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स्व का राष्ट्र के नवोत्थान में योगदान।

“स्व” की अवधारणा का सुविचार इस अभिमत है कि मानव कल्याण का उत्थान हो ।अधिराज्य (Dominion status) के काल में नागरिक समाज अस्त-व्यस्त था, अर्थात मानवीय व्यक्तित्व में स्थिरता व सामान्य अवस्था की कमी थी ।”स्व” की सुदिर्घ यात्रा प्रत्येक भारतवासी के लिए प्रेरणादायक रहा है । अनार्य व मुस्लिम आक्रांता ओं व आक्रमण के कारण भारतीय जनजीवन अस्त व्यस्त हुआ था तथा सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व सांस्कृतिक आयामों को गहरी चोट लगी थी ।इस कालखंड में पूज्य संतों व चारित्रिक सौंदर्य के व्यक्तित्व एवं महापुरुषों के कुशल एवं स्वनियंत्रित कामनाओं(काम,क्रोध, मद एवं लोभ) से संपूर्ण समाज ने अहर्निश संघर्ष करते हुए अपने स्व की सुरक्षा और संरक्षा किए थे। इन संघर्षों की आधारशिला स्वधर्म, स्वदेशी एवं स्वराज की संकल्पना थी ।राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष में इस कालखंड को “3P” से भी प्रदर्शित किया जाता है; इसको स्वतंत्रता संघर्ष का उदारवादी काल भी कहा जाता है।
P=praying (प्रार्थना करना);
P=pleading (दरख्वास्त देना)और
P=p०जडrडडजडजजडयडote़, ेsting (विरोध करना)
इस तरह इस काल में समाज के प्रत्येक वर्ग व समुदाय की सहभागिता थी।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर की तीसरी अर्थव्यवस्था बनकर अपना स्तर प्राप्त की है। संघ समरसता के अवसर पर काम करता है ,समाज के प्रत्येक वर्ग व समुदाय से भेदभाव समाप्त करने के लिए व्यक्ति आगे आ रहे हैं। समाज उस स्थिति तक पहुंचा है जहां प्रत्येक व्यक्ति समरसता के लिए काम कर रहा है। भारत सामाजिक ,आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आयामों में भी वैश्विक स्तर पर अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। विकासशील राष्ट्र- राज्य अपनी वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए भारत के प्रति आशावान दृष्टिकोण को अपनाकर राष्ट्र के उत्थान के लिए हमें परिवार संस्था का मजबूती, बंधुत्व पर आधारित समरस समाज का निर्माण तथा स्वदेशी का भाव विकसित करना होगा।