Saturday, April 27, 2024
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विचक्षण व्याख्यान माला में डॉ.चन्द्रकुमार जैन का संस्कार और मानव व्यवहार पर प्रभावी उद्बोधन

राजनांदगांव। समता मूर्ति, जैन कोकिला पूज्य विचक्षण श्रीजी म.सा.के उपकारों को समर्पित और मरुधर ज्योति विदुषी साध्वी मणिप्रभा श्रीजी म.सा.की प्रेरणा से अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिष्ठित विचक्षण व्याख्यान माला को शहर के ख्याति प्राप्त वक्ता,साहित्यकार,समाजसेवी और दिग्विजय कालेज के राष्ट्रपति सम्मानित प्रोफ़ेसर डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने आमंत्रित प्रमुख वक्ता की आसंदी से सम्बोधित किया।

महाराष्ट्र के चंद्रपुर शहर में श्री जैन श्वेताम्बर मंदिर के शताधिक वर्ष पूर्ण होने पर हुए पांच दिवसीय भव्य महोत्सव के साथ विदुषी साध्वी डॉ.हेमप्रज्ञा श्रीजी म.सा.के प्रमुख सानिध्य में हुई इस व्याख्यान माला में डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कहा कि असीम वेदना को सहकर भी मानवीय संवेदना को जीवित रखना और तन में व्याधि के बावजूद मन में समाधि की स्थिति को जी कर दिखाना गुरूवर्या विचक्षण श्रीजी के पावन जीवन का सार व सन्देश भी है। यही कारण है कि वे सहनशीलता और सहिष्णुता की प्रतिमान थीं। सरलता, विनम्रता और समरसता गुरूवर्या की विरासत और उनका महानतम त्याग हमारी संस्कृति का गौरव है। डॉ.जैन ने कहा कि गुरूवर्या ने आत्म संयम को जीने का उसूल बना लिया। वह हमारी चेतना के लिए प्रकाश स्तम्भ ही नहीं, एक मशाल की तरह है।

डॉ.जैन ने विशाल सभा में,गुरूवर्या के उपकार, संस्कार और मानव व्यव्हार विषय पर धाराप्रवाह बोलते हुए श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा कि किसी भी कार्य को सलीके से, समझदारी और विवेक के साथ करना ही संस्कार संपन्न होना है। उन्होंने मिसाल देते हुए कहा कि केला खाकर हम छिलका फेंक देते हैं तो यह एक कृत्य है । केला खाकर छिलका कूडेदान में फेंकना प्रकृति है। केला खाकर छिलका सडक पर फेंक देना, विकृति है लेकिन अन्य व्यक्ति द्वारा भी रास्ते पर फेंका हुआ छिलका कूडेदान में फेकना यह संस्कृति है। भूख लगने के उपरांत खाना यह प्रकृति, अन्य व्यक्ति के लिए रखे खाने का भाग भी स्वयं खा जाना यह विकृति लेकिन अतिथि तथा घर के सभी सदस्य का खाना हुआ अथवा नहीं यह देखकर बाद में प्रसाद समझकर स्वयं खाना यह संस्कृति है।

डॉ.जैन ने कहा कि संस्कार का अर्थ है जीवन में अच्छाइयों को गुणा करना अर्थात् बढाना एवं बुराइयों का भागफल अर्थात् बुराइयों को घटाना। आज संस्कार को व्यवहार में उतारने के लिए सुविधा और साधन काम नहीं हैं, किन्तु सबसे बड़ी जरूरत समय और संस्कृति के जतन की है। हमारी शिक्षा को संस्कार का आधार और हमारे व्यवहार को संस्कृति का उपहार मिले, इसी में जीवन की सार्थकता है। व्याख्यान के उपरान्त चंद्रपुर श्री संघ के अध्यक्ष श्री निर्दोष पुगलिया, सचिव श्री संदीप बांठिया सहित समाज के वरिष्ठ जनों ने डॉ.चन्द्रकुमार जैन का मंगलमय रजत वैजयंती व शॉल आदि भेंटकर भावभीना सम्मान किया।

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