सरकार एवं संप्रभुता(सर्वोच्च सत्ता). व्यवहारवादी आंदोलन एवं उत्तर – व्यवहारवादी आंदोलन, शीत युद्ध के दौरान विचारधरात्मक तनाव एवं सामरिक तनाव के कारण वैश्विक स्तर पर गुटीय राजनीति का उभरता स्पेक्ट्रम ,वैश्विक व्यवस्था का एक एक ध्रुवी ,द्विध्रुवी एवं बहू धूर्वी विश्व व्यवस्था से अनुभव, वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र (1965 के पहले संयुक्त राष्ट्र संघ) का मूक दर्शक नेतृत्व, संयुक्त राष्ट्र के स्थाई सदस्य शांति और व्यवस्था में संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिकता पर सवाल खड़ा करने के लिए चिंतकों व मनीषियों को सोचने के लिए बाध्य करना कि वैश्विक स्तर पर शांति एवं व्यवस्था के लिए अब क्या किया जाए?
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र के विशेषज्ञ, राजनीतिक जानकार एवं न्याय शास्त्री का ध्यान सहमति पर आधारित शासन की ओर है, जिससे लोकतंत्र को एक सांस्कृतिक आयाम में बदला जा सके।
राज्य =जनसंख्या+भू – भाग/क्षेत्र+ सरकार/वैध सरकार/निर्वाचित सरकार +संप्रभुता (सर्वोच्च सत्ता)+सहमति पर आधारित शासन
उपर्युक्त गणितीय सूत्र में जनसंख्या ,भूभाग एवं सरकार मनो नैतिक तत्व है ;जबकि संप्रभुता (सर्वोच्च शक्ति/ सर्वोच्च सत्ता) व सहमति पर आधारित शासन मनोवैज्ञानिक तत्व है; क्योंकि किसी भी प्रकार की शासकीय व्यवस्था का राजनीतिक आभार जनता ही होती है। किसी भी व्यवस्था का वैधता का आभार जनता होती है। इसलिए बदलते परिवेश में लोकतंत्र को “स्वर्ग” की संज्ञा दी जा रही है, क्योंकि शासित को आलोचना करने, विरोध करने (आदर्श लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सहभागिता का स्तर अधिकतम है,इसमें जनमत संग्रह एवं प्रत्याहन का अधिकार दिया जा रहा है). स्वतंत्रता पर अधिकाधिक जोड़ देने वाले विचारक /चिंतक रूसो एवं मिल ने व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता की उतनी महत्ता को रेखांकित किए हैं, जितना कि एक स्वस्थ शरीरके लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता है।
भारत वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र, परम वैभव ,विवेक की पदयात्रा एवं विश्व गुरु बनने की राह पर है लेकिन इसके लिए नागरिकों के समावेशी विकास,प्रतिभा पलायन एवं नागरिकता के परित्याग को रोकना होगा ।सभ्य सरकार/ निर्वाचित सरकार के नागरिकता ऐसा तत्व हैं जो वास्तविक अर्थों में राज्य की पदयात्रा को आकर्षित करते हैं ।सरकार का कहना है कि सन 2011 के पश्चात से 16 लाख से अधिक लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी है ।सरकार के लिए नागरिकता आवश्यक है, क्योंकि सरकार की वैधता नागरिकों के द्वारा प्रदान की जाती है। राज्य सरकार का मौलिक उदेश्य सुरक्षा, संरक्षा एवं औषधि प्रदान करना है।
प्रश्न यह उठता है कि भारत की नागरिकता क्यों परित्याग किया जा रहा है? इस सवाल के आलोक में मैंने कई पहलुओं पर चर्चा किया और पाया कि कोरोना काल के दौरान निजी कंपनियों द्वारा छटनी की घटना, विदेशी कंपनियों द्वारा उचित अवसर प्रदान करना एवं अच्छे भविष्य के लिए व्यक्तियों ने नागरिकता का परित्याग किया है ।
वर्ष 2011 के बाद से 16 लाख से अधिक लोगों ने भारतीय नागरिकता का त्याग किए हैं ;इसमें से 225620 लोगों ने पिछले साल नागरिकता छोड़ी है ।भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीय नागरिकों के वर्ष वार विवरण देते हुए कहा है कि:-
वर्ष, 2011 122819
वर्ष,2012 122923
वर्ष,2013 131405
वर्ष,2014 129328
वर्ष,2015 131489
वर्ष,2016 141603
वर्ष,2017 133049
वर्ष,2018 134561
वर्ष,2019 144017
वर्ष,2020 85256
वर्ष,2021 163370
इस प्रकार 2011 के पश्चात भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की कुल संख्या 1663440 है। भारतीयों ने भारत की नागरिकता का परित्याग करके वैश्विक स्तर के 135 देशों में अपनी नागरिकता प्राप्त की है। नागरिकता ‘ संघीय सूची’ का विषय है ,जिसको भारत सरकार को विधायन बना कर के समुचित अवसर, सुरक्षित माहौल, सुरक्षा, संरक्षा एवं रोजगार का अवसर उपलब्ध कराएं ,जिससे भारतीयों को अपने देश( राज्य) में काम कर सके एवं अपने राष्ट्र के प्रति परम वैभव की यात्रा को सफल बनाने में सहभागिता कर सकें।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)